24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर 05 सितम्बर /आदिवासी और घुमन्तु जातियां राष्ट्र की वो थाती है जिसने सदैव हमारे संस्कारों औैर संस्कृति को बचाए रखने क कार्य किया है और आज स्थिति ये है उनके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए प्रयास करने पड़ रहे है। तत्कालीन विदेशी शासकों ने अपने हितों की पूर्ति के लिए इनकी सांस्कृतिक विरासत समाप्त कर समाज से दूर अंतिम पायदान में पटक दिया । समाज से उपेक्षित होकर भी आज ये जातियां समाज को अपेक्षा की नजारों से देख रही है। देश में आज भी कुछ ताकतें छोटी जातियों के अस्तिव को मिटा देश को कमजोर करना चाहती है। हम सभी को सामाजिक समरसता को अपनाकर पीछे छूट रही इन जातियों को मुख्य धारा से जोड़ने के प्रयास कर देश की उन्नति का आधार तैयार करना होगा। आदिवासियों का संबंध तो द्वापर युग में भगवान राम से रहा है। देश में आज विघटनकारी ताकतें आदिवासियों से उनके हिन्दू होने का हक छिन रही है जबकि संस्कारों और धार्मिक रिवाजों में आदिवासी हिन्दू रीति रिवाजों को ही मानते आए है। उक्त विचार जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय एवं घुमंतू जाति उत्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में गुरूवार को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में सिकलीगर समुदाय: संस्कृति, विरासत और उत्थान विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में राजस्थान सरकार के जनजाति क्षेत्रीय विकास मंत्री बाबू लाल खराड़ी ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। खराड़ी ने कहा कि देश में धर्म और अमीरी गरीबी की खाई को पाट कर ही भारत को उससे पुरावैभव की ओर ले जाया जा सकता है।

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारत का गौरवशाली इतिहास सभी जातियों और समाजों का सममिश्रित प्रभाव है किन्तु कई युद्वों और लड़ाईयों की विजयगाथा लिखने में
सीकलीगर समुदाय की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस समुदाय के विशेष तकनीकी कौशलों द्वारा निर्मित हथियारों का कोई सानी नहीं है। वर्तमान में यह समुदाय समय के थपेड़ों और उत्थान के समुचित प्रयासों के अभाव में हाथिए पर आ गया है। संस्थान ने इस समुदाय को पुन इसकी गौरवशाली पहचान दिलाने की कोशिशांे की कड़ी में संगोष्टी का आयोजन किया है। इसके साथ ही इस समुदाय के कौशल को उचित मंच पर स्थान दिलाने के साथ साथ उनकी संस्कृति व विरासत के संरक्षण के अतिरिक्त जिविकोपार्जन के साथ शिक्षा की व्यवस्था करने की भी आवश्यकता है। घुमन्तु समुदाय के उत्थान का सामूहिक दायित्व नागरिकों, शिक्षकों और समुदायों का है।

मुख्य वक्ता आरएसएस के राजस्थान ़क्षेत्र सेवा प्रमुख शिव लहरी ने कहा कि अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण देश की कई जातियों और समुदायों से उनका सम्मान और जीवन जीने तक का अधिकार छीन लिया। उन्हें एकाकी कर उनके विरासत और संस्कारांे से विमुख कर गर्त में ले जाने का कार्य किया गया। ऐसे ही समुदायों में से एक है सिकलीगर समाज। ये समुदाय देश और धर्म को बचाने के लिए सदैव तत्पर रहा। धर्म यौद्वाओं और स्वतंत्रता सैनानियों के रूप में जिस समुदाय ने आजादी की लड़ाई तथा राष्ट्र के स्वर्णिम स्वरूप को तैयार किया, ऐसे समाज को आज बचाने के प्रयास करने पड़ रही है। विशेष कौशल के धनी इस समाज के सामने आधुनिकीकरण और मशीनीकरण के कारण परंपरागत हस्तकौशल को बचाने और रोजगार के संकट से भी इस समाज को जूझना पड़ रहा है। देश के संघर्षों से लेकर परावैभव तक के साक्षी और सहगामी इस समुदाय को उसका सम्मान लौटा कर मुख्य धारा से जोडकर ही हम इनके प्रति अपने दायित्वों को पूर्ण कर सकेंगे।

