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अब शक्ति नगर बोटल नेक पर खाली प्लाॅट से सड़क निकालने का सुझाव

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24 न्यूज अपडेट.उदयपुर
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उदयपुर। नगर निगम की प्रशासनिक समिति की बैठक में शहर के शक्तिनगर से निकाली जाने वाली रोड पर चर्चा की गई। इसमें अतिक्रमण विरोधी समिति के अध्यक्ष छोगालाल भोई की ओर से कहा गया कि वर्तमान में जो रास्ता निगम की ओर से निकाला जा रहा है उसमें तो राॅन्ग साइड से आकर फिर रास्ता पार करते हुए और घूमते हुए आगे के रास्ते पर बढा जा सकता है। ऐसे में क्यों नहीं सनातन मंदिर से आगे बेकरी के पास खोली पड़े प्लाॅट से ही होकर पीछे से रास्ता निकाल दिया जाए। इस रास्ते को निकालने के लिए निगम को आरसीए के ग्राउंड के पास वाली जमीन अधिग्रहित करनी होगी। भोई ने बताया कि वर्तमान प्लान से आगे बढने पर यह एक्सीडेंटल जोन बन जाएगा। इससे आने वाले दिनों में परेशानियां हो जाएंगी। सनातन मंदिर के पास के प्लॉट पर चैराहा भी बनाया जा सकता है। इस प्रस्ताव का उप महापौर पारस सिंघवी सहित अन्य लोगों ने समर्थन किया। कहागया कि इस पर महापौर, आयुक्त सहित अन्य से सर्व सम्मति से चर्चा कर रास्ता निकाला जाएगा। गौरतलब है कि इस वैकल्पिक रास्ते को निकालने का विचार नया नहीं है। कई सालों से यह मांग चली आ रही है कि घरों को नहीं गिराते हुए मौजूदा खाली पड़ी जमीन से ही रास्ता सीधा निकाल दिया जाए।ं लेकिन बरसों बाद पिछले दिनों नगर निगम की ओर से कार्रवाई करते हुए बोटल नेक वाली दुकान तोड दी गई व आगे के घरों पर नोटिस चस्पा कर दिए गए। इस कार्रवाई से लोगों में आक्रोश छा गया व वे यह कहना नहीं भूले कि मोदीजी को वोट दिया है उसके बावजूद उन पर भाजपा के राज में कार्रवाई हो रही है। अब राजनीति के सहारा इसका तोड निकालने का प्रयास हो रहा है। अतिक्रमण विरोधी समिति के अध्यक्ष और उप महापौर का एक स्वर होना संकेते दे रहा है कि अब खाली जमीन से रास्ता निकालने वाला विकल्प ही काम में लिया जाना तय है। समाज की ओर से भी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इसी रास्ते का दबाव बनाने की खबर है।

2013 ने बना था प्लॉट से बाईपास रास्ते का प्लान

शक्तिनगर में जिस प्लॉट से रास्ता निकालने की बात हो रही है वह बिलोचिस्तान को ओपरेटिव सोसायटी या कहें कि पंचायत का है। यह प्लॉट बरसों से इसलिए ही खाली रखा गया है क्योंकि यहां से रास्ता निकालने का प्लान था। यह रास्ता 2013 तक मास्टर प्लान मे ंभी था मगर 2020 में जब नया मास्टर प्लान बना तो नया रास्ता निकालने की बात उठी। अब कहा जा रहा है कि आरसीएस वाले जमीन नहीं दे रहे हैं और इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि पहले जमीन लेते समय कमिटमेंट हो गया था कि आगे और जमीन नहीं ली जाएगी। मगर पीडितों व स्थानीय लोगों का कहना है कि परिवारों को उजाडने की बजाय सर्व सम्मति से सरकारी स्तर पर ही प्रयास कर आरसीए की जमीन ली जाए तो फैसला सबके हित में रहेगा। इसके लिए कोई मकान भी नहीं तोडना पडेगा। आरसीएस की जमीन लेते हुए ग्राउंड की दीवार को तोड कर रास्ता बनाना होगा। अभी छह से सात मकान तोडे जाने का प्रस्ताव है जो 1952 से यहां बनाए हुए हैं व इनमें चौथी पीढी रह रही है। यह जमीन पाकिस्तान से विस्थापित होकर अपने भारत लौटे लोगों को दी गई थी जिसे बाद में शक्तिनगर नाम दिया गया। लोगों का कहना है कि दो नोटिस आ चुके हैं। यदि मकान टूटता है तो पूरा घर टूट जाएगा क्योंकि उसे बने बरसों हो गए हैं। अधिकतर घर दो मंजिला हैं। अभी कॉमर्शियल के नोटिस दिए हुए हैं लेकिन हास्यास्पद बात ये है कि पूरा शक्तिनगर ही नहीं लगभग आधा शहर इसी तरह से कमर्शियल है। पीडितों का कहना है कि मेयर चंद्रसिंह कोठारी व रामनिवास मेहता के जमाने में ही यह रोड बाइपास रास्ते से निकालना फाइनल हो गया था। तब यह तय था कि आरसीए की जमीन लेकर रास्ता निकल जाएगा मगर सरकार बदलते ही रूख भी बदल गया। लोगों ने यह भी बताया कि अभी पतली गली से खंभे हटाने के बाद समस्याएं बढ गई है। अब कारें निकलने लग गई हैं। जेसीबी भी जा रही हैं। ऐसे में यहां कभी भी हादसा हो सकता है। फिलहाल नोटिस वाले घरों में 24 परिवार सात मकानों में रहते हैं। इधर इस मसले पर यह भी बात सामने आई है कि सामाजिक स्तर पर भी पुरजोर प्रयास करने की जरूतर है। यदि सभी पंचायतें मिलकर प्रयास करें तो मामला सुलझ सकता है।

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