24 न्यूज अपडेट उदयपुर। मैग्नस अस्पताल की लापरवाही से वकील योगेश जोशी के बच्चे की आंखें चली गईं थी। खूब हंगामे के बाद आखिरकार जिला प्रशासन को गोयल साहब के दबाव को दरकिनार करते हुए जांच कमेटी बिठानी पड़ी और जांच शुरू हो गई। अब इसी अस्पताल का एक और मामला सामने आया है जिसमें पिता का कहना है कि डाक्टर की लापरवाही से बच्चे की आंतें चली गईं, वो जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। मैंग्नस अस्पताल का 2 लाख 34 हजार का बिल भरने के बाद भी हाथ लगी मायूसी। आंखों में आंसू लिए अपने नन्हें से जिगर के टुकड़े को वे एमबी अस्पताल लेकर आए और आज 1 महीना 4 दिन बाद पिता की हालत ये है कि भूखे-प्यासे रह कर चौबीस घंटे बच्चे के पास ही खड़े हैं। उम्मीदें पथरा गईं हैं, सूझ ही नहीं रहा है कि आखिर करें तो क्या करें। अस्पताल में खड़े-खड़े पांव सूज गए हैं। डाक्टरों का कहना है कि इस बच्चे की आंतें खत्म हो चुकी हैं। पहले दिन जिस खुले और खिले, जिंदगी की उम्मीदों से भरपूर जिस बच्चे को देखा था, अब उसका चेहरा धीरे-धीरे मुरझा रहा है, वजन लगातार कम होता जा रहा है। हाथ में लेने से डरता हूं, हाथ कांपने लगते हैं। पिता कहते हैं-यह सब हुआ है मैग्नस अस्पताल के डाक्टर की लापरवाही से। आज 24 न्यूज अपडेट ने उनका दुख जाना जो हर किसी के दिल को द्रवित कर देने वाला है।
बच्चे के पिता मोहम्मद शहादत हुसैन ने बताया कि 22 अप्रेल को उनकी पत्नी के ऑपरेशन से डिलीवरी मैग्नस हॉस्पिटल में हुई। दो बेटियों के बाद बच्चे का जन्म होते ही खुशियां छा गईं, डाक्टर ने बुलाकर दिखाया व कहा कि बच्चा कंप्लीट है। मैंने फोटो लिया, बच्चा स्वस्थ था। डाक्टर ने कहा कि आईसीयू में ले जा रहा हूं। क्लीन करके ऑक्सीजन चेक करके वापस वार्ड में शिफ्ट कर दूंगा। दूसरे दिन बच्चो ंके डाक्टर मनोज अग्रवाल ने कहा कि बच्चा कंप्लीट है, आज भी उसको आईसीयू में ही रहने दो। फिर मैंने सोचा कि बच्चे को रहने दो, दो चार दिन में छुट्टी मिल जाएगी। चार दिन बाद डॉक्टर मनोज अग्रवाल ने बुलाकर कहा कि बच्चे के पेट में इंफेक्शन है व 12 घंटे के लिए ट्रीटमेंट बंद कर दिया हैं। चौबीस घंटे बाद भी डाक्टर को समझ ही नहीं आया व कहा कि पेट फूल रहा है। उसके बाद पूछा कि क्या आगे करना है तो उन्होंने कहा कि आप देख लो कहीं पर ले जाना चाहते हो तो ले जाओ। मैंने बाल चिकिल्सालय में संपर्क किया और पेपर दिखाए तो कहा कि इसे ले आओ । यहां लाकर 27 अप्रेल को भर्ती करवाया व अब तक बच्चा हॉस्पिटल में है। यहां बता रहे हैं कि बच्चे की आंतें खत्म हो गई है, सीरियस है। अब मैं कहां जाउं, किससे गुहार करूं। कल सीएमएचओ व वरिष्ठ डाक्टरों के पास गया था सुनवाई में। उन्होंने कार्रवाई का आश्वान दिया। एक महीने चार दिन से मैं परेशान