इस अवसर पर राज्य सभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, शहर विधायक ताराचंद जैन, पूर्व विधायक धर्मनारायण जोशी, राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित गोपीलाल लौहार ने भी सिगलीकर समाज की स्थिति और उनके उत्थान हेतु अपने सुझाव देते हुए कहा कि कला की कोई जाति नहीं होती है।

दो तकनीकी सत्रों में अतिरिक्त महाधिवक्ता एडवोकेट डॉ. प्रवीण खण्डेलवाल, डॉ. प्रशांत पौराणिक, डॉ. मनीष श्रीमाली, ज्ञानी जी, राजेन्द्र सिकलीकर, शक्तिधर सुमन, जीएल गाडरी, प्रवीण जोशी ने भी अपने विचार व्यक्त किए और प्रतिभागियोे द्वारा शोध पत्रों का वाचन किया गया।

प्रारंभ में चितौड़ प्रांत अध्ययन प्रमुख प्रो. वीणा सनाढ्य ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह बहुत बड़ी विडम्बना है कि हमारे अपने और युवा पीढ़ी उन नायकों के योगदान और अस्तित्व से ही अनजान है जिन्होंने देश के गौरव के लिए अपना योगदान दिया। इसका कारण यह है कि हमारे ऐसे नायक समाजों को तुष्टिपूर्ति के लिए वंचित और एकाकी जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया गया। राजस्थान, महाराष्ट्र,दिल्ली, एमपी और हरियाणा में फैले सिकलीगर समाज को मुख्य धारा में लाने के लिए दादा साहेब इदते आयोग की सिफारिशों को अमल में लाना होगा।

इनका हुआ सम्मान-

हस्पशिल्प कला और घुमन्तु समुदाय के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले शिल्पकार देपाला सिंह बावरा, सरदार मगन सिंह भाटिया, जितेन्द्र सिंह टकराना, अंतरसिंह बरनाला, किशोर सिंह खालसा, औंकारलाल लौहार, लालचंद सिकलीगर,हिम्मत लौहार, गोपीलाल लौहार, राजेन्द्र सिकलीगर, मनोहर पंवार का पगड़ी, उपरना, शॅाल और प्रशस्ती पत्र देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर घुमन्तू जाति उत्थान न्यास से क्षेत्र घुमन्तू प्रमुख महेन्द्र सिंह, महावीर शर्मा, विभागसंघ चालक हेमेंन्द्र श्रीमाली, प्रांत से प्रभूलाल कालबेलिया, पुष्कर लौहार, डॉ. वीणा सनाढ्य, मगन जोशी, नरेन्द्र सोनी, रमन सूद, विभाग से सुरेन्द्र खराड़ी और महानगर से चुन्नीलाल पटेल, पूर्व पार्षद एवं समाजसेवी केके कुमावत, विजय प्रकाश विप्पलवी, विद्यापीठ के रजिस्ट्रार डॉ. तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियन्त्रक डॉ. पारस जैन, डा.ॅ युवराज सिंह राठौड़ , एडवोकेट दिनेश गुप्ता, डॉ. भवानीपाल सिंह, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. कला मुणेत, प्रो. मंजू मांडोत, डॉ. चन्द्रेश छतलानी, डॉ. रचना राठौड़, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. अमी राठौड़, डॉ सुनीता मुर्डिया, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू रठौड़, डॉ. सपना श्रीमाली, डॉ. हिम्मत सिंह, डॉ. जयसिंह जोधा, डॉ. रोहित कुमावत, डॉ. यज्ञ आमेटा सहित देशभर से आए विद्वानों, समाज के प्रतिनिधियों सहित गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रचना राठौड़ ने किया तथा धन्यवाद महावीर शर्मा ने ज्ञापित किया।


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By desk 24newsupdate

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