24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। जब जेब में नोट कड़क हो तो सब कुछ संभव है। जहां नोटों की बारिश हो रही हो वहां पर नियमों की लाठी का कोई असर होता ही नहीं है। अफसर मस्त पड़े हुए भ्रष्टाचार के फास्ट फूड की जुगाली करते रहते हैं और नेता, जन प्रतिनिधि और सिस्टम के जिम्मेदार हंसते-मुस्कुराते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ रही आवाजों के साथ मिलकर मजे लेते नजर आते हैं। वैसे तो नियम होते ही तोड़ने, मरोड़ने और कम पावर रखने वालों को दबाने के लिए हैं लेकिन जब बात प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, पहाड़ों की हत्या और पर्यावरण के सत्यनाश की हो तब चुप नहीं रहा जा सकता। क्योंकि ये हमारी पीढ़ियों की असेट है किसी की बपौती नहीं। जो आज है वो कल तो नहीं रहेंगे मगर उनके कारनामे और सवाल सालों तक गूंजते रहेंगे। तात्कालिक लाभ के लिए बनाए गए नेता-अफसर और जन प्रतिनिधियों के नेक्ससर के किस्से इतिहास में दर्ज होकर अमर जरूर हो जाएंगे।
शहर की ताज अरावली होटल के पास बह रही अमरजोक नदी में भी कुछ ऐसा होता हुए साफ दिख रहा है। अचानक एक सड़क अवतरित हो गई, पहाड़ी काटने के आरोप लग गए। मगर सड़क किसने बनाई, यह किसी को नहीं पता। आप अपने मकान की परमिशन लेने जाते हैं तो पूछता है ना यूडीए कि सड़क कितने फिट की है? और सोचिये कि अगर कोई रिसोर्ट बन जाए और आप यूडीए से पूछें कि बताओ तो सही, कितने फिट सड़क के पास रिसोर्ट बना?? तो यूडीए आपको जवाब ही ना दे!! भाई, गजब मजाक है। उसके बाद मामला जब राज्य सूचना आयोग के पास चला पास जाए और आयोग नाराज होकर फटकार लगा कर तुरत सूचना दीजिए का फरमान सुनाए। तब भी कोई फर्क ना पड़े तो आप क्या कहियेगा?
इस मामले में यही हुआ है। ताज अरावली के बाहर चकाचक सड़क बन गई। हर विभाग कह रहा है हमने नहीं बनाई, तो बनाई किसने इसका उत्तर जानना भी अब कठिन सवाल बन गया है।
यूडीए अफसरों के ढीठ और चलताऊ रवैये पर मुख्य सूचना आयुक्त की फटकार लगी, सूचना न देने पर गंभीर लापरवाही मानते हुए 30 दिन में पूरी जानकारी उपलब्ध कराने के आदेश दिए। पर आदेश हवा हो गए। वाह, कितने निडर और आज्ञाकारी अफसर भर्ती किए हैं हमारे पॉलिटिकल सिस्टम ने!! एकदम ढाल बनकर खड़े हैं जनता और उस साधारण सड़क की सूचना के बीच। मुख्य सूचना आयुक्त मोहन लाल लाठर साहब भी करें तो क्या करें?? 30 दिनों की मियाद बीते चार महीने होने आए हैं, कुछ और महीने बीत जाएंगे, उसके बाद शायद जुर्माने के अंतिम ब्रहमास्त्र का प्रयोग करने का मन बना ले। लेकिन ये सब हो क्यों रहा है? यूडीए क्या इतना करप्ट हो चुका है कि अफसर पूरी की पूरी सड़क को अपनी खांख में दबा कर बैठ गए हैं।
नेताओं, जन प्रतिनिधियों के संरक्षण में महाभ्रष्टाचार के सुनियोजित तंत्र में यूडीए अफसरों ने लाठर साहब की लाठी का मजाक बना दिया। जो सूचना जन हित में जारी होनी थी, उस पर किसी बापर्दा सफेदपोश की तरह से हुजूर पहरेदारी कर रहे हैं।
देश के जाने माने पत्रकार जयवंत भैरविया ने बताया कि 27 अगस्त को ही सूचना देने के आदेश आ गए, आज 27 अक्टूबर हो गया है। अब तक क्या यूडीए अफसर गुईयां छील रहे हैं। या फिर मलाई वाला को कोफ्ता खा रहे हैं। यूआईटी होटल का रास्ता पास कर रही है। वो ही नहीं बता रही कि रास्ता कितना लंबा, चौड़ा है? कहां बना है? किसने बनाया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि झूठ की ये सेफ्टी वॉल ढह गई तो सूचना देने वाले अफसर खुद नप जाएंगे? सिस्टम का नंगापन सड़क पर आ जाएगा?
