24 News Update सागवाड़ा (जयदीप जोशी)। आसपुर मार्ग लोहारिया तालाब के सामने स्थित कान्हडदास दास धाम बड़ा रामद्वारा में चातुर्मास में शाहपुरा धाम के रामस्नेही संत तिलकराम ने सत्संग में बताया कि जब तक राम का नाम हृदय में प्रकट नहीं होता तब तक दुःख ही प्रकट होता।
संत ने बताया भगवान शंकर ने अपने रोम -रोम में राम का नाम धारण कर लिया । राम के नाम मे सभी तीर्थ समाए हुए हैं सभी गुणो का समावेश नियम ,धर्म ,आचार -विचार भी राम के नाम में समाए हुए हैं । जो मुख से राम- राम रटे तो ही अमृत का स्वाद का पता चलता है राम नाम अमूल्य है । भगवान शंकर राम नाम का आहार करते हैं । माया से भरन -पोषण होता है परंतु ईश्वर की प्राप्ति नहीं । संत ने कहा कि बेटी की विदाई का दुःख एक मॉ ही जान सकती है ,जितनी चिंता बेटी मां- बाप की करती है उतनी कोई नहीं करता । जब सीता माता को मां सुनयना ने विदा किया था वह क्षण कितना भावुक होगा । मॉ ही बेटी को सीख देती है कि ससुराल में सांस, ससुर एवं गुरु की सेवा करना व पति की आज्ञा का पालन करना यही स्त्री का धर्म है । राजा दशरथ के मन में विचार आया कि राम को राजा बना देना चाहिए यह इच्छा गुरु वशिष्ट के समक्ष प्रकट की तो गुरु ने कहा कि शुभ काम में देरी क्यूं देवताओं को यह बात पसंद नहीं आई, क्योंकि देवता अपनी परेशानी को प्रभु श्री राम के माध्यम से समाप्त करना चाहते थे । देवताओं ने देवी सरस्वती से प्रार्थना की ,सरस्वतीजी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर मथुरा दासी के माध्यम से अपना काम किया । हर जीव अपने कर्म के अनुसार सुख-दुःख भोगता है दुष्ट लोग पराए का सुख नहीं दे पाते हैं । व्यक्ति की जैसी संगति होगी वैसा ही विचार आएगा और कुसंगत से जीवन का पतन निश्चित है । संत ने कहा कि श्राप भी कभी-कभी ईश्वर कृपा से वरदान बन जाता है गौतम ऋषि द्वारा पत्नी अहिल्या पत्थर बन गई प्रभु श्री राम के चरण अहिल्या को छुए तो श्री राम को बड़ा पश्चाताप हुआ । इस पाप का पश्चाताप करने के लिए प्रभु श्री राम गंगा स्नान को गए थे मंगल कार्यों में जब महिलाएं अपने सर पर कलश धारण करती है तो उसे स्त्री के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं ऐसी हमारे सनातन धर्म की मान्यता है । प्रवक्ता बलदेव सोमपुरा ने संत प्रसाद गोकुल दोसी परिवार का रहा व सत्संग में समिति अध्यक्ष सुधीर वाडेल, बंसीलाल दर्जी, विष्णु भावसार,प्रेमलता सुथार ,भानु सेवक ,कौशल्या सेवक, शकुंतला भावसार सहित रामस्नेही उपस्थित रहे।
जब तक राम का नाम हद्धय से प्रकट नहीं होता, तब तक दुःख ही प्रकट होता-संत तिलकराम

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