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चक्की पिसिंग चालू है : फिर नौकरी खतरे में देख एसएफएबी बोर्ड कर्मचारियों ने सुविवि में किया आधे दिन का कार्य बहिष्कार

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में एसएफएबी बोर्ड से लगे करीब 327 गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के प्रति चक्की पिसिंग एटीट्यूड जारी है। अब सभी कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटकती देख एक बार फिर विरोध की बिजलियां चमकने लगी हैं। आज लंबे समय से सेवाएं दे रहे इन कर्णधारों ने एक बार फिर आधे दिन काम का बहिष्कार करते हुए ट्रेलर दिखाया। पिछले दो बार की हड़ताल प्रशासन पर बहुत भारी पड़ी थी, परीक्षाएं तक रदï्द करनी पड़ी थी। उसके बाद वेतन जारी हुआ तो कुछ समय पहले ही एक बार फिर दो महीने के वेतन पर विवि प्रशासन कुंडली मार कर बैठ गया। वीसी रजिस्ट्रार की आपसी खींचतान में वेतन नहीं दिया गया व हड़ताल करने पर आनन-फानन में वेतन जारी करना पड़ा। इतना होने पर भी प्रशासनिक रूप से कोई सबक नहीं लेते हुए सुविवि प्रशासन एक बार फिर से सभी कर्मचारियों की सेवाओं को प्लेसमेंट एजेंसी वाली सेवाओं में कन्वर्ट करने पर तुले हुए हैं ताकि बाद में इनका कोई बर्डन नहीं रहे। जो अब तक अपने हैं वो बाद में किसी बाहरी एजेंसी के कर्मचारी बनकर सेवाएं प्रदान करें। कर्मचारियों को आशंका है कि ऐसे में उनकी बरसों की सेवाओं का क्या होगा? अब तक तो उनको हर वीसी के कार्यकाल में स्थायी करने की मीठी गोलियां दी जा रही थीं मगर इस बार तो पैरों तले जमीन खिसकाई जा रही है। इससे उनके परिवार के भरण-पोषण पर संकट पैदा हो जाएगा। निजी एजेंसी जब चाहे किसी को भी रख सकी है व जब चाहे नौकरी से रवाना कर सकती है।
बहरहाल, एजेंसी के माध्यम से मानव संसाधन लेने के विरोध में शुक्रवार को आधे दिन का कार्य बहिष्कार करते हुए विश्वविद्यालय के फैसले पर पुरजोर शब्दों में विरोध जताया। एसएफएबी कर्मचारी संघ अध्यक्ष नारायण सालवी ने बताया कि सुविवि में एसएफएबी बोर्ड से संचालित व्यवस्था पर न सरकार को आपत्ति है और न उच्च शिक्षा विभाग को। वर्ष 2008 से अब तक जारी तीन आदेशों में सरकार और विभाग ने कभी भी एजेंसी के माध्यम से सेवाएं लेने की बात नहीं की मगर इसके बावजूद सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय का प्रबंधन एजेंसी के माध्यम से ही सेवाएं लेने पर क्यों अड़ा हुआ है। एसएफएबी बोर्ड के कई कर्मचारी 12 से 15 वर्ष से सेवाएं दे रहे हैं,, अधिकतम वेतन 15 हजार रुपए मासिक वेतन में घर चला रहे हैं। हर भर्ती में उनको यह आश्वासन दिया गया कि उन्हें स्थायी कर दिया जाएगा मगर अब सुविवि प्रबंधन एजेंसी के माध्यम से ही सेवाएं लेने की तैयारी कर चुका है। शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने के बाद ज्ञापन सौंपा गया है जिसमें पुरानी मांगें दोहराई गई हैं। अगर उनकी मांगों पर विश्वविद्यालय प्रशासन ध्यान नहीं देता है अब उग्र आंदोलन होगा तथा विकल्प के रूप में मजबूरन माननीय न्यायालय में शरण में जाएंगे।
क्या कर रहे हैं जनप्रतिनिधि
इस मामले में यह सामने आया है कि सांसद, विधायकों सहित सभी जन प्रतिनिधियों ने इससे पहले कई बार आश्वासन दिया है कि संविदा पर काम कर रहे एसएफएबी कर्मचारियों को प्लेसमेंट एजेंसी में धकेलना उनके साथ अन्याय है। विधायक जैन की दखल के बाद पिछले बार वेतन जारी हुआ था। उसके बाद सांसद ने भी उच्च स्तर पर बात करने के बाद कहा कि एसएफएबी बोर्ड के जारिये ही सेवाएं जारी रखी जानी चाहिए। लेकिन अब सुविवि प्रशासन लगता है पहले से कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने की स्क्रीप्ट लिख चुका है व धीरे-धीरे उस पर अमल कर रहा है। सूत्रों के अनुसार इस पर दो स्तरों पर काम चल रहा है। दो कैडर बनेंगे व बारी-बारी से उनको प्लेसमेंट एजेंसी में भेजा जाएगा तो विरोध भी बंटकर माइल्ड हो जाएगा। क्या मॉडल सामने आएगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन विरोध की इस मुहीम को सुविवि के साथ ही सभी राजनीतिक संगठनों का भी समर्थन हासिल है। ऐसे में आने वाले दिनों में सुविवि प्रशासन के सामने मुश्किलें पेश आ सकती हैं। इसके अलावा यदि हड़ताल जारी रहती है व सुविवि की ओर से डेडलॉक बनाया जाता है जैसा कि पिछली हड़ताल के दौरान बना था तो सुविवि के कई अहम काम ठप हो सकते हैं क्योंकि असल में सारे खास कामों का जिम्मा इन्हीं अस्थायी कंधों पर हैं। इनके हटने से जो भार महसूस होगा उसकी भरपाई फिलहाल संभव नहीं दिख रही है।

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