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अरावली को बचाने की गुहार राष्ट्रपति के नाम भीलवाडा जिला कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन

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24 News Update भीलवाड़ा. भीलवाड़ा में अरावली पर्वतमाला के संरक्षण और अवैध खनन पर रोक लगाने की मांग को लेकर आज पर्यावरण प्रेमी मोतीलाल सिंघानिया ने भारत की राष्ट्रपति के नाम जिला कलेक्टर, भीलवाड़ा को दिया ज्ञापन । ज्ञापन की प्रतियां प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को भी प्रेषित की गई हैं। समस्त पर्यावरण प्रेमियों ने राष्ट्रपति से इस संवेदनशील विषय पर हस्तक्षेप करने की भावुक अपील की है।ज्ञापन के माध्यम से अरावली को ’राष्ट्रीय धरोहर’ घोषित करने और हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश पर पुनर्विचार करने की अपील की गई है, जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को खनन की श्रेणी में रखा गया है। ज्ञापन में इस बात पर गहरा दुख व्यक्त किया गया है कि अरावली, जो विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, आज भू-माफियाओं और अवैध खनन की भेंट चढ़ रही है।मोतीलाल सिंघानिया ने बताया कि, ’अरावली केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि राजस्थान की आत्मा है। यह 692 किमी. पर्वत श्रृंखला है जिसमें भारत की सबसे ऊंची चोटी गुरू शिखर 1722 मीटर माउण्ट आबू में स्थित है। इसमें कई जंगल, राष्ट्रीय अभ्यारण, तालाब, धररे, खाईयां, प्राकृतिक झरने व हजारों प्रजातियों के पेड़-पौधें व जंगली जीव जंतु पाये है। जिसकी मौत के साथ सौदा किया जा रहा है। यह हमें थार मरुस्थल के विस्तार से बचाती है और जल स्तर को बनाए रखती है। यदि 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को सुरक्षा के दायरे से बाहर रखा गया, तो राजस्थान का 90 प्रतिशत हिस्सा रेगिस्तान बनने की राह पर अग्रसर हो जाएगा।ज्ञापन में अरावली के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व को देखते हुए इसे ’राष्ट्रीय धरोहर’ का दर्जा दिया जाने, 100 मीटर की ऊंचाई वाले मापदंड को निरस्त कर पूरी पर्वत श्रृंखला को खनन मुक्त घोषित किया जाने, वन क्षेत्रों और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में चल रहे अवैध खनन को तुरंत बंद करवाया जाने, आने वाली पीढ़ियों को जल संकट और प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए अरावली के जंगलों और वन्यजीवों का संरक्षण सुनिश्चित हो की मांग की गई।सिंघानिया ने चेतावनी दी है कि अरावली के कमजोर होने से उदयपुर, माउंट आबू, कुंभलगढ़ और अजमेर जैसे पर्यटन स्थलों की पहचान खत्म हो जाएगी। गिरता भूजल स्तर और बढ़ती गर्मी इस बात का संकेत है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ अब मानव जीवन के लिए खतरा बन चुकी है।

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