उदयपुर 12 मई 2024, 24 न्यूज अपडेट उदयपुर। ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्विद्यालय के तत्वाधान में मोती मंगरी स्कीम पार्क में चल रहे नौ दिवसीय “अलविदा तनाव हैप्पीनेस शिविर” के अंतर्गत दूसरे दिन ब्रह्माकुमारी पूनम बहन ने मनुष्य जीवन में आ रहे दुखों के कारणों पर विस्तृत चर्चा करते हुए उनसे निजात पाकर खुशी-खुशी जीवन जीने की कला सिखाई । आज की समीक्षा करते हुए शिविर मीडिया प्रभारी प्रोफेसर विमल शर्मा ने बताया कि पूनम बहन ने कहा कि समय सदा गतिशील रहता है व कोई प्रतिकूल परिस्थिति भी स्थाई नहीं रहती। इस कटु सत्य से अंजान मनुष्य अपने जीवन में आए प्रतिकूल समय की यादों को पकड़ कर बैठ जाता है और उसी का अफसोस करता रहता है । यह उसके मन मस्तिष्क पर दबाव डाल कर डिप्रेशन का मुख्य कारण बनता है । अत: जितना जल्द हो सके मनुष्य को अपने विपरीत समय के यादों के बोझ को नीचे रख देना चाहिए अर्थात “लेट गो” कर देना चाहिए । “छोड़ो छोड़ो कोई बात नहीं आगे बढ़ो लेट गो” दोहराते रहना उक्त समय मे मनुष्य की मनोदशा को बदलने मे कारगर सिद्ध होता है ।
खुशी को परिभाषित करते हुए पूनम बहन ने कहा कि खुशी जैसा कोई खजाना नहीं , मनुष्य जीवन मे धन दौलत आदि भौतिक खजाना मिले परंतु खुशी ना हो तो वे सब निरर्थक ही है । इसी प्रकार खुशी जैसी कोई औषध या खुराक नहीं है । खुशी किसी भी विपरीत परिस्थिति को हावी होने से रोकती है । हमें जीवन में क्षणिक खुशी नहीं अपितु स्थाई खुशी लाने मे प्रयासरत रहना चाहिये जो आध्यात्म के मार्ग पर चल कर ही प्राप्त हो सकती है। मनुष्य के जीवन मे क्षमा मांगना व क्षमा दान देना ऐक ऐसा संस्कार सूत्र है जो अविनाशी खुशी देता है । मनुष्य के जीवन मे खुशी व गम का अनुपात उसके जन्म जन्मातंर मे अर्जित कार्मिक अकाउंट ( क्रेडिट या डेबिट) पर निर्भर है। यह जाने मे या अनजाने मे किये गये कर्मो का लेखा जोखा है । अत: हर मनुष्य को जन्म जन्मांतर से किए गए जाने अनजाने दोषों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए साथ ही अन्य द्वारा आप पर जाने अनजाने किये गलत कर्मो पर क्षमा दान देते रहना चाहिये । ऐसा करने से मनुष्य का कार्मिक बैलेंस सदैव क्रेडिट मे रह खुशी ही देता रहेगा। शिविर मे बच्चों ने मंच से व अन्य ने पांडाल मे गुब्बारों के साथ मनोहारी नृत्य कर संकल्प लिया कि वे सदैव खुश रहेंगे व खुशी बांटेंगे।
कल के शिविर मे पूनम बहन स्वयं के भीतर जाकर अपनी पहचान करने सूत्र बतायेंगी कि ” मै कौन हू ” । इसे हम “आत्म ज्ञान” व आध्यात्म की पहली सीढ़ी भी कहते है।


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