– मालदास स्ट्रीट आराधना भवन में चल रहे है निरंतर धार्मिक प्रवचन
– पर्युषण में प्रतिदिन व्याख्यान, सामूहिक ऐकासना, प्रतिक्रमण तप आराधना जारी
24 news Update उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है। श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि आराधना भवन में पर्युषण महापर्व के तहत आचार्य संघ के सानिध्य में सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन सुबह व्याख्यान, सामूहिक ऐकासना व शाम को प्रतिक्रमण आदि की तप साधना कर रहे है।
जावरिया ने बताया कि गुरुवार को पर्युषण महापर्व के पहले आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा आज पर्वाधिराज का दूसरा दिन है। क्षमापना पर्वाधिराज का तीसरा कर्तव्य है क्षमापना। क्षमापना पांचों कर्तव्यों के मध्य है। क्षमापना के दोनों और दो-दो कर्तव्य है। हमारे जीवन की तीन अवस्थाओं (बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था) में से युवावस्था ज्यादा कीमती है। इसी उम्र में कुछ सर्जन किया जा सकता है। इन तीनों में से मध्याह्न में ही सूर्य की तेजस्विता अपनी चरम सीमा पर होती है। इसी तरह पांचों कर्तव्यों के मध्य में स्थित क्षमापना का भी उतना ही महत्व है। क्षमा-याचना एवं क्षमा-प्रदान जैन-शासन के आदर्श है। क्षमापना ही पर्वाधिराज का प्राण है। निष्प्राण देह की कोई कीमत नहीं। बिना क्षमापना के आराधना की कोई कीमत नहीं। क्षमापना का अर्थ है वैरभाव का विसर्जन और प्रेम एवं मित्रता की स्थापना। गलती करना, मनुष्य का स्वभाव है परन्तु दूसरों की गल्तियों को उदार मन से माफ करना दैवत्व है । क्रोध का प्रत्यस्त्र है क्षमा । क्रोध है आग और क्षमा है शीतल जल। आग की अपेक्षा पानी की शक्ति ज्यादा है। क्षमा के समक्ष क्रोध टीक नहीं सकता है। क्षमावान आराधक बनता है, क्रोधी विराधक बनता है। “क्रोधे क्रोड पूरवतणं, संयम फल जाय” क्रोध करने से एक करोड़ पूर्व तक की हुई संयम साधना भी निष्फल चली जाती है। जिसके हृदय में वैरभाव की आग प्रज्वलित रहती है, वह आत्मा अध्यात्म / आत्महित के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकती है। जहाँ क्रोध उत्पन्न होता है… वहाँ साधना स्थगित हो जाती है। क्रोध के विपाक अति भयंकर है, अत्यन्त कटु है। क्रोध परिताप पैदा करता है, आपस के प्रेम का नाश करता है, दूसरों को उद्वेग पहुँचाता है। क्रोध के कटु विपाकों का विचार कर क्रोध को निष्फल बनाने की दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए ।
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