(खबर में पढ़ें कि किसी पक्ष ने क्या तर्क रखे)
24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। फील्ड क्लब मामले में यूआईटी के पक्ष में स्टे आया है। अदालत अतिरिक्त संभागीय आयुक्त उदयपुर की ओर से कहा गया कि यदि हस्तगत अपील में स्थगन आदेश जारी नहीं किया जाता है तो रेस्पोडेंट की तुलना में अपीलार्थी को अपूर्णीय क्षति अधिक हो रही है व सुविधा का संतुलन भी प्रथमदृष्टया उनके पक्ष में होना प्रकट होता है। अदालत अतिरिक्त संभागीय आयुक्त में इस मुद्दे पर कल पत्रावली पेश हुई। अधिवक्ता अपीलार्थीएन. एस. चुण्डावत्त, अधिवक्ता प्रत्यर्थी अविनाश कोठारी व कमलेश चौहान मय अपीलार्थी उमेश मनवान उपस्थित। प्रत्यर्थी-1 के तामिल के साक्ष्य प्रस्तुत हुए। वकालतपत्र अधीनस्थ न्यायाल में पेशशुदा होने का कथन प्रस्तुत किया गयां
उपस्थित अधिवक्तागन की प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-81 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 पर बहस सुनी गई। अधिवक्ता अपीलार्थी द्वारा प्रार्थना पत्र के माध्यम से धारा-81 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अंकित करन को दोहराते हुए प्रस्तुत किया कि सन् 1989 में राज्य सरकार के आदेश की पालना में जिला कलक्टर, उदयपुर द्वारा शहर के आस-पास की सभी बिलानाम भूमि तत्कालीन नगर विकास प्रन्यास, उदयपुर को आदेश क्रमांक प. 12/3(89) राजस्व/86/855-61 दिनांक 15.04.1969 को आवंटित कर दी गई और उक्त भूमि नगर विकास प्रन्यास, उदयपुर हाल उदयपुर विकास प्राधिकरण के नाम अंकित कर दी गई। उक्त आदेश में राजस्व ग्राम देवाली तहसील बड़गांव (पूर्व तहसील गिर्वा) की वर्तमान आराजी संख्या 2770 रकबा 6.7400 के. भी अपीलार्थी के खाते में नगर विकास प्रन्यास उदयपुर बिलानाम आबादी दर्ज रेकार्ड हुई, तब से आज तक अपीलार्थी उपरोक्त भूमि के खातेदारी में चल रही है। उक्त भूमि अपीलार्थी के खाते में एक सक्षम आदेश की पालना में राजस्व रेकर्ड में इन्द्राज दर्ज हुई एवं उक्त सक्षम आदेश को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी गई, जिससे उक्त आदेश वर्तमान तक अखण्डनीय है। परन्तु अधीनस्थ न्यायालय द्वारा प्रत्यर्थी 1 द्वारा प्रस्तुत धारा-136 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम का स्वीकार करते हुए विवादित भूमि कथित फील्ड मतलब सोसायटी के नाम दर्ज करने का आदेश दे दिया। किसी भी समरी प्रोसेडिंग में सक्षम आदेश को चुनौती दिये बिना एवं निरस्त कराये बिना किसी के खातेदारी अधिकार समाप्त नहीं किये जा सकते हैं। फिर भी अधीनस्थ न्यायालय द्वारा अपने निर्णय दिनांक 24.07.2024 से विवादित भूमि प्रत्यर्थी-1 के नाम दर्ज करने का आदेश प्रसारित किया, जिसकी पालना कर लिये जाने पर वाद बाहुल्यता को बढ़ाया मिलेगा और अपील प्रस्तुत करने का महत्व ही समाप्त हो जावेगा। अपीलार्थी का प्रकरण प्रथम दृष्टया सुदृढ़, सुविध संतुलन अपीलार्थी के पक्ष में है और स्थगनादेश जारी नहीं किये जाने की परिस्थिति में अपीलार्थी को अपूर्णीय क्षति होगी। अतः अपीलार्थी का प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-81 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम का स्वीकार फरमाया जाकर अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय की पालना क्रियान्विती का फैसला स्थगित फरमाई जाने वा आदेश प्रदान कराया जावें।
अधिवक्ता प्रत्यर्थी द्वारा अपीलार्थी के उपरोक्त कथनों में खण्डन में अपना पक्ष रखते हुए कथन किया कि अधीनस्थ न्यायालय द्वारा अपीलाधीन आदेश पूर्ण जांच, परिक्षण एवं विचार विश्लेषण उपरान्त पारित किया गया है। विवादित्त भूमि द्वितीय भूप्रबन्ध से पूर्व क्लब के नाम दर्ज थी जिस भूप्रबन्ध के दौरान बिलानाम सरकार दर्ज कर दी गई थी, जिसे अपीलाधीन आदेश से दुरस्त किया गया है। उक्त दुरस्ती आदेश के अनुसरण में पश्चातवर्ती सभी आदेश प्रभावहीन एवं शुन्य हो जाते है। अपीलार्थी का प्रकरण किसी भी प्रकार से प्रथमदृष्टया, सुविधा संतुलन एवं अपूर्णीय क्षति का नहीं बनता है। ऐसे में अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-81 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 को खारिज फरमाया जायें।
उपस्थित अधिवक्तागण द्वारा प्रस्तुत बहस पर मनन एवं बहस के दौरान अधिवक्तागण द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजात का अध्ययन व मनन किया गया। जहां तक अधिवक्ता पक्षकरान के अभिवचनों अनुसार उनके हितों के निर्धारण का बिन्दु है यह हक व अधिकारों के संबंध में है जिसका निर्धारण अपील के अंतिम निस्तारण के समय किया जा सकेगा। इस स्टेज पर प्रकरण के तथ्यों व परिस्थितियों अनुसार किसी भी पक्षकार का प्रथमदृष्ट्या प्रकरण प्रमाणित नहीं माना जा सकता है। यदि हस्तगत अपील में स्थगन आदेश जारी नहीं किया जाता है तो रेस्पोडेंट की तुलना में अपीलार्थी को अपूर्णीय क्षति अधिक हो रही है व सुविधा का संतुलन भी प्रथम दृष्टया उनके पक्ष में होना प्रकट होता है। उपरोक्त परिस्थितियों से प्रकरण में अधीनस्थ न्यायालय उपखण्ड अधिकारी, बड़गावं के अपीलाधीन आदेश दिनांक 24.07.2024 के क्रियान्वयन को ताफैसला रोका जाना उचित है। परिणामतः पक्षकारों के मध्य अनावश्यक विवाद नहीं बढ़े, इस हेतु न्यायहित में हस्तगत अपील के निस्तारण तक/ताफैसला अपीलाधीन निर्णय दिनांक 24.07. 2024 के क्रियान्वयन एवं पालना स्थगित रखे का आदेश दिया जाता है। अधीनस्थ न्यायालय से अभिलेख तलबी हेतु स्मरण पत्र लिखा जाकर पत्रावली दिनांक 21.08.2024 को पेश हो।
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