उदयपुर, 19 दिसंबर। दक्षिण राजस्थान की जीवन रेखा मानी जाने वाली अरावली पर्वतमाला को लेकर पूर्व टीएसी सदस्य (राज्य सरकार) लक्ष्मी नारायण पंड्या ने चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि सदियों से दक्षिण राजस्थान की पहचान अरावली की पहाड़ियों के रूप में रही है और यह पर्वतमाला लगभग 15 जिलों के पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा और जल, जंगल, कृषि भूमि के संतुलन में अहम भूमिका निभाती रही है।
पंड्या ने चेतावनी दी कि यदि अरावली को नष्ट करने की अनुमति दी गई तो सूखे, गर्म हवाओं, अतिवृष्टि, भू-क्षरण जैसी पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ेंगी और दक्षिण राजस्थान में स्थायी पर्यावरणीय संकट पैदा होगा। उन्होंने नई परिभाषा पर भी आपत्ति जताई, जिसमें केवल 100 मीटर या उससे ऊँची पहाड़ियों को ही अरावली में शामिल किया गया है। उनके अनुसार, यह परिभाषा मानव जीवन और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा साबित होगी।
उन्होंने कहा कि यदि 100 मीटर की परिभाषा लागू हो गई, तो वन क्षेत्र, जल स्रोत, कृषि भूमि, और जीव-जंतुओं का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। अवैध खनन, निर्माण और पत्थर व लकड़ी की कटाई करने वाले माफियाओं को खुला संरक्षण मिल जाएगा। पंड्या के अनुसार, इस नई परिभाषा के लागू होने पर वर्तमान अरावली की 90 प्रतिशत से अधिक पहाड़ियाँ संरक्षण से बाहर हो जाएँगी, जिससे उदयपुर, सलूम्बर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, सिरोही, राजसमंद, पाली और अन्य जिलों में स्थायी पर्यावरणीय विनाश का खतरा बढ़ जाएगा।
टीएसी सदस्य लक्ष्मी नारायण पंड्या ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि जनहित में 100 मीटर की नई परिभाषा को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए और राजस्थान की जनता की भावनाओं एवं पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखते हुए पुरानी अरावली परिभाषा को यथावत लागू रखा जाए। साथ ही उन्होंने सभी राजनीतिक जनप्रतिनिधियों से अपील की है कि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस मुद्दे पर आवाज़ बुलंद करें।
पंड्या ने कहा, “अरावली कोई पत्थरों की ढेरी नहीं, बल्कि हमारी जीवन रेखा है। इसे नष्ट करना मतलब हमारी जीवन रेखा ही समाप्त करना है।”
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