उदयपुर। पुलिस बुलाकर परीक्षाएं करवाने के बाद आंदोलन को तोड़ने की नाकाम कोशिशें करने वाला सेंट ग्रिगोरियस स्कूल प्रशासन सकते में है। कारण है—शिक्षकों का आंदोलन रविवार को भी उसी जोश के साथ जारी रहा। स्कूल प्रशासन ने पुलिस की वर्दी का जोर दिखाते हुए अपनी ताकत का जो प्रदर्शन करवाया था उसके खिलाफ सोशल मीडिया से लेकर आमजन की चर्चा और शिक्षाविदों के बीच गहरा आक्रोश व्याप्त हो गया है।
मीडिया लगेज, बेगेज और पैकेज के किस्से भी
यही नहीं मीडिया के एक धड़े को फेक न्यूज चलवा मैनेज किया गया, उसके बाद अंदरखाने जो प्रयास चल रहे हैं उसके भी उदयपुर से लेकर जयपुर तक चर्चे हैं। इन प्रयासों में कई नाम और कई प्रकार के लगेज, बेगेज और पैकेज के किस्से भी कहे सुने जा रहे हैं। विज्ञापनों के तोहफों की कृत्रिम बारिश का भी पूर्वानुमान किया जा रहा है।
इन सबके बीच सोशल मीडिया पर चले कैंपेन ने आंदोलन की धार और तेज कर दी है। प्रबंधन अब एस्केप रूट ढूंढ रहा है तो पीड़ित शिक्षकों के पास भी अभी नहीं तो कभी नहीं जैसे हालात का संघर्ष का साफ—साफ रोडमेप है। कल कई पूर्व छात्रों ने शिक्षकों के समर्थन में हमारे चैनल के वीडियो सेक्शन में अपनी भावनाएं उड़ेली जो भावुक कर देने वाली हैं। अपने चहेते शिक्षकों के लिए कहा जा रहा है कि इतिहास में तंबू उखाड़ने वालों के नाम के आगे हमेशा विलेन ही लिखा जाता है और घमंड में चूर शक्तिशाली के आगे डटे रहने वालों को हमेशा हीरो कह कर याद किया जाता है। इस बीच खबर मिली कि काले कोट और खाकी वर्दी के मोहजाल में लगभग अंधे हुए जा रहे स्कूल प्रशासन ने अपनी सोच पर ताले जड़ते हुए आज भी कुछ चिट्ठियों के कानूनी दांवपेच में संदेशों की आवक—जावक का क्रम जारी रखा, जिसका शिक्षकों की ओर से माकूल जवाब दिया गया।
इधर, सेंट ग्रिगोरियस सीनियर सेकेंडरी स्कूल के पीड़ित शिक्षकों एवं विद्यालय के ख्याति प्राप्त शिक्षकों सीबीएसई बोर्ड परीक्षाओं के हेड एग्ज़ामिनर अनीता कुरियन (पीजीटी अंग्रेज़ी) और संजू वर्गीस (टीजीटी विज्ञान) के समर्थन में शांतिपूर्ण धरना–प्रदर्शन लगातार पाँचवें दिन बदस्तूर रहा। पीड़ित शिक्षकों ने अपनी मांगों के समर्थन में उदयपुर सांसद मन्नालाल रावत, संभागीय आयुक्त, जिला कलेक्टर तथा जिला शिक्षा अधिकारी सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा। सांसद मन्नालाल रावत ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल संज्ञान लेने और आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया। वहीं जिला प्रशासन ने भी शिक्षकों की पीड़ा को समझते हुए समुचित एवं निष्पक्ष कार्रवाई का भरोसा दिलाया है। जिला प्रशासन किस प्रकार से सुनवाई करता है, नेता किस प्रकार से आश्वासनों की चासनी परोसते हैं यह अब तो बच्चे तक जान चुके हैं मगर उम्मीदों पर दुनिया कायम है। प्रयासों की बीच पावर पॉलिटिक्स का पलड़ा किस ओर भारी होता है, शायद इसी से मामले के दिशा तय होगी।
गौरतलब है कि 13 दिसंबर (शनिवार) को पीड़ित शिक्षकों ने लेकसिटी प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता कर व्यथा मीडिया के समक्ष रखी थी। इस दौरान बड़ी संख्या में पूर्व छात्र और अभिभावक उपस्थित रहे, जिनका आक्रोश स्कूल प्रबंधन के प्रति और समर्थन शिक्षकों के पक्ष में साफ तौर पर देखने को मिला। कई अभिभावक एवं भूतपूर्व विद्यार्थी भावुक हो उठे और उन्होंने शिक्षकों के साथ खड़े रहने की बात कही।
प्रेस वार्ता में शिक्षकों ने आरोप लगाया कि उनके शांतिपूर्ण धरने एवं मौन अनशन को स्कूल प्रबंधन द्वारा जानबूझकर एक अलग एवं असामाजिक स्वरूप देने का कुत्सित प्रयास किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि उनके मौन प्रदर्शन स्थल को पुलिस कार्रवाई के माध्यम से हटवाया गया, जिसमें उनके संवैधानिक अधिकारों तथा मानवीय संवेदनाओं की अनदेखी की गई।
एक अभिभावक ने का कि शिक्षकों का यह कहना इसलिए भी जायज है क्योंकि पुलिस का दल—बल और शौर्य उस दिन लगभग नदारद हुआ जब कुछ लोग प्रदर्शन करते हुए स्कूल परिसर में पहुंचे थे। स्कूल में ही सुंदकांड पाठ हुए थे, जोशीले नारे लगे थे। तब शायद पुलिस के आला अधिकारियों के खयाल में ही नहीं आया कि इस पर भी कार्रवाई करनी चाहिए, इसकी परमिशन भी चेक करनी चाहिए??? मगर जब पॉलिटिकल,एडमिनिस्ट्रेटिव सहित पैकेज मनी पावर का जोर पड़ा तो तंबू उखाड़ने पर आमादा हो गए।

