
24 News Update उदयपुर। “हमारे समय में लेखन” विषय पर आयोजित नन्द चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में प्रख्यात कवि, कथाकार एवं चिंतक विष्णु नागर ने कहा कि नन्द बाबू (नन्द चतुर्वेदी) केवल कविता के लिए कविता नहीं करते थे, बल्कि समाज के लिए लिखते थे। समता और न्याय उनके लेखन के केंद्र में था। उन्होंने राजनीति और कविता के बीच के सेतु को साधा और एक नागरिक की चेतना से कविता को गढ़ा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. दिव्यप्रभा नागर ने की। इस अवसर पर नन्द चतुर्वेदी की कविताओं के बांग्ला अनुवाद ‘शिशिरेइ सेइ दिन’ का विमोचन भी किया गया।
विष्णु नागर ने अपने वक्तव्य में नन्द बाबू को एक ऐसे लेखक के रूप में रेखांकित किया जो जीवन के अंतिम पड़ाव तक समाज की पीड़ा से जुड़े रहे। उन्होंने कहा कि जिस उम्र में व्यक्ति प्रायः अध्यात्म की शरण में जाता है, नन्द बाबू उस वक़्त भी सामाजिक सरोकारों से गहरे जुड़े रहे और अपनी लेखनी से जनजागरण करते रहे। वे कभी जीवन से थके नहीं, न ही विचार से समझौता किया।
लेखक का कर्तव्य और बढ़ गया है: विष्णु नागर
नागर ने वर्तमान समय को आधुनिक भारत के इतिहास का काला अध्याय करार देते हुए कहा कि आर्थिक उदारीकरण ने लोगों की सोचने-समझने की शक्ति को क्षीण कर दिया है। व्यक्ति अब संगठनों और सामूहिकता से कटता जा रहा है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है।
उन्होंने चिंता जताई कि हिन्दी में मौलिक लेखन कम हो गया है। अधिकतर साहित्य केवल साहित्य के लिए लिखा जा रहा है, जबकि साहित्येतर लेखन लगभग समाप्त हो गया है। दूसरी बड़ी समस्या यह है कि आज कुछ भी लिखने पर किसी की भावना आहत हो जाती है, खासकर हिन्दू समाज की, जिससे लेखक असहज और भयभीत रहने लगे हैं।
हिन्दी लेखक चुनौतियों से डर रहा है, पर नई चेतना भी उभर रही है
विष्णु नागर ने कहा कि आज का हिन्दी लेखक समाज की उथल-पुथल से विमुख हो गया है और वाल्मीकि युग में जी रहा है। हालांकि एक सकारात्मक परिवर्तन यह है कि हिन्दी साहित्य में अब महिलाएं, दलित और आदिवासी लेखक अधिक संख्या में सामने आ रहे हैं, जिससे लेखन का जनतंत्रीकरण हो रहा है।
हाड़ा और दिव्यप्रभा नागर ने भी रखे विचार
कार्यक्रम में प्रख्यात आलोचक डॉ माधव हाड़ा ने कहा कि सत्ता को मनुष्य के जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। नन्द बाबू एक गहन विचारशील लेखक थे जिन्हें कविता पर पूरा विश्वास था। उनके मन में कभी कविता को लेकर द्वंद्व नहीं रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं प्रो. दिव्यप्रभा नागर ने कहा कि आज का साहित्य एक पीड़ा और भटकाव के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य की संवेदनशीलता और दिशा पर चिंता जताई।
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