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सुविवि में अभाविप के प्रदर्शन, नारेबाजी पर भड़कीं वीसी, अनुशासन समिति बनाई, एफआईआर की अनुशंसा, छात्रनेता बोले-हम कोई आतंकवादी नहीं

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24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव सहित अन्य मांगों पर हुए अभाविप के प्रदर्शन के दौरान वीसी के खिलाफ नारेबाजी से वीसी आहत हो गईं हैं। 14 जुलाई को हुए इस प्रदर्शन पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया है। कुलपति के निर्देश पर छह सदस्यीय अनुशासन समिति गठित की गई है, जो प्रदर्शन में शामिल छात्रों की भूमिका की जांच कर तीन कार्य दिवस में रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। प्रदर्शन के दौरान कुलपति के खिलाफ नारेबाजी और कुलानुशासक से कथित दुर्व्यवहार को कारण बताया गया है।
जिन छात्रों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई और थ्प्त् की अनुशंसा की गई हैं उनमें छात्रनेता त्रिभुवनसिंह राठौड़,
प्रवीण टाक, हर्षवर्धननाथ चौहान, अविनाश कुमावत, युवराज राव, जैकी मीणा, रौनकराजसिंह शक्तावत, अंशुमानसिंह शक्तावत शामिल हैं। प्रशासनिक आदेश क्रमांक प./261/सामान्य/मोलासुविवि/2025/3349 के अनुसार, जांच के लिए गठित अनुशासन समिति में प्रो. एस.एस. भाणावत, अधिष्ठाता छात्र कल्याण को कमेटी का अध्यक्ष,
प्रो. एम.एस. ढाका, कुलानुशासक को सदस्य,डॉ. शिल्पा सेठ को सदस्य, इसी प्रकार डॉ. अजीत कुमार भाबोर, डॉ. टीकम चंद डाकल, डॉ. माया चौधरी को सदस्य बनाया गया है। इस कार्रवाई को हास्यास्पद बताते हुए छात्र नेता त्रिभुवनसिंह राठौड़ ने कहा कि यह हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। “छात्रसंघ चुनाव की मांग करना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है और हम केवल अपने कार्यस्थल, विश्वविद्यालय में इस मांग को लेकर पहुंचे थे। छात्रनेताओं का काम है आम छात्र की आवाज़ को प्रशासन तक पहुँचाना। बढ़ती अनियमितताओं से यह स्पष्ट है कि प्रशासन आम छात्र की कितनी सुध ले रहा है। बिना छात्रसंघ चुनाव कराए इन समस्याओं का समाधान संभव नहीं। यह हमारा कर्तव्य है कि हम हर छात्र की समस्या का निवारण करें, जिसे कोई हमसे नहीं छीन सकता। राठौड़ ने विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा गठित अनुशासन समिति पर भी सवाल उठाते हुए कहाः
कि “हम न तो आतंकवादी हैं और न ही किसी आपराधिक प्रवृत्ति के। हम इसी विश्वविद्यालय के नियमित छात्र हैं और एक छात्र अपने शिक्षक के पास हजारों बार अपनी समस्या लेकर जा सकता है। यह कोई अपराध नहीं है।“
अन्य छात्रों का कहना है कि उनकी मांगें जायज़ हैं और उन्हें शांतिपूर्ण ढंग से उठाना उनका अधिकार है।

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