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शहर में घुसने लगे तेंदुए तो वन विभाग ने आरटीआई के जवाब में कहा-हमसे सम्बंधित नहीं

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24 न्यूज अपडेट. उदयपुर। भाई साहब अब अगर कोई तेंदुआ शहर में आ जाए तो रेस्क्यू के लिए वन विभाग की ओर मत देखना क्योंकि विभाग कहता है कि यह सूचना हमसे संबंधित ही नहीं है। विभाग का रिकॉर्ड यह भी नहीं बताता कि शहर में तेंदूए के चरण अब तक कहां-कहां पड़ चुके हैं। ऐेसे में सवाल उठता है कि फिर किसे बताएं। तेंदुआ दिखने पर किससे शिकायत करें। क्या पुलिस को या फिर सीएम पार्टल पर। एक आरटीआई के जवाब से तो यही सवाल उठ रहे हैं। उदयपुर के शहरी क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में तेंदुओं की गतिविधियां तेजी से बढ़ रही है, शहर के प्रतापनगर, यूनिवर्सिटी, बलीचा, गोवर्धन विलास, रानी रोड, नीमच माता , हिरणमगरी आदि क्षेत्रों में तेंदुए नजर आ चुके है, हिरणमगरी क्षेत्र के एक गर्ल्स हॉस्टल से और गोवर्धन विलास क्षेत्र में एक मकान से तेंदुओं को रेस्क्यू किया जा चुका है। गनीमत रही कि कोई जानहानि नही हुई। कई इलाकों में तेंदुओं ने पशु धन और श्वानों तक को अपने भोजन के लिये शिकार बनाया है। घटते वन क्षेत्रों, कटती पहाड़ियों के कारण वन भु भाग अब कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा है। जाहिर है वन्य जीवों को अपने भोजन पानी की तलाश में शहर की ओर आना कोई अचंभे की बात नहीं है। शहर में बढ़ती तेंदुओं की गतिविधियों के संदर्भ में जब उदयपुर के वन विभाग से सवाल किए गए तो वन विभाग द्वारा पल्ला झाड़ने वाले और आधे अधूरे जवाब मिले जिनका अभिप्राय भी अलग-अलग निकल रहा है।
उदयपुर के वन विभाग के रिकॉर्ड में तेन्दुओं की कुल दर्ज संख्या 56 है , जो सज्जनगढ़, फुलवाड़ी की नाल,जयसमंद और बाघदरा क्षेत्रों में विचरण करते हैं। प्रतिवर्ष तेन्दुओं के सरंक्षण पर आवंटित की जाने वाली राशि के संबंध मे अजीब जानकारी दी गई। वर्ष 2019 -2020 में 50.00 की राशि आवंटित की गई, वर्ष 2020 -2021 में भी 50.00 की राशि आवंटित की गई , वर्ष 2021-2022 में 52.00 और वर्ष 2022-2023 में 52.16 की राशि आवंटित हुई, एवं वर्ष 2023 -2024 में 100.00 अंक की राशि आवंटित की गई, वन विभाग वाले इन अंकों के आगे रुपए, हजार या लाख जो भी यूनिट लागू होती है लिखना भूल गए या लिखने में जान बूझकर चालाकी कर गए ताकि अपनी जिम्मेदारी से बचा जा सके। यदि यूनिट को रुपये में आंका जाए तो 56 तेन्दुओं के सरंक्षण पर 50 रुपये खर्च करना रिसर्च का विषय होगा। खैर, वन विभाग वालो ने पिछले 2 वर्षों में तेन्दुओं द्वारा इंसानी या पशुधन की हानि के बारे में सूचना शून्य लिख इतिश्री कर ली है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो ये रहा कि शहर में उन क्षेत्रो की सूचना मांगे जाने पर जिनमे तेन्दुओं का मूवमेंट / गतिविधिया सर्वाधिक है , वन विभाग ने इस सूचना को अपने कार्यालय से संबंधित न होने से बता पल्ला झाड़ लिया।
वन विभाग द्वारा आरटीआई के तहत के अंतर्गत दिए गए जवाबां से यही निष्कर्ष निकलता है कि शहर में कही भी तेन्दुओं का दिखाई देना वन विभाग की न तो जिम्मेदारी है और न ही उनका कार्यक्षेत्र, शहरवासी स्वयं ही तेन्दुओं से अपना बचाव करें।

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