वैसे तो पॉलिटिकल कनेक्शन इनके सभी दलों में तगड़े हैं मगर यह छोटी सी जानकारी मछली के कांटे की तरह गलफांस बन सकती है इसलिए जुर्मान के जोखिम की हद तक यूडीए के अफसर ताज अरावली के प्रति अपनी मुहोब्बत का इजहार करते नजर आ रहे हैं।
अब जान लीजिए मामले का क्या हे बेसिक
ताज अरावली होटल का नाम सुना होगा। उदयपुर में अमरजोक नदी में इसी होटल के लिए या होटल के द्धारा या फिर किन्हीं अलग प्लेनेट से आए एलियन द्धारा सड़क बनाने का मामला है। इस मामले में 12 बिंदुओं पर यूडीए से पत्रकार जयवंत भैरविया ने जानकारी मांगी थी हम दो बिन्दुओं पर चर्चा करते हैं।
पहला, ताज अरावली होटल के बाहर अमरजोक नदी में सीमांकन संबंधी कार्यवाही क्या हुई। दूसरा, ताज अरावली होटल प्रबंधन ने जल संसाधन विभाग की कोडियात टनल के ऊपर पहाड़ी काटकर निर्माण कार्य किया, जिसके लिए यूडीए ने कथित रूप से स्वीकृति जारी की। इस संबंध में जारी की गई सभी स्वीकृतियों और दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतियां दीजिए। इन दो सवालों पर यूडीए को सांप सूंघ गया। आरटीआई की किसी अपील का कोई जवाब नहीं, राज्य आयोग में अपील पर सूचना देने के निर्णय के बावजूद भ्रष्ट अफसर टस से मस नहीं हो रहे। लाठर साहब कितना गुस्सा हुए होंगे यह आप भी पढ़ लीजिए, उन्होंने लिखा-“यूडीए की यह उदासीनता और लापरवाही चिंताजनक है। इसे गंभीरता से लिया गया है, और भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न करने की चेतावनी दी जाती है।”
एक है वोट बैंक, दूसरा नोट बैंक
मासमू सवाल-लगता है जनप्रतिनिधियों को किसी ने बताया नहीं
आपके शहर में एलियन सड़क बना गए और जन प्रतिनिधियो ंको किसी ने बताया नहीं, यह सवाल मासूमी के साथ हम भी पूछना चाहते हैं। यदि नहीं बताया और जनता की सेवा में वे इतने ज्यादा व्यस्त हैं कि टाइम ही नहीं मिल रहा, तो हमारी यह खबर ही पढ़ लें। पक्ष और विपक्ष अगर अपनी मिलीभगत की राजनीति से फुर्सत पा लें या काई पदाधिकारी, कार्यकर्ता यह खबर पढ़ लें तो वो भी उन तक यह खबर जरूर पहुंचा सकता है। मगर कोई करें तो क्या करें। एक होता है वोटबैंक और दूसरा होता है नोट बैंक। दोनों की परवाह करना इनकी मजबूरी है शायद।

