_*- नॉन पॉलिटिकल टिप्पणी-सुशील जैन*_
*आबोहवा में आज शाम को सर्द मौसम से बतियाते हुए पता नहीं क्यों 1980 में रिलीज हुई ‘द बर्निंग ट्रेन’ फिल्म का गाना याद आ गया- ‘तेरी है ज़मीन तेरा आसमां तू बड़ा मेहरबां तू बक्शीस कर। सभी का है तू, सभी तेरे ख़ुदा मेरे तू बक्शीस कर। गुनगुनाते हुए बार-बार बर्निंग ट्रेन की यादï्दाश्त वाली कैसेट -‘तू बड़ा मेहरबां तू बक्शीश कर….पर’ आकर अटक रही थी।*
*शाम के धुंधलके में देखा तो रात दबे पांव चली आ रही थी। कहीं बहुत पास ही ‘गम’ वालों की बस्ती में एक मजमा लगा हुआ था। भाषणों के गुलदस्ते सजे थे। कोई ‘राग भैरव’ गा रहा था तो कोई राग ‘माल-कोस’। ‘राग बसंत’ वाले चहक तो बहुत रहे थे मगर किसी की गैर मौजूदगी से उनकी चिंता की चिड़िया बार-बार ‘बाज’ हुए जा रही थी। कोई कह रहा था कि ‘बाग-बाग’ हो जाता समां जो मंगल विहार वाले इस धार्मिक मौसम में ‘सर्वेसर्वा भाई-साहब’ तशरीफ ले आते।………………..इस बीच एक बार फिर यादों का समंदर हिलोरे लेते हुए ‘द बर्निंग ट्रेन’ के गाने पर लेकर गया- ”तूं चाहे तो हमें रखे, तूं चाहे तो हमें मारे।…..तू चाहे तो हमें मारे। ….तेरे आगे झुकाके सर, खड़े हैं आज हम सारे।”*
*गाना आगे बढ़ता उससे पहले ही किसी पत्रकार मित्र ने ध्यान भंग किया व पूछ लिया – ‘आज क्या खास बात है। ‘राजनीतिक पटल पर कुछ खास हो रहा है क्या?? मैं फिर गुनगुनाया-”तू चाहे तो हमें रक्खे, तूं चाहे तो हमें मारे। ”..तेरी है जमी, तेरा आसमां, तूं बड़ा मेहरबां, तूं बक्शीस कर…..।* ”
*पत्रकार मित्र हवा में नजर घुमाते हुए बोला-‘यार, आजकल ”फॉग” बहुत चल रहा है। जो पास है वो भी नहीं दिख रहा और जो दिख रहा है वो कितना पास है इसका पता ही नहीं चल रहा। मैं ‘नॉन पॉलिटिकल हंसी’ में हंस दिया। मित्र ने फिर कुरेदा-”यार! आजकल शहर का ‘पॉलिटिकल पीएम पार्टिकल’ कुछ बढ़ा हुआ सा नहीं लग रहा है तुमको।*
*मैंने कहा-‘हां यार, कुछ धुआं ‘फ्लाई ‘ होकर ‘ओवर’ हो जाए और कुछ गुबार को ‘एलिवेशन’ मिल जाए तो राजनीति में अच्छा रहता है। यदि जमीं पर ही धुआं घिर आए तो गले में खराश होने लगती है।.*
*…. मैं बोलते-बोलते रौनक-ए-महफिल के उदगार सुनने में लग गया। उधर, फिर से यादों की सूई अटक गई….इस बार पत्रकार दोस्त गाने लगा-*
*- ‘तेरी है जमी, तेरा आसमां, तूं बड़ा मेहरबान। तूं बक्शीश कर।’*
*……मैं बोला-यार, पॉलिटिक्स के खेत में बरसों से ”ठूंठ”जल रहे हैं। बेचारे मेहनतकशों को दो फसलों के बीच मन मुताबिक ‘खेत’ ढंग से जोतने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है। …..मर्ज का गुबार उठता तो है मगर कहीं मुकाम पर पहंच ही नहीं रहा है।*
. *…दोस्त भांप गया कि कुछ तो सुलग रहा है कहीं पर। उसने कुरेद कर पूछा – ”उनकी गैर मौजूदगी के चर्चे तुमने भी सुने हैं क्या? ‘*
*मैंने कहा-‘तेरी है जमीं, तेरा आसमां और तू बड़ा मेहरबां वालों के साथ ही ‘सितारों’ से आगे जहां और भी हैं। जो हिम्मत के हाइवे पर ”द ग्रेट सेपरेटर” बनाने का हौसला रखेगा, वो मंजिल तक जरूर पहुंचेगा।*
_*हम दोनों दोस्तो ने ठहाका लगाया और अलविदा कहते फिर अलग-अलग राहों पर हुए आगे बढ़ गए।*_
*आज जाने क्यों याद आ गया- ‘द बर्निंग ट्रेन’ फिल्म का गाना -‘तेरी है जमीं, तेरा आसमां तू बड़ा मेहरबां तू कर…*

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