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पोक्सो में सजा सख्त, लेकिन जागरूकता जरूरी

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के विधि महाविद्यालय में पोक्सो अधिनियम पर एक विशेष व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विशिष्ट न्यायाधीश पोक्सो संख्या 2, संजय भटनागर मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। भटनागर ने छात्रों को पोक्सो अधिनियम की विशेषताओं और इसके तहत बच्चों को प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से समझाया। उन्होंने बताया कि पोक्सो अधिनियम, 2012 भारत सरकार द्वारा बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया एक सशक्त कानून है। यह कानून 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और अश्लील गतिविधियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
पोक्सो अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
यौन अपराधों के मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना। बच्चों को बयान देने के लिए सुरक्षित और अनुकूल वातावरण। बच्चों की पहचान गुप्त रखने का प्रावधान। कठोर सजा का प्रावधान, जिसमें आजीवन कारावास और आर्थिक दंड शामिल हैं। अपराध से बचने के लिए जरूरी सावधानियां बरती जानी चाहिए। बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श की पहचान कराएं। उनकी गतिविधियों पर नजर रखें और उनके साथ संवाद बनाए रखें। उन्हें इंटरनेट और सोशल मीडिया के सुरक्षित उपयोग के बारे में जागरूक करें। किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत चाइल्ड हेल्पलाइन (1098) या पुलिस को दें।
समाज की भूमिका
भटनागर ने जोर देकर कहा कि समाज के हर वर्ग को बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने बताया कि पोक्सो अधिनियम का उद्देश्य केवल सजा देना नहीं है, बल्कि बच्चों को एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण प्रदान करना है। कार्यक्रम का स्वागत उद्बोधन सहायक अधिष्ठाता डॉ. शिल्पा सेठ ने दिया। मंच संचालन डॉ. स्नेहा सिंह ने किया। इस अवसर पर विधि महाविद्यालय के सह आचार्य डॉ राजश्री चैधरी, सहायक आचार्य डॉ. पी. डी. नागदा, डॉ. कल्पेश निकावत, सहायक आचार्य पंकज मीणा, अतिथि संकाय सदस्य डॉ. पंकज भट्ट सहित कई अन्य प्राध्यापक और विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम ने विधि छात्रों और शिक्षकों को पोक्सो अधिनियम की गहन जानकारी और जागरूकता प्रदान की, जिससे समाज में बच्चों की सुरक्षा के लिए सार्थक कदम उठाए जा सकें।

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