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आस्था पर भारी वीआईपी कल्चर : सांवलिया सेठ के दर पर वीआईपी बनाए रील, आम श्रद्धालु खाए मार!!!

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चित्तौड़गढ़। चित्तौड़गढ़ के मंडफिया स्थित सांवलिया सेठ मंदिर से एक बार फिर ऐसा दृश्य सामने आया है, जिसने आस्था की पवित्रता से ज्यादा व्यवस्था की मानसिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल सीधा है—जब वीआईपी आते हैं तो वीडियो बनते हैं, रीलें चलती हैं, तब कोई नियम आड़े नहीं आता; मगर आम श्रद्धालु मोबाइल उठाए तो लाठियां क्यों चलती हैं?

रविवार रात मंदिर कॉरिडोर में मध्य प्रदेश के नीमच जिले के कुकड़ेश्वर निवासी श्रद्धालु प्रियांशु मालवीय के साथ जो हुआ, वह किसी एक व्यक्ति की पिटाई नहीं, बल्कि आम आदमी की आस्था पर प्रहार जैसा प्रतीत होता है। आरोप है कि निजी सुरक्षा एजेंसी ‘टाइगर फोर्स’ के गार्डों ने सिर्फ फोटो-वीडियो लेने की कोशिश पर श्रद्धालु को बेरहमी से पीटा, जिससे उसकी नाक और पैर से खून बहने लगा।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मंदिर परिसर में पहले कहासुनी हुई, फिर गार्डों ने श्रद्धालु को सीसीटीवी कैमरों से दूर ले जाकर जमकर पीटा। यही नहीं, खून साफ करवाया गया, मोबाइल से वीडियो-फोटो जबरन डिलीट कराए गए और बाद में समझौते का दबाव बनाया गया।

यह पहला मामला नहीं
यह घटना कोई अपवाद नहीं है। इससे पहले 25 जून, अमावस्या के दिन भी इसी निजी सुरक्षा कंपनी के गार्डों द्वारा श्रद्धालुओं पर लाठीचार्ज के आरोप लग चुके हैं। सवाल उठता है कि अगर बार-बार शिकायतें हैं, तो कार्रवाई क्यों नहीं?

नियम सबके लिए या सिर्फ आम आदमी के लिए?
मंदिर प्रशासन का तर्क है कि परिसर में फोटो-वीडियो बैन हैं। लेकिन श्रद्धालुओं का कहना है कि जब राजनेता, उद्योगपति या वीआईपी आते हैं, तब कैमरे खुल जाते हैं, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होते हैं और तब व्यवस्था को कोई “सुरक्षा खतरा” नजर नहीं आता।
तो फिर आम श्रद्धालु के हाथ में मोबाइल आते ही नियम लोहे की छड़ी क्यों बन जाते हैं?

पुलिस और प्रशासन की चुप्पी
पीड़ित का आरोप है कि उसने लिखित शिकायत देने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने लेने से इनकार कर दिया। वहीं पुलिस का कहना है कि गार्ड मौके पर नहीं मिला और मंदिर मंडल ने समझौता करवा दिया।
यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या आस्था के स्थानों पर कानून भी समझौते के हवाले कर दिया गया है?

सांवलिया सेठ मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां अगर भगवान के दर पर भी वीआईपी और आम आदमी की दो अलग-अलग व्यवस्थाएं होंगी, तो यह सिर्फ एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि आस्था के मूल सिद्धांत—सब बराबर हैं—का अपमान है। अब जरूरत है कि मंदिर प्रशासन और जिला प्रशासन स्पष्ट करे—नियम सबके लिए समान होंगे या लाठी सिर्फ आम श्रद्धालु के हिस्से ही आएगी?

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