24 न्यूज़ अपडेट उदयपुर। आदिवासी जनाधिकार एका मंच, अखिल भारतीय किसान सभा ने सयुक्त किसान मोर्चा तथा आदिवासी जनाधिकार एका मंच के सयुक्त आह्वान पर गांव – खेराड़, तहसील झाड़ोल में विश्व आदिवासी दिवस – कार्पोरेट भारत छोड़ो दिवस सयुक्त रुप से कैलाश चंद बोदर की अध्यक्षता में मनाया गया। कार्यक्रम का संचालन प्रकाश लऊर ने किया। उपस्थित आदिवासी, किसानों को अखिल भारतीय किसान सभा राज्य उपाध्यक्ष प्रभुलाल भगोरा ने संबोधित करते हुए कहा कि भारत सरकार द्वारा औधोगिक परियोजनाओं के नाम पर ,2019 से 2024 तक 17 राज्यों में 18922.98 हैक्टेयर जमीन आदिवासियों से पूंजीपतियों को दी है। दूसरी तरफ वन अधिकार कानून लागू होने के बाद भी, आज तक आदिवासी क्षेत्रों में सभी को पट्टे नहीं मिले है। कुछ पट्टे मिले है तो कब्जा के अनुपात में नाम मात्र क्षेत्र का मिला है। वन अधिकार कानून में संशोधन के लिए, 2023 में मोदी सरकार नया कानून ले आई है। सयुक्त किसान मोर्चा देशभर में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन मोदी सरकार आदिवासियों और किसानों के मुद्दों पर सुनना नही चाहती है। इसके खिलाफ मजबूती से आवाज उठाएंगे। आदिवासी जनाधिकार एका मंच जिला सचिव प्रेमचंद पारगी ने कहां कि आज पुंजीवादी विकास, कार्पोरेट घरानों तथा विकास के नाम पर पर्यावरण की अनदेखी के चलते उतराखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल सहित देशभर में पहाड़ दरक रहे है, नदियां तुफान बनकर विनाश ला रहीं है। भाजपा एक पेड़ मां के नाम अभियान चलाकर पर्यावरण हितैषी होने का दिखावा कर रहीं जबकि छतीसगढ़ में दुनिया सबसे गहन जंगल अडाणी को सौंप दिया है। कांवड़ मार्ग बनाने के नाम पर , उतरप्रदेश में हजारों पेड़ काटने का निर्णय ले चुकी है। कोरोना महामारी के नाम पर लॉकडाउन के अगले दिन ही सडक़ और कुछ परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजुरी की बाध्यता हटा दी थी। सरकार की अधिसुचना को मार्च 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया। सरकारें आदिवासी के नाम पर सिर्फ नारे लगाती है।
आदिवासी जनाधिकार एका मंच जिलाध्यक्ष, पूर्व सरपंच हाकरचंद खराड़ी ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार ने आदिवासी जनसंख्या के अनुपात में बजट आवंटन नही किया है। उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ सहित अन्य क्षेत्र के टीएसपी क्षेत्र घोषित होने तथा जनजाति मामलों के कैबिनेट मंत्री झाड़ोल से होने के बाद भी टीएसपी क्षेत्र की अनदेखी की जा रही है। कब्जा के अनुपात में पट्टे मिले, पट्टे के समतलीकरण ,सुधारीकरण को नरेगा में शामिल किया जाये, नरेगा में 200 दिन काम 600 रुपये मजदुरी मिले, टीएसपी क्षेत्र में सभी ग्रेड की नौकरियों में टीएसपी आरक्षण लागू किया जाये, आवासीय विधायक और अन्य शिक्षण संस्थाओं में खाली पद भरे जाएं, ग्रामीण रूटों पर रोड़वेज बस सेवा शुरु की जाये, स्थानीय क्षेत्र में आवश्यकतानुसार छोटे पुल, नालों का निर्माण किया जाये, वन विभाग द्वारा बेदखली पर रोक लगे आदि मांगों को लागू करवाने के लिए, सरकार से मांग की जाएगी।
भंवरी बाई ने महिलाओं के मुद्दों पर बोलते हुए कहा कि टीएसपी क्षेत्र में विकास नही होने का सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं को होता है। महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे है। सरकार महिलाओं को केवल वोट बैंक समझना चाहती है,जबकि महिलाएं आधी हिस्सेदारी मांग रही है।
इस अवसर पर कमलाशंकर सिवणा, सुंदरलाल लऊर, भूरीलाल खराड़ी, नानालाल जा़बला, नानी बाई, कमल सिंह, नानालाल गरासिया, गोबरदास, बसंतीलाल खराड़ी, अणदाराम गरासिया, कमल खोखरिया, मावादास ननामा, नानी बाई सहित अन्य सदस्य उपस्थित थे।
तहसील कोटड़ा
आदिवासी जनाधिकार एका मंच, अखिल भारतीय किसान सभा तहसील कमेटी कोटड़ा द्वारा सयुक्त रुप से विश्व आदिवासी दिवस गांव सड़ा, तहसील कोटड़ा में लातुराम खैर तहसील अध्यक्ष एकामंच, किशन पारगी, नाथाराम डामर, सुमा देवी की सयुक्त अध्यक्षता में मनाया गया। झंडारोहण लातुराम खैर ने किया।
उपस्थित साथियों को संबोधित करते हुए किसान सभा के दल्लाराम लऊर ने कहा कि मणिपुर में मोदी सरकार की नाकामी के चलते लाखों लोग बदहाल स्थिति में है। 85000 से ज्यादा लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर है। आदिवासी क्षेत्र मोबाइल नेटवर्क तक की समस्याओं से जुझ रहा है।
पूर्व सरपंच जगदीश पारगी ने कहां कि अगुंठा की अनिवार्यता तथा इंटरनेट नेटवर्क समस्या के चलते आदिवासी क्षेत्रों में राशन वितरण, मनरेगा में आनलाइन हाजरी लगाने तथा अन्य जरुरी कार्यों में दिक्कत आ रही है। सरकार पार्दर्शिता के नाम पर मनचाहे आदेश जारी कर देती है, जबकि जरुरी संसाधन उपलब्ध नही होते है।
किशन पारगी ने कहां कि कोटड़ा में प्रस्तावित बड़े बांधों की योजनाओं को रद्द किया जाए। अगर इलाके में सैकड़ों गांवों को खाली करवाकर बड़े बांध बनते है तो यहां भी उतराखंड, हिमाचल प्रदेश की तरह तबाही आएगी।
इस अवसर पर शंकरलाल गमार,जीवन पारगी, पवन पारगी, कालुराम लऊर, बदाराम डामर, राणाराम, मदनलाल खैर, कांतिलाल गमार, लक्ष्मणलाल पारगी, हंसराज पारगी, लुकाराम गमार, रमेश गमार, साहबाराम, नारंगलाल पारगी, शारदादेवी, मांगणदास सहित सैकड़ों महिला, किसान उपस्थित थे।
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