24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। सरकार की मंजूरी से लाखें पुस्तकें छप गईं, वितरित भी हो गईं। पिछले सत्र में भी पढ़ाई गईं। मगर अब अचानक सरकार ने उन पर रोक का आदेश जारी किया है। इस पर अब तक करीब ढाई करोड़ का खर्च हो गया है। बड़ा सवाल यह उठता है कि ढाई करोड़ की चपत जिन्होंने लगाई क्या उनसे पैसा वसूल हो पाएगा? इतने पैसे से तो ना जाने कितने बच्चों की फीस भरकर उनका भविष्य स्वर्णिंम हो जाता। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, हर सरकार के दौर में होता चला आया है। पुस्तकों में से चेप्टर हटाना, डिलीट करवाना आदि खेल बरसों से चल रहे हैं। लेकिन जो आर्थिक चपत लग रही है उसकी भरपाई कौन करेगा? शिक्षा की गुणवत्ता, जर्जर स्कूल, निजी स्कूलों में पुस्तकों के नाम पर खुली लूट पर सरकार का ध्यान आखिर कब जाएगा?
बहरहाल, राजस्थान बोर्ड की 12वीं की एक किताब पर विवाद हो गया है। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ’आजादी के बाद का स्वर्णिम पुस्तक में पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह जैसे नेताओं के योगदान का विस्तृत वर्णन है, लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदान को अपेक्षाकृत कम तवज्जो दिए जाने को लेकर सरकार ने नाराजगी जाहिर की है। इसके चलते न केवल इन किताबों को विद्यार्थियों को पढ़ाने पर रोक लगा दी गई है। बोर्ड में पदस्थ सीनियर असिस्टेंट डायरेक्टर दिनेश कुमार ओझा को एपीओ (अपेक्षित प्रतीक्षा आदेश) कर दिया गया है। मुख्यालय बीकानेर स्थित शिक्षा निदेशालय में कर दिया गया है। इसे बोर्ड सचिव कैलाश चंद्र शर्मा ने प्रशासनिक निर्णय नाम दिया हैं यह पुस्तक पिछले साल भी पढ़ाई गई थी। इस साल पुराने सिलेबस के तहत किताबें सरकारी परमिशन से ही छापी गई। यही नहीं राजस्थान राज्य पाठ्यपुस्तक मंडल के बैनर तले नए सत्र के लिए 4.90 लाख किताबें और छापी गई जिनमें से 80 प्रतिशत से अधिक किताबों का वितरण राज्य के 19,700 स्कूलों में हो चुका है। अब सरकार कह रही है कि यह किताब विद्यार्थियों को नहीं पढ़ाई जाएगी। शिक्षामंत्री मदन दिलावर ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “चाहे लाखों की किताबें बर्बाद हो जाएं, लेकिन हम बच्चों को झूठा या पक्षपातपूर्ण इतिहास नहीं पढ़ा सकते। गलत जानकारी ‘जहर’ के समान है और हम वह नहीं बांट सकते।” कांग्रेस ने भाजपा सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। प्रदेशाध्यक्ष और गोविंदसिंह डोटासरा ने कहा, “क्या सरकार बच्चों से भारत का असली इतिहास छुपाना चाहती है? सरकार शिक्षा को विचारधारा की प्रयोगशाला बना रही है।”
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