हूं, बच्चे के पास भूखे-प्यासे रह रहा हूं। मेरा पैर सूज जाता है खडे खड़े। टेंशन-टेंशन में खाना भी नहीं खाता हूं। अस्पताल में वाइफ का ऑपरेशन सही हुआ। डाक्टर मनोज अग्रवाल ने बच्चे के साथ लापरवाही की। मेरा मैंग्नस अस्पताल का बिल 2 लाख 34 हजार का हुआ। मैं इंसाफ चाहता हू। मेरी दो बच्चियां हैं, ये लास्ट सीजेरियन था। कल मैं एसपी साहब गया था, कलेक्टर से भी मिलकर आया। जांच चल रही है। बता रहे हैं कि मैग्नस अस्पताल में 80 परसेंट सीजेरियन हुए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जब उनका परिवार न्यूक्लियर फैमिली है। जब मैग्नस अस्पताल की थाने में शिकायत करने जाना था तो बाल चिकित्सालय के आईसीयू में पड़ोस की बेड वाले बच्चे की रिश्तेदार को अपने बच्चे की जिम्मेदारी सौंप कर सुखेर थाने गए, वहां पर चार घंटे बिठाए रखा। उसके बाद एप्लीकेशन व डाक्टयूमेंट लेकर कहा कि हम देखते हैं। थानों में ऐसा संवेदनहीन बर्ताव आखिर क्यों?
कलेक्टर साहब से सवाल-क्या कूड़ेदान में जा रही हैं सारी शिकायतें?
इस मामले में भी पुलिस प्रशासन, अस्पताल की वहीं असंवेदनशीलता है जो वकील साहब के बेटे के मामले में दिखाई दी थी। इस बच्चे का मामला भी शायद कभी सामने नहीं आता अगर वकील साहब बार एसोसिएशन को साथ लेकर लड़ाई नहीं लड़ते। आपको बता दें कि वकील साहब के मामले में जिला प्रशासन दो महीने तक उनकी शिकायत पर कुंडली मारकर बैठा रहा। सुखेर थाने से आश्वासनों की गोलियां दीं मगर किसी ने उनक एप्लीकेशन आगे तक नहीं बढ़ाई। कोई कमेटी नहीं बनी। क्योंकि यह सब कमाल था गोयल साहब के दबाव का। लेकिन जब बार एसोसिएशन के माननीय सदस्यों ने प्रदर्शन कर ज्ञापन दिया तो वहीं प्रशासन गोयल साहब के अट्रेक्टशन मोड से बाहर निकल कर एक्शन मोड में आ गया। कमेटी बन गई, जांच शुरू हो गई। पीड़ितों को बुला कर बयान लिए गए। इस मामले के साथ गरीब नवाज कॉलोनी रूप सागर रोड निवासी मोहम्मद शहादत हुसैन के बेटे के मामले की भी जांच शुरू हो गई। इसी डर से कि कहीं पर वकील नया मोर्चा खोल कर प्रशासनिक लापरवाही को एक्सपोज नहीं कर दें। कहीं पूरे शहर को यह पता नहीं चल जाए कि जो ज्ञापन और फरियादें वे प्रशासन के पास पहुंचाते हैं दरअसल वो आगे नहीं बढ़ाई जातीं बल्कि आश्वासनों के डस्टबीन के हवाले कर दी जाती है। उस पर तब तक कार्रवाई नहीं होती, जब तक कोई वजन नहीं पड़ता। दोनों मामलों ने शहर के नेताओं को भी एक्सपोज किया है जिनके पास चुनाव प्रचार के लिए घर-घर जाकर हाथ जोड़ने का समय है मगर इतने गंभीर मामले में एक बयान तक जारी करने से डर रहे हैं, बच्चों से मिलना व परिवारों के साथ उम्मीदों के दो शब्द बांटना तो बहुत दूर की बात है।
नोट : इस खबर में अस्पताल का पक्ष आने के बाद अलग से समाचार बना कर बताया जाएगा।

