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मैग्नस अस्पताल लापरवाही कांड : गोयल साहब का दबाव बनाम बार एसोसिएशन का मोर्चा, जांच ‘कछुआ चाल’, दो दिन बाद भी नहीं बताए जांच कमेटी सदस्यों के नाम, बार एसोसिएशन ने ज्ञापन दिया तो कहा-कल तक बता देंगे

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। मैग्नस अस्पताल की लापरवाही से बच्चे की आंखें चले जाने के मामले में 2 महीने तक जिला प्रशासन शिकायत के बाद भी सोया रहा, जब दो दिन पहले बार एसोसिएशन उदयपुर के सदस्यों ने मोर्चा संभाला तो घबरा कर प्रशासन ने अस्पताल में टीम भेज दी, कहा कि जांच टीम बन गई है रिपोर्ट आने पर अग्रिम कार्रवाई होगी। आज जब बच्चे के पिता एडवोकेट योगेश जोशी बार के सम्मानीय सदस्यों व पदाधिकारियों एडवोकेट पंकज तम्बोली, एडवोकेट धीरज माली, एडवोकेट अजय आचार्य, एडवोकेट निशांत बागड़ी आदि को लेकर गए तो पता चला कि ना तो सीएमएचओ ना ही जिला कलेक्टर कार्यालय में जांच कमेटी का अता-पता है। ज्ञापन देकर पूछा कि कमेटी में कौन-कौन है जरा हमें भी बताओ, तो कहा गया कि कल बता देंगे। बच्चे के पिता ने कहा कि पांच दिन में जांच का भरोसा सीएमएचओ व कलेक्टर कार्यालय से मिला है। कल सुबह लिखित में कमेटी के बारे में बता देंगे। बड़ी ऑफिस में सीएमएचओ शंकरलाल बामणिया ने कहा कि मैं अपनी अलग कमेटी बनाउंगा, कलेक्टर साहब की कमेटी में सीनियर डाक्टर आएंगे जिनके नाम अलग से आएंगे। साफ हो गया कि कमेटी बनाई ही नहीं, क्यों नहीं बनाई यह तो अफसर ही जानें मगर बच्चे के पिता पहले ही कह चुके हैं कि किसी गोयल साहब का दबाव है जिससे यह सब हो रहा है। क्या गोयल साहब का दबाव इतना है कि जांच कमेटी ही नहीं बन पा रही है या फिर आगे भी उनका दबाव समय-समय पर अलग-अलग रूपों में सामने आता रहेगा। अब इस मामले में उदयपुर बार एसोसिएशन ने भी मोर्चा बाराबर संभाले हुआ है। ऐसे में नतीजा आने की उम्मीद है। बच्चे के पिता ने कहा कि वे इंतजार करते ही रह गए कि कोई तथ्यों के बारे में पूछेगा, बुलाएगा, कागज मांगे जाएंगे लेकिन दे दिन बीत गए कुछ भी नहीं हुआ। आज जब पहल की तो कह रहे हैं कि कल तक बता देंगे। अब सवाल यह उठता है कि कहीं इस मामले में किसी को बचाने के लिए तारीख पर तारीख का खेल तो नहीं खेला जा रहा है। अस्पताल पर आरोप है कि प्री मेच्योर बेबी की समय रहते आंखों की आरओपी जांच ही नहीं करवाई जिससे वह अंधा हो गया। बाद में डिस्चार्ज समरी तक बदल दी। यह सब डाक्टर मनोज अग्रवाल की लापरवाही से हुआ। बच्चे के पिता ने कहा कि यह विंडबना है कि मुझे बच्चे और पत्नी की सार संभाल के साथ ही बार-बार अस्पतालों और प्रशासनिक कार्यालयों के भूखे-प्यासे रह कर चक्कर लगाने पड रहे हैं। इस मामले में एक और बात गौर करने लायक है कि शहर के दोनों प्रमुख दलों के नामचीन नेता और वैधानिक पदों पर बैठे महानुभावों ने अब तक अपने श्रीमुख से एक शब्द भी नहीं निकाला है। प्रशासन से सवाल जवाब तक नहीं किए हैं कि जांच में लापरवाही क्यों हो रही है?

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