आधुनिक भू-स्थानिक तकनीकों से मृदा प्रबंधन में नई संभावनाएं
24 news update. उदयपुर. आईसीएआर-प्रायोजित 21 दिवसीय शीतकालीन स्कूल “आधुनिक भू-स्थानिक तकनीकों से मृदा संसाधन मानचित्रण और प्रबंधन” का समापन समारोह आईसीएआर-एनबीएसएस एंड एलयूपी, क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर में भव्य रूप से संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रतिभागियों को मृदा संसाधन मानचित्रण और प्रबंधन में आधुनिक भू-स्थानिक तकनीकों के अनुप्रयोगों से परिचित कराना और उनके ज्ञान व कौशल में वृद्धि करना था।
कार्यक्रम में भागीदारी और मुख्य अतिथिगण

इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में देशभर से 25 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें विभिन्न शोध संस्थानों, विश्वविद्यालयों और सरकारी विभागों के वैज्ञानिक, तकनीकी विशेषज्ञ, एवं शोधार्थी शामिल थे। इसके अलावा, विभागीय प्रमुखों, क्षेत्रीय केंद्रों के निदेशकों, प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, एवं तकनीकी स्टाफ ने भी इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।
समापन समारोह में डॉ. एन.जी. पाटिल, निदेशक, आईसीएआर-एनबीएसएस एंड एलयूपी, नागपुर ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। अन्य विशिष्ट अतिथियों में शामिल थे:
- श्री शिवप्रसाद नकाते, आबकारी आयुक्त, उदयपुर
- डॉ. एम.जी. शिंदे, प्रोफेसर एवं प्रमुख, एमपीकेवी, राहुरी
कार्यक्रम की शुरुआत प्रतिष्ठित अतिथियों के गर्मजोशी भरे स्वागत और सम्मान समारोह से हुई, जिसकी अध्यक्षता डॉ. बी.एल. मीना, प्रमुख, आरसी, उदयपुर ने की।
प्रशिक्षण कार्यक्रम की मुख्य बातें
डॉ. आर.पी. शर्मा, पाठ्यक्रम निदेशक, ने 21 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का विस्तृत सारांश प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने इस कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्यों, सत्रों और उपलब्धियों को उजागर किया। प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए और प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त व्यावहारिक ज्ञान और तकनीकी दक्षताओं की सराहना की।
इस प्रशिक्षण में निम्नलिखित विषयों को विशेष रूप से शामिल किया गया:
✔ रिमोट सेंसिंग और जीआईएस (Geographic Information System) तकनीकों का मृदा संसाधन मानचित्रण में उपयोग
✔ भू-स्थानिक डेटा विश्लेषण और उसका सटीक कृषि एवं भूमि प्रबंधन में अनुप्रयोग
✔ मृदा स्वास्थ्य और भूमि क्षरण मूल्यांकन तकनीकें
✔ जलवायु परिवर्तन और सतत कृषि विकास में मृदा प्रबंधन की भूमिका
✔ डिजिटल कृषि और स्मार्ट फार्मिंग तकनीकों में भू-स्थानिक तकनीकों का महत्व
विशिष्ट अतिथियों के विचार
🔹 डॉ. एम.जी. शिंदे ने अपने संबोधन में रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के आधुनिक कृषि पद्धतियों में योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे इन तकनीकों का उपयोग कृषि उत्पादन बढ़ाने और भूमि संसाधन प्रबंधन को बेहतर बनाने में किया जा सकता है।
🔹 श्री शिवप्रसाद नकाते ने भू-स्थानिक तकनीकों की महत्ता, भूमि क्षरण, मरुस्थलीकरण और मृदा संबंधित समस्याओं के समाधान में उनकी भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि नवीनतम तकनीकों के उपयोग से भूमि प्रबंधन की सटीकता बढ़ाई जा सकती है और इससे पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित होगी।
🔹 मुख्य अतिथि डॉ. एन.जी. पाटिल ने प्रतिभागियों को प्रेरित करते हुए कहा कि उन्हें इस प्रशिक्षण में प्राप्त ज्ञान को अपने व्यावसायिक प्रयासों में लागू करना चाहिए। उन्होंने डिजिटल कृषि और मृदा प्रबंधन में भू-स्थानिक तकनीकों के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि सतत कृषि विकास के लिए इनका कुशलता से उपयोग आवश्यक है।
प्रमाणपत्र वितरण और समापन
समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए, जिससे उनकी तकनीकी दक्षता को औपचारिक मान्यता मिली। डॉ. बृजेश यादव, पाठ्यक्रम समन्वयक, ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने इस कार्यक्रम की सफलता में योगदान देने वाले सभी गणमान्य व्यक्तियों, प्रशिक्षकों, प्रतिभागियों और आयोजन टीम के प्रति आभार व्यक्त किया।
निष्कर्ष
इस 21-दिवसीय शीतकालीन स्कूल ने मृदा संसाधन प्रबंधन में भू-स्थानिक तकनीकों के उपयोग को प्रोत्साहित करने और इस क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम देश के वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों को अत्याधुनिक तकनीकों से लैस करने की दिशा में एक सशक्त कदम साबित हुआ।
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