24 Ness update उदयपुर, 19 जून। अम्बेरी हाईवे पर लगभग 18 करोड़ रुपये मूल्य की सरकारी भूमि पर दो साल से अधिक समय तक भूमाफियाओं का कब्जा बना रहा, उन्होंने बाउंड्रीवालें खड़ी कर दीं, कमरे बना दिए, और फर्जी स्टांप पेपर पर भूखंड तक बेच डाले—मगर उदयपुर विकास प्राधिकरण (यूडीए) की नींद अब जाकर खुली। गुरुवार को जेसीबी और पुलिस के साथ यूडीए ने कार्रवाई की, लेकिन बड़ा सवाल यही है: जब अतिक्रमण दो साल से हो रहा था, तो यूडीए कर्मचारी क्या कर रहे थे?
राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार, अम्बेरी गांव की खसरा संख्या 713, 714 और 715 की भूमि यूडीए के नाम दर्ज है। इस जमीन पर लंबे समय से भूमाफियाओं ने अतिक्रमण कर रखा था। यहां 8 बाउंड्रीवाल, 10 पक्के कमरे, रसोई घर तक बना दिए गए और इसका कारोबार खुलेआम चल रहा था।
फर्जीवाड़े की हद यह रही कि भूमाफिया भोले-भाले लोगों को ये भूखंड फर्जी स्टांप पेपर पर बेचते रहे। जब कुछ लोगों को ठगी का आभास हुआ और उन्होंने यूडीए से शिकायत की, तब जाकर प्राधिकरण हरकत में आया।
यूडीए आयुक्त राहुल जैन के अनुसार, पहले भी दो बार लोगों को पाबंद किया गया था कि वे राजकीय भूमि पर निर्माण न करें, पर निर्माण कार्य रुका नहीं। सवाल उठता है कि अगर पाबंद किया गया था तो अवैध निर्माण कैसे चलता रहा? क्या यूडीए की निगरानी प्रणाली इतनी लचर है कि महीनों तक चल रहे निर्माण उन्हें दिखे ही नहीं?
कार्रवाई से ज्यादा जरूरी जवाबदेही
यूडीए का काम सिर्फ कार्रवाई करना नहीं, अवैध कब्जों को समय रहते रोकना और उन्हें पनपने ही न देना है। लेकिन जब दो साल तक सरकारी ज़मीन पर दीवारें खड़ी होती रहीं और रसोई तक बना दी गई, तो यह यूडीए की घोर लापरवाही का प्रमाण है। अफसरों और पटवारियों को वेतन किस बात का दिया जा रहा है—अगर उन्हें यही नहीं पता कि उनकी जमीन पर कब कब्जा हो गया?
गुरुवार को हुई कार्रवाई में तहसीलदार डॉ. अभिनव शर्मा, भू-अभिलेख निरीक्षक राजेंद्र सेन, पटवारी सूरपाल सिंह सोलंकी, बाबूलाल तेली, दीपक जोशी, होमगार्ड और जेसीबी टीम ने अतिक्रमण हटाया। लेकिन कार्रवाई केवल तभी सार्थक मानी जाएगी जब प्राधिकरण की अंदरूनी कार्यप्रणाली की भी जांच हो, ताकि जिम्मेदार कर्मचारियों और अधिकारियों की ढिलाई पर कार्रवाई हो।
बिल दिखाए तो कार्रवाई रुकी!
कार्रवाई के दौरान एक दंपत्ति ने पानी और बिजली के बिल दिखाए, जिस पर यूडीए ने उनके निर्माण को “फिलहाल” छोड़ दिया। सवाल है, क्या सिर्फ बिल दिखा देना अतिक्रमण को वैध बना देता है? यदि हां, तो कल हर भूमाफिया बिजली का कनेक्शन ले अतिक्रमण को जायज साबित कर देगा।
निष्कर्ष:
इस कार्रवाई ने एक बार फिर यूडीए की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दो साल तक अतिक्रमण पर आंख मूंदे बैठे रहना, चेतावनियों के बावजूद कोई ठोस कदम न उठाना और फिर जब मामला खुल जाए तो जेसीबी लेकर पहुंच जाना, यह दर्शाता है कि प्राधिकरण की निगरानी प्रणाली में भारी खामी है। यदि अब भी अफसरों की जवाबदेही तय नहीं की गई, तो कल इसी तरह दूसरी सरकारी ज़मीनें भी भूमाफियाओं की गिरफ्त में होंगी—और यूडीए बस जेसीबी लाकर “कार्रवाई” करता नजर आएगा।
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