24 न्यूज अपडेट नागौर। नागौर जिले के फरड़ोद गांव में मायरा भरने की एक अनोखी और भव्य परंपरा का मामला सामने आया जिसमें साडोकन गांव के तीन भाइयों हरनिवास, रामदयाल और हरचंद खोजा ने अपनी बहन बीरज्या देवी के बेटे सचिन और बेटी रेखा की शादी में करीब 3 करोड़ रुपये का मायरा भरा। इस रस्म में उन्होंने 1.51 करोड़ रुपये नकद, 35 तोला सोने के गहने, 5 किलो चांदी के गहने, कपड़े, बर्तन, घरेलू सामान और नागौर शहर में 20-20 लाख रुपये की कीमत के दो प्लॉट दिए। साथ ही उन्होंने गांव के हर जाट परिवार को एक-एक चांदी की मूर्ति भी भेंट की। इस भव्य आयोजन ने जिलेभर में चर्चा का केंद्र बना दिया। मायरा या भात भरना राजस्थान की एक प्राचीन और महत्वपूर्ण सामाजिक परंपरा है, जिसमें बहन के बच्चों की शादी के अवसर पर ननिहाल पक्ष की ओर से उपहार, नकद राशि, गहने और अन्य सामग्री दी जाती है। यह रस्म भाई और उसके परिवार की बहन के प्रति जिम्मेदारी और प्रेम को दर्शाती है। फरड़ोद गांव में हुए इस मायरे ने प्राचीन काल की यादें ताजा कर दीं, जब सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारी निभाने का यह अनूठा उदाहरण स्थापित किया गया था। जब तीनों भाई नोटों के बंडल और ज्वेलरी लेकर शादी समारोह में पहुंचे तो ग्रामीणों की भीड़ जमा हो गई। नोटों को बड़े-बड़े बैगों में लाया गया था, जिन्हें रस्म के दौरान थाली में रखकर गिना गया। भाईयों ने उच्च स्वर में नकद राशि और अन्य वस्तुओं की घोषणा की, जिससे उपस्थित लोग चकित रह गए। इस भव्य आयोजन में नागौर जिले के पूर्व प्रमुख सुनीता चौधरी, राजस्थान सरकार के पूर्व उप मुख्य सचेतक महेंद्र चौधरी और जायल के पूर्व प्रधान रिद्धकरण लामरोड़ सहित कई जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए। शादी में मायरा भरने वाले हरनिवास खेती करते हैं, जबकि रामदयाल और हरचंद शिक्षक हैं। इनकी बहन बीरज्या देवी के पति मदनलाल फरड़ोदा के पिता राधाकिशन फरड़ोदा ग्राम पंचायत के सरपंच रह चुके हैं। उनकी बहू सुनीता चौधरी नागौर की जिला प्रमुख रह चुकी हैं। वहीं, बहनोई महेंद्र चौधरी नावां से विधायक और उप मुख्य सचेतक रहे हैं। नागौर जिले में मायरा भरने की प्रथा ऐतिहासिक महत्व रखती है। लोक कथाओं में बताया जाता है कि मुगल शासनकाल के दौरान खिंयाला और जायल के जाटों ने लिछमा गुजरी नामक महिला को अपनी बहन मानकर उसके बच्चों की शादी में टैक्स कलेक्शन से जुटाए गए धन से मायरा भरा था। इस घटना को लेकर यहां के लोकगीतों में भी इसे याद किया जाता है।
नरसी भगत और मायरे की धार्मिक मान्यता
मायरे की शुरुआत नरसी भगत की कथा से मानी जाती है। नरसी गुजरात के जूनागढ़ के रहने वाले थे और श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण जब वे अपनी बेटी नानीबाई की शादी में मायरा नहीं भर सके, तो भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं वहां पहुंचकर मायरा भरा। इस घटना को राजस्थान और गुजरात के लोकजीवन में अत्यंत श्रद्धा के साथ याद किया जाता है।
तीन भाइयों ने भरा करीब 3 करोड़ रुपये का मायरा भरा, 1.51 करोड़ कैश, 35 तोला सोना, 5 किलो चांदी, प्लॉट

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