24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में पिक एंड चूज का अजीब खेल चल रहा है जिसे देख कर हर कोई हतप्रभ है। दो तरह के कर्मचारी हड़ताल करते हैं। एक नियमित और दूसरे बरसों से काम कर रहे व हर महीने वेतन के लिए संघर्ष कर रहे अस्थायी कर्मचारी। पिछले दिनों नियमित और अस्थायी कर्मचारियों ने अपने अपने मुद्दों पर हड़ताल की और कुछ दिनों तक काम नहीं किया। लेकिन विश्वविद्यालय को अब जब महीना पूरा होने पर वेतन बनाने की बारी आई तो अचानक याद आया कि अस्थायी कर्मचारियों ने कुछ समय तक काम ही नहीं किया था। क्यों ना एक कमेटी बना कर वेतन काटने की प्रक्रिया शुरू की जाए।
सो, वीसी के आदेश पर एक कमेटी बना दी गई है जो सात दिन में वेतन कटौती पर अपनी रिपोर्ट देगी। आदेश की भाषा में ही स्पष्ट लिखा है कि वेतन कटौती की जानी है। अर्थात वेतन तो काटना ही है लेकिन उसका निर्णय कमेटी को करना है। यह आदेश कुलसचिव की ओर से जारी किया गया है। एसएफएबी कर्मचारियों के लिए इस प्रकार के आदेश के बाद चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है कि क्या सुविवि में एक दो नियम चल रहे हैं। एक स्थायी कर्मचारियों के लिए तो दूसरे अस्थायी कर्मचारियों के लिए। जिन स्थायी कर्मचारियों ने हड़ताल की उनका वेतन क्या काटा जा रहा है या फिर कोई कमेटी बनाई गई है या बनाई जानी है, इस पर अभी कोई स्पष्ट आदेश सामने नहीं आया है। चर्चा यह हो रही है कि कमेटी सिर्फ एसएफएबी कर्मचारियों के लिए ही क्यों बनी जबकि हड़ताल तो स्थायी कर्मचारियों ने भी की थी। क्या यह मनमाने नियम लागू होने का मामला है? आदेश में लिखा है कि कुलपति के निर्देशानुसार एस.एफ.ए.बी. कार्तिक माह दिसम्बर, 2024 एवं जनवरी, 2025 में हड़ताल पर रहे। अतः एस.एफ.ए.बी. कार्मिकों का हडताल पर रहे दिवसों की वेतन कटौती की जानी है। इस हेतु निम्नलिखित सदस्यों की समिति गठित की जाती हैं
- प्रो. बी.एल. वर्मा, वि.वाणिज्य महाविद्यालय
- प्रो. शूरवीर सिंह भाणावत, वि.वाणिज्य महाविद्यालय
- डॉ. वी.सी. गर्ग, कुलसचिव
- डॉ. शिल्पा सेठ, वि.विधि महाविद्यालय
- डॉ. जी.एल. वसीटा, व.लेखाधिकारी
उक्त समिति प्रकरण की जांच कर अपनी रिपोर्ट सात कार्यदिवस में कुलपति महोदया को प्रस्तुत करेगी।
कहीं आंतरिक राजनीति का खेल तो नहीं
काम नहीं करने पर वेतन काटा जाना आदर्श रूप में एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है जो सबको पता है। इस मामले में भी सुविवि प्रशासन जो चाहे, निर्णय स्व विवेक से कर सकता है। उसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन सवाल तब उठते हैं जब यही कर्मचारी दो बार हड़ताल करते हैं तो वेतन नहीं काटा जाता है। तीसरी बार जब जयपुर से उनका एक साल का एक्सटेंशन का लेटर आ जाता है तब वेतन काटो कमेटी बना दी जाती है। मजे की बात है कि इसी कालखंड में और भी हड़तालें होती हैं जिनमें ना कमेटी बनती है ना वेतन कटता है। कुछ लोग कह रहे हैं कि कहीं यह मामला जयपुर से एक साल के आदेश के बाद की स्थितियों के कारण तो नहीं हुई है। ऐसा कैसे हो सकता है कि वही अधिकारी, वहीं सांस्थानिक मुखिया, दो बार हड़ताल पर वेतन पूरा दिया, तीसरी बार कमेटी बना दी। जबकि स्थायी कर्मचारियों पर महाचुप्पी साध गए। यही चुप्पी अब सवाल बनकर गूंज रही है। नॉन टीचिंग के लिए कमेटी क्यों नहीं बनी यह सवाल आने वाले दिनों में बड़ा होने वाला है।

