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फतह स्कूल मामले में पत्रकार कपीश भल्ला को मिली जमानत, पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल

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24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर। उदयपुर में दो दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता कर रहे पत्रकार कपीश भल्ला को आज कोर्ट से जमानत मिल गई। तीन दिन बाद कपीश को राहत मिली है। उन्हें सूरजपोल पुलिस ने फतह स्कूल के प्रिंसिपिल की ओर से दर्ज करवाई गई एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। कपीश की गिरफ्तारी को लेकर पत्रकारों में खासा आक्रोष भी देखा गया तथा कोर्ट परिसर में मौजूद पत्रकारों ने इस मामले में जिला पुलिस अधीक्षक की ओर से प्रेसवार्ता करने व सभी तथ्यो ंको सामने रखने की भी मांग की ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके व शहर में भयमुक्त होकर हर विधा की पत्रकारिता की जा सके।
इसके साथ ही जर्नलिस्ट कपीश भल्ला के परिजन और मित्रगण भी मौजूद थे। इस मामले में पुलिस ने जिस तरीके से त्वरित गति से कार्रवाई की उसको लेकर भी पत्रकारों ने सवाल उठाए व कहा कि इस मामले को बहाने उदयपुर में पत्रकारिता को लेकर जो भ्रामकता फैलाई गई है व निंदनीय है। कपीश को अरेस्ट करने व उसके बाद सोशल मीडिया पर मीडिया को ही नेम शेम करने में जो जल्दबाजी पुलिस ने दिखाई वह गंभीर सवाल खड़े कर रही है। अधिवक्ताओं ने बताया कि माननीय न्यायालय के समक्ष यह तथ्य भी आया कि जिस तरह से राशि मांगने की बात कही जा रही है व तथ्यहीन, निराधार और मनगढ़ंत है। वीडियो पहले ही प्रसारित कर दिया गया था जबकि दूसरे पक्ष की ओर से कहा गया था कि वीडियो की एवज में किसी राशि की मांग की गई है। कपीश खोजी पत्रकारिता करते रहे हैं व जो आरोप उन पर लगाए जा रहे हैं वे बिल्कुल प्रथम दृष्टया निराधार हैं।
गौरतलब है कि पूरे मामले में जिस प्रकार से उदयपुर में पत्रकारिता की छवि को खराब करने का प्रयास किया गया है वह निंदनीय है। उदयपुर पुलिस की ओर से कल सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स और फेसबुक पर कपीश भल्ला से संबंधित समाचार प्रसारित किया गया था उसको लेकर भी पत्रकार व राजनीतिक जगत में खासी चर्चा हो रही है। पुलिस की ओर से जिस जल्दबाजी में अपने प्रेसनोट में ‘‘फर्जी पत्रकार’’ शब्द का प्रयोग किया गया उसको लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि पुलिस के पास यह लिबर्टी नहीं है कि वह जांच के निष्कर्ष से पहले ही खुद यह तय करे कि कौन पत्रकार असली है और कौन फर्जी। यू-ट्यूब पत्रकारिता की बहु प्रचलित व समीचीन विधा है और इसे लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जब कभी सवाल उठे हैं, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न निर्णयों में वाक और अभिव्यक्ति की आजादी के तहत प्रेस की स्वतंत्रता को मानते हुए इसे भी उसी श्रेणी में रखा है। देश के कई जाने-माने पत्रकार ही नहीं बल्कि देश के लगभग सभी समाचार संस्थान यू-ट्यूब पर अपनी खबरों के वीडियो प्रसारित कर रहे हैं। पुलिस को किसी एक मामले में किसी के दबाव में आकर ‘‘पिक एंड चूज करने’’ की पैंतरेबाजी आजामाने का अधिकार कतई नहीं दिया जा सकता। पुलिस इस बात को लकर खुद अपने मन से ‘‘जज’’ नहीं बन सकती कि कौन असली पत्रकार है। केवल आरोपों के आधार पर सोशल मीडिया पर जो खबर जारी की गई है उसकी पड़ताल करने पर भी स्पष्ट हो रहा है कि कहीं न कहीं पुलिस किसी दबाव में काम कर रही है।

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