चार खंडों में नंद चतुर्वेदी रचनावली का लोकार्प

उदयपुर 4 अगस्त। नन्द बाबू आधुनिक कविता के पुरोधा थे, वे समाजवादी कार्यकर्ता थे, किंतु उनकी कविता राजनीतिक एजेंडे के बजाए समय और परिस्थितियों के मर्म का उद्घाटन करती हैं। कविता उनके लिए मानवानुभूति वाले आत्मानुभूति का विषय था। उक्त विचार साहित्य अकादेमी नई दिल्ली तथा नन्द चतुर्वेदी फाउंडेशन उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान मे नंद चतुर्वेदी जन्मशतवार्षिकी परिसंवाद में मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात साहित्यकार नंद किशोर आचार्य ने व्यक्त किए।
आचार्य ने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि लोकार्पण कार्यक्रम मे मुझे नंद बाबू को याद करने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कविता अपने आप मे ज्ञान की प्रक्रिया है, कविता पूर्व निर्धारित सत्य का आँकलन नही है, कविता काल संवाहक होती है काल बाधित नहीं होती, नन्द बाबू की कविता भी काल बाधित नहीं है। नंद बाबू की कविता को स्थूल सन्दर्भ से परे बताते हुए आचार्य ने कहा लेखकीय स्वाधीनता और गरिमा नंद बाबू में देखने को मिलती है। आचार्य ने नंद बाबू के जीवन को प्रेरक बताते हुए उदाहरण से बताया कि अपनी किसी चूक को भी वे बड़ी उदारता से स्वीकार करते थे, जो लेखकों के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि नन्द बाबू समय की भयावहता को समझ कर भी उससे आतंकित नहीं थे, उनकी कविता की ताकत है कि वह पाठक को सोचने पर मजबूर कर देती है। आचार्य के अनुसार नंद बाबू की कविता लिखने की उनकी विधा ही उन्हें विशिष्ट बनाती है। उनकी कविता मे संयम भी है और जीवन मे संघर्ष के प्रति आस्था भी। यह समझ पाठक में नंद बाबू की कविता को पढ़कर ही आती है। उनकी कविता समय की अनुभूति ही नहीं आत्मावेषण की कविता भी है। आचार्य के अनुसार कविता की संख्या कवि को बड़ा नहीं बनाती, बल्कि कविता का मर्म कवि को बड़ा बनाता है; नंद बाबू भी इसी अर्थ में राष्ट्रीय कवि हैं। आचार्य ने आग्रह किया कि नंद चतुर्वेदी को क्षेत्र विशेष नहीं वरन सम्पूर्ण भारतीय कविता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।
इससे पूर्व आरंभिक वक्तव्य देते हुए डॉ माधव हाड़ा ने कहा कि नंद चतुर्वेदी ने स्वयं को कभी खूंटे से नहीं बाँधा, भले ही उनको समाजवादी कवि कहा गया किन्तु हमेशा उनका कवि आगे रहा, राजनीतिक कार्यकर्ता नही। वे जीवन के अभाव की कविता मे राग की कविता के कवि है। उनकी कविता मे कृष्ण, अर्जुन, महाभारत के चरित्र हैं तो पद्मिनी, भगवान् बुद्ध भी नज़र आते हैं। उनके अनुसार जहां पारम्परिक कविता ने देह के प्रति सरोकार कम है, वहीं नंद बाबू की कविता में यह स्पष्टता से दिखाई देता है। उनकी कविता मे समय की पदचाप है। उनकी कविता समय से आगे और समय के बाद की कविता है। उन्होंने नॉस्टेलजिया का जैसा उपयोग किया उतना किसी अन्य कवि ने नहीं किया। उनकी कविता हमेशा पटरी पर रही है, उनका गद्य भी अन्य गद्य की तरह जलेबी की तरह उलझा हुआ नहीं है, बल्कि सरल एवं सहज़ है।
नंद चतुर्वेदी फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो अरुण चतुर्वेदी ने अपने उद्बोधन मे कहा कि मैं राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते उन्हें साहित्यकार के रूप में बारीकी से नहीं देख पाता हूँ, उन्होंने उनकी कविता के उदाहरण देकर बताया कि राज्य से उम्मीद उनकी कविता में है, वे समझ के साथ समय की चेतना को परिभाषित करते हैं। नंद बाबू के गद्य के विषय मे उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा प्रतीक अतीत राग है, वे अपनी जानकारी व अध्ययन में हमेशा ताजा रहते थे। वे हमारे विचारो को ताकत देते थे और देते हैं।
कार्यक्रम के उदघाटन सत्र मे स्वागत उद्बोधन अजय शर्मा सहायक संपादक, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने दिया। जबकि नंद चतुर्वेदी फाउंडेशन के सचिव अनुराग चतुर्वेदी ने अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया।
उद्घाटन सत्र मे ही आलोचक डा पल्लव द्वारा चार खंडों में संपादित और राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नंद चतुर्वेदी रचनावली का लोकार्पण किया गया। पल्लव ने इसे स्मरणीय पल बताते हुए कहा कि नंद बाबू जैसे कवि के रचना संसार की यात्रा दुर्लभ अनुभव है।
परिसंवाद के प्रथम सत्र में नंद चतुर्वेदी के काव्य के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए आलोचक प्रो शंभु गुप्त ने कहा कि नन्द बाबू मे आत्म निरीक्षण, आत्म संशोधन की भावना है और वे आत्मसजग भी हैं। नन्द बाबू की कविताओं मे रूपक का प्रयोग है जिसमें महाभारत प्रमुख है। उन्होंने कहा कि हमें अपने रूपकों मिथकों की पुनर्व्याख्या करनी चाहिए। आशा बलवती है राजन काव्य संकलन में महाराज और महारानी इसी तरह के प्रयोग हैं।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो देवेंद्र चौबे ने कहा कि यदि लेखक को यह पता नहीं कि वह किसके लिए लिख रहा है तो वह लेखन उपयोगी नहीं होता है। समय,राजनीति,दर्शन इत्यादि के सूत्र नंद चतुर्वेदी की कविताओं को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। नंद बाबू की कविताओं के उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि साहित्य की भूमिका है कि वह समाज को दृष्टि प्रदान करे और यह नंद बाबू के साहित्य में है।
राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से आई डा रेणु व्यास ने कहा कि नंद बाबू ने अपने को अस्थिर और अधीर समय का कवि कहा है। नंद बाबू की कविताओं में उनका समय केंद्र में है और उन्होंने अपनी कविता में समृद्धि पक्ष नहीं अभाव पक्ष चुना है। उनकी कविता में विविधतापूर्ण मानवीय संवेदना का सूक्ष्म अंकन है। नंद बाबू दो शताब्दियों के कवि रहे हैं अतः दो शताब्दियां उनकी कविताओं में दृष्टिगोचर होती है।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध कवि हेमंत शेष ने कहा कि कुछ लेखकों का साहित्य जलने वाले धूप की तरह होता है। नंद बाबू का साहित्य भी ऐसा ही है जो धीमे-धीमे जलता है लेकिन खुशबू देर तक देता रहता है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपनी संवेदना समकालीन बनाए रखना है वही कवि महत्वपूर्ण होता है ।नंद बाबू की कविताओं में यह समकालीनता दिखाई देती है।
द्वितीय सत्र में नंद चतुर्वेदी के गद्य लेखन के महत्त्व पर आलोचक डॉ पल्लव ने नन्द बाबू के संस्मरणात्मक और वैचारिक गद्य पर विस्तृत टिप्पणी की। अतीत राग पुस्तक पर उन्हों कहा कि नन्द बाबू ने ऐसे भुला दिए गए लोगों के बारे मे भी लिखा है जिन्होंने साहित्य और समाज में बड़ा योगदान दिया। उन्होंने कहा कि आलोचना नन्द बाबू के लिए आपद धर्म नहीं थी बल्कि कविता लिखने के साथ काव्य चिंतन भी उन्हें आवश्यक लगता था। शब्द संसार की यायावारी मे उन्होंने साहित्य के बुनियादी सरोकारों के साथ शब्द व कर्म के द्वैत पर भी लिखा। डॉ पल्लव ने नन्द बाबू के गद्य साहित्य के कुछ अंशों को उद्धृत कहा कि नन्द बाबू के गद्य को इसलिए भी पढ़ना चाहिए कि अच्छा गद्य कैसा होता है।
कवि ब्रजरतन जोशी ने सत्र में कहा कि नन्द बाबू का गद्य बहु ध्वन्यार्थी गद्य है। गद्य व काव्य दोनों मे बिम्बत्मकता मे अंतर है, काव्य मे बिम्ब के लिए स्थान होता है लेकिन गद्य मे इसके लिए अनुभव की प्रामाणिकता अवश्यक है, नन्द बाबू के गद्य पर यह व्याख्या बहुत सटीक है। उन्होंने कहा कि अच्छा लेखक पाठ और अर्थ के द्वैत को ख़तम कर देता है। गद्य साहित्य के स्थापत्य मे जो रिक्तियां हैं उन्हें नन्द बाबू के गद्य मे पूर्णता मिली है। गद्य मे सरल, सहज़ और पूर्ण लिखना बहुत कठिन है नन्द बाबू का गद्य सहज़ सरल व पूर्ण है। सत्र के तीसरे वक्ता प्रो मलय पानेरी ने कहा कि नन्द बाबू का साहित्य सामाजिक रचना का उद्यम करता है, उनका साहित्य हमारी चिंतन विधा को भी उद्वेलित करता है। जिस विचारक और चिंतक कवि रूप में वे दिखते हैं गद्य लेखन मे भी वे उतने ही विचारक और चिंतक रूप में दिखते हैं।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे हिंदी और मराठी के प्रसिद्ध साहित्यकार दामोदर खड़से ने कहा कि नन्द बाबू की कविता से पाठक आसानी से जुड़ जाता है। जो दिखता नहीं उसे जो दिखा दे वो कालजयी रचना होती है इस लिहाज़ से नन्द बाबू का काव्य कालजयी है।
नन्द बाबू के साक्षात्कारों को उल्लेखनीय बताते हुए उन्होंने कहा कि नन्द बाबू ने संस्कृति को अनुभवों की विराट शृंखला कहा है। उन्होंने कथेतर के क्षेत्र में भी नंद बाबू के अवदान को अविस्मरणीय बताया। तीनों सत्रों का संयोजन डा कीर्ति चुंडावत ने किया।
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के अतिथि गृह में स्थित बप्पा रावल सभागार में शहर के लेखक, संस्कृति कर्मी और पाठक उपस्थित थे।


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By desk 24newsupdate

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