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दो गवर्नर शहर में, रात में और दोपहर में….जनता चक्की पिसिंग एंड पिसिंग और टाइम खोटी करिंग

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रिपोर्ट : जयवंत भैरविया

24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर। उदयपुर वालों, अपने टाइम स्लॉट में अब आप ‘‘वीवीआईपी देवो भवः’’ का मंत्रजाप करते हुए कम से कम रोज का आधे से एक घंटा इनके नाम कर होम करना अपने भाग्य में लिख लीजिए। रोड पर इंतजार करने की आदत डाल लीजिए और गुनगुनाते रहिये कि -चलते-चलते यूं ही रूक जाता हूं मैं, बैठे-बैठे कहीं खो जाता हूं में,,,,क्या यही प्यार है। जी हां, यही सिला मिल रहा है इन दिनों आपको और हमें उदयपुर की आम जनता होने का। इस शहर से दिल लगाकर मुहोब्बत करने का। जब चाहे रास्तों ंपर वीआईपी आ जाते हैं और हम भीड़ में गुमसुम से खो जाते हैं। फिर चाहे हम बीमार हों, जल्दी में हों, खास काम के लिए एक-एक मिनट गिनते मरे जा रहे हों। इन वीआईपी को कोई फर्क नहीं पड़ता। रास्ता रूका है तो आपको रूकना ही होगा। अपने दर्द को जज्ब करना ही होगा। नहीं रूकोगे और पंगा करोगे तो रोक दिए जाओगे। खुलकर विरोध किया तो कानूनी कार्रवाई के रास्ते खुल जाएंगे। वीआईपी भी किसी अदृश्य शक्ति की तरह से लंबे इंतजार के बाद आएगा और पलक झपकते ही ओझल हो जाएगा। उसकी एक झलक दिख जाने के बाद पीछे जब रास्ता खुलेगा तब आपको फिर से जाम में छोड़ जाएगा। आपको तो रोज रोज ट्राफिक में चक्की पिसिंग एंड पिसिंग ही करते रहना है। उदयपुर का प्रशासन की अजीब है। आपको कभी नहीं बताएगा कि रोड पर चलते-चलते आपके साथ क्या होने वाला है। आप मस्त मगन होकर ट्रैफिक में चले जा रहे हैं। अचानक पुलिस का एक डंडा आपको रूकने का इशारा कर देगा। देखते ही देखते जाम लग जाएगा। पीछे वाले समझेंगे आगे कुछ हुआ है तो बीच वाले समझेंगे कि बुरे फंसे, अब ना पीछे जाने के रहे ना आगे जाने के। जाम दस-पंद्रह मिनट बाद पता चलता है कि वीआईपी आने वाले हैं। उनके लिए रास्ता रूका पड़ा है। कोई गलियों के मुहाने पर झांक कर खुद को अंदर ठूस देने की गवाही देता दिखाई देगा तो कोई बलखाता हुआ पुलिस के इशारे पर बार-बार आगे पीछे होते हुआ दिखाई देगा। कोई हिम्मतवाला आगे बढ़ भी जाएगा तो अपनी नौकरी बचाने पुलिसवाला उसको फिर से वीआईपी वाली सीमा रेखा के इस पार कर देगा। जाम में फंसे लोग करें तो क्या करें। या तो जिला प्रशासन कोई सामूहिक गीत जारी कर दे जो जाम में कोरस के रूप में गाया जा सकता हो, या फिर कोई ऐसा टॉपक इंटरनेट पर हर रोज जारी कर दे जिस पर जाम के दौरान जमकर बहस की जा सकती हो।
आज ऐसा ही जाम देहलीगेट से लेकर सूरजपोल तक दिखाई दिया। लोगों के उद्गार सुनने को मिलेःःःः -ये क्या बार टाइम खोटी करने आ जाते हैं……। इनसे हमको क्या लेना देना, हम तो हमारे खास काम से निकले है….। नेतागिरी इस शहर के ट्रैफिक को ले डूबेगी…..। वे आते हैं आएं और आम लोगों की तरह से गुजर जाएं…..। हर बार हम ही क्यों रूकें…..। एक तो इनको वोट दो, उपर से इनके नखरे सहो….। कितने भी फ्लाई ओवर बना लो, व्यवस्था कभी नहीं सुधर सकती….। आदि-आदि बातें सुनने को मिलीं। वैसे इस खबर में हमने वे ही वाक्यांश लिए जो लिखे जा सकते हैं। वार्तालाप का वो हिस्सा नहीं लिया जो उग्र और बुरा लगने वाला है। जाम मे कुछ टूरिस्ट फंसे जो उदयपुर के यातायात सिस्टम को रद्दी बताते मिले तो कुछ लोग अस्पताल जाने वाले मिले जो कह रहे थे कि देर हुई तो मुसीबत हो जाएगी। कुछ लोगों को पौष दशमी पर मंदिर जाना था वे चूक गए तो कुछ को रेलवे स्टेशन समय पर पहुंचना था वे अंदर ही अंदर कुढ़ते ही रह गए।
आपको बता दें कि शहर का प्रमुख चौराहा देहलीगेट और यहां से चेतक सर्कल और पीछे आएं तो सूरजपोल तक का रास्ता बेहद व्यस्त है। यहां से वीवीआईपी जाएगा व आधे-आधे घंटे तक रास्ता रोका जाएगा तो फिर इस शहर का भगवान ही मालिक है। पूरे श्क्रिसमस पर टूरिस्ट बूम है। चप्पे चप्पे में टूरिस्ट घूम रहा है, यहां तक कि पैदल चल रहा है। बच्चों की छुट्टियां हो चुकी हैं। कई लोग जरूरी काम से ठंड के बावजूद शहर में आए हुए हैं उन सबके समय का क्या मोल है। उनके समय की कीमत आखिर कौन चुकाएगा?? लेकसिटी को वीवीआईपी कल्चर से मुक्त करने की जरूरत महसूस हो रही है। वीवीआईपी जब चाहे तब हमारे जीवन में दखल देगा तो जनता के तीखे सवाल भी प्रशासनिक और राजनीतिक बैचेनियां बढाएंगे। ज्यादा अचरज नहीं होना चाहिए कहीं इस बार स्थानीय निकायों में चुनाव का मुद्दा ही वीवीआईपी कल्चर ही ना बन जाएं।
एक और बात गौर करने वाली है कि पुलिस जो यहां के लॉ एंड ऑर्डर के लिए है वो घंटो ंतक सड़क पर वीवीआईपी की सेवा में लगी हुई है। उनकी प्राथमिकता में जनता पीछे छूट गई है, यहां पर पधारे गवर्नरों व अन्य वीवीआईपी को सुरक्षा देना ज्यादा प्रमुख हो गया है। उनका कॉनवाय किसी भी तरह से सरपट हवा की गति से निकल जाए, यही उनका कार्मिक कर्तव्य हो गया है। कोई मानें या ना मानें अब उदयपुर के राजनेता भी इस मुद्दे को ज्यादा दिन तक छिपा कर नहीं रख सकेंगे। उन्हें भी इस मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय रखनी ही होगी। नहीं रखेंगे तो जनता उनका दामन थाम लेगी जो इन मुद्दों पर बात करेगा। अव्वल तो वीवीआईपी का कोई भी कार्यक्रम शहर के व्यस्त इलाकों में होना ही नहीं चाहिए। यदि होना है तो कम से कम सात दिन पहले से बार-बार लोगों को सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से बता दिया जाना चाहिए कि साहब पधार रहे हैं, आप सड़कों को खाली कर दीजिए, उस तरफ झांक कर भी मत देखिये। इसके साथ ही कड़े नियम बना लिए जाएं कि कोई भी वीवीआईपी मूवमेंट व्यस्त समय में नहीं होगा। उनको अलग से टाइम स्लॉट दीजिए उनके कार्यक्रम शहर के बाहर एसी जगहों पर रखे जाएं जहां पर आने और जाने के अन्य पर्याप्त वैकल्पिक मार्ग हों। जनता का टाइम खोटी करने का सीधा सा मतलब देश की प्रगति में बाधा डालना है। वीवीआईपी भी खुद समझें कि कहीं उनके आने जाने से लोगों को तकलीफ तो नहीं हो रही है। सड़क पर मायूस होकर बिलबिला रहे आम आदमी के समय की कोई तो कीमत जरूर होगी। यदि नहीं समझते हैं व बार-बार पगफेरे करते हैं तो फिर सवाल तो उठते ही रहेंगे।

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