24 News update उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय द्वारा फसल विविधीकरण परियोजना के तहत अधिकारियों का दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आज से प्रारंभ हुआ। इस कार्यक्रम में 30 सहायक कृषि अधिकारियों और