24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। उदयपुर शहर में हाल ही में एक नामी पत्रकार का मोबाइल गुम हो गया। थाने गए तो पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से साफ इनकार कर दिया। मोबाइल में महत्वपूर्ण और गोपनीय डेटा था, जिसके खो जाने पर पत्रकार के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता था। थाने में शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस ने बिल और आधार कार्ड की हार्ड कॉपी मांगी, जबकि पत्रकार ने व्हाट्सएप या डिजिटल माध्यम से सूचना देने की गुजारिश की। मगर इसके पुरानी लकीर पीट कर लाल फीताशाही दिखाते हुए पुलिस ने शिकायत ही दर्ज नहीं की। आखिरकार पत्रकार ने खुद तकनीकी उपायों और आईएमईआई नंबरों के प्रयोग से अपने खुद के न्यूज नेटवर्क सोर्स के जरिये मोबाइल ढूंढ निकाला। जिस व्यक्ति के पास मोबाइल मिला, उसने अपनी गलती स्वीकार की व मोबाइल लौटा दिया।
अब सवाल यह उठता है कि यदि पत्रकार के साथ यह हो सकता है, तो आम नागरिकों के साथ पुलिस क्या व्यवहार करेगी। हम थाने का नाम इसलिए नहीं लिख रहे हैं क्योंकि जो लोग खोजी हैं वे खुद नाम खोज लेंगे और जिन्हें नहीं पता है वे पुलिस की कार्यप्रणाली से तो परिचित हो ही जाएंगे। पुलिस के आला अधिकारी भी उम्मीद है कि सिस्टम को गति देने व सुस्ती व लालफीताशाही छोड़ने का प्रयास करने का प्रयास करेंगे।
इस मामले को लेकर जब उसी थाने में आरटीआई के माध्यम से जानकारी मांगी गई कि
मोबाइल खो जाने या रास्ते में गिरने पर एफआईआर/प्राथमिकी दर्ज कराने हेतु आवश्यक दस्तावेज कौनसे चाहिए। आईएमईआई देने के बावजूद शिकायत न दर्ज करने के नियम और उच्चाधिकारियों के आदेश के बारे में बताएं। 1 जनवरी 2025 से अब तक संबंधित थाने में मोबाइल खो जाने के प्रकरण कितने दर्ज हुए। उन प्रकरणों पर की गई कार्रवाई।
इन सवालों पर पुलिस ने उत्तर में कहा कि सूचना किसी भी प्रारूप में संधारित नहीं की जाती, यानी पुलिस यह सूचना भी नहीं रखती कि मोबाइल गुम होने के कितने मामले उसके पास आए। जबकि मजे की बात है कि वही पुलिस थानों में फोटो खिंचवा कर मोबाइल लौटाने पर मीडिया जलसा जरूर करती है व व्यापक प्रचार प्रसार करती है कि फलां थाने ने इतने लाख के मोबाइल लौटाए। जब मोबाइल खोने का डेटा नहीं है तो वापस रिकवर करने का डेटा कहां से आ गया??
मोबाइल खो जाए तो पुलिस से तत्काल कार्रवाई की उम्मीद न रखें, शिकायत लिखने में लालफीताशाही

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