24 न्यूज़ अपडेट नेशनल डेस्क। मध्य प्रदेश के जबलपुर में 19 वर्षीय अथर्व चतुर्वेदी ने कमाल कर दिया। दृढ़ निश्चय, तर्कशक्ति और आत्मविश्वास से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण की लड़ाई लडी। न केवल प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में यह व्यवस्था लागू करवाई, बल्कि न्याय और समानता के प्रति अपने अद्वितीय योगदान से समाज को प्रेरित किया। अथर्व चतुर्वेदी वकील के बेटे हैं, उन्होंने नीट की परीक्षा 2024 में 720 में से 530 अंक हासिल की। प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा, हालांकि, काउंसलिंग के आखिरी दौर तक सीट न मिलने पर पता चला कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में ईडब्ल्यूएस आरक्षण की व्यवस्था लागू ही नहीं थी। इसके विपरीत, अन्य श्रेणियों जैसे एससी, एसटी और विकलांग वर्ग के लिए आरक्षित सीटें उपलब्ध थीं। उन्होंने पिता, मनोज चतुर्वेदी से सलाह ली और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर करने का फैसला किया। शुरुआत में पिता ने पैरवी की, लेकिन पहली सुनवाई में तकनीकी खामियां रह गईं। उन्होंने गलती से नीट परीक्षा को चुनौती दे दी, जिस पर सरकारी वकील ने आपत्ति जताईं। इस पर अथर्व ने खुद केस लड़ने का निर्णय लिया। संविधान, कानून की धाराओं, न्यायिक फैसलों और गजट नोटिफिकेशन का गहन अध्ययन किया। कोर्ट की प्रक्रियाओं को समझा और हर पहलू पर पूरी तैयारी की। दूसरी सुनवाई के दौरान अथर्व कोर्ट रूम में पिछली बेंच पर बैठे थें पिता ने कोर्ट को बताया कि, ’’याचिकाकर्ता खुद पैरवी करना चाहता है। जूनियर वकीलों ने मजाक किया कि “अब बच्चे भी कोर्ट में दलील देंगे.“ लेकिन जब अथर्व ने बहस शुरू की, तो उनकी स्पष्ट और तार्किक दलीलों ने अदालत को प्रभावित किया. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक कुमार जैन ने उनकी उम्र और पृष्ठभूमि के बारे में पूछा. जब उन्होंने बताया कि वह नीट की तैयारी कर रहे हैं, तो जजों ने कानूनी समझ की सराहना करते हुए कहा, “तुम्हें डॉक्टर नहीं, वकील बनना चाहिए. तुम्हारे लिए ही यह कोर्ट रूम बना है.“ केस कुल 37 दिनों तक चला. अथर्व ने अपनी दलीलों में यह तर्क दिया कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में ईडब्ल्यूएस कोटा लागू न होने के कारण उन्हें और अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। 17 दिसंबर 2024 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि अगले शैक्षणिक सत्र से प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में म्ॅै कोटा सुनिश्चित किया जाए. यह निर्णय न केवल अथर्व की कानूनी समझ का प्रमाण है, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
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