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हम स्वयं ही अपने मित्र और शत्रु है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज

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24 News Update उदयपुर। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बडे हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है। आगामी 10 अगस्त को शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की भावयात्रा का आयोजन भी किया जाएगा।
श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि शुक्रवार को आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा इस जगत् में अपना कोई भी शत्रु नहीं है नहीं कोई मित्र है। अपने मानसिक विचारों से ही हम ही अपने शत्रु है और हम स्वयं ही अपने मित्र है। मन में पैदा होने वाले अशुभ विचारों के माध्यम से हम अपनी आत्मा की दुर्गति करते है और मन में पैदा होने वाले शुभ विचारों। के माध्यम से ही हम उत्पनी सद्गति खड़ी करते है। अत अशुभ विचारों का त्याग करके हमे शुभ विचार पैदा करने के लिए विशेष प्रयत्नशील होना चाहिए। मन में शुभ विचार और शुब्द आशय न हो तो किया हुआ की हुई धर्म क्रियाएँ भी आत्मिक लाभ नहीं दे सकती है। परमात्मा ने धर्म आराधना के चार भेद बताए है। दान, शील, लप और भावा. दान देने से के पीछे धन की आसक्ति तोडने का लक्ष्य होना चाहिए। यदि धन की आसक्ति तोडऩे का लक्ष्य न हो तो दिया हुआ दान भी मात्र पुण्य के द्वारा रिद्धी सिद्धि की प्राप्ति एवं आसक्ति की वृद्धि कराकर दुर्गति में ले जाने वाला बनता है। शील के पालन के पीछे इन्द्रिय के विषयों की आसक्ति तोडऩे का लक्ष्य होना चाहिए, मनि शरीर के आरोग्य और सुंदरता का। यदि आसक्ति तोडऩे का लक्ष्य न हो तो किया हुआ शील पालन दिव्य भोगों का डीडा बना देता है। तप धर्म के पालन के पीछे कर्मों की निर्जश का नक्ष्य होना चाहिए। तप, धर्म अग्नि के समान है, जो आत्मा के पर लगे हुए कर्मबंधनों को देता है।, तप करने के पीछे यदि मान-सम्मान पाने अथवा सांसारिक सुखों को पाने की लालसा हो तो वह आत्मिक सुख की प्राप्ति नहीं कराता है।
श्रीसंघ के अध्यक्ष डॉ.शैलेन्द्र हिरण ने बताया कि रविवार 10 अगस्त को प्रात: 9 बजे आराधना भवन सभागार में शंखेश्वर पार्श्वनाथ की भावयात्रा का आयोजन होगा। जिसमें संगीतकार रंगारंग प्रस्तुति देंगे। कार्यक्रम में शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के इतिहास पर चर्चा, प्रभु भक्ति, प्राचनी व अर्वाचीन अनैक प्रसंग पर प्रवचन होंगे।
इस अवसर पर कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया, अध्यक्ष डॉ.शैलेन्द्र हिरण, नरेंद्र सिंघवी, हेमंत सिंघवी, जसवंत सिंह सुराणा, भोपालसिंह सिंघवी, गौतम मुर्डिया, प्रवीण हुम्मड सहित कई श्रावक-श्राविकाएं मौजूद रही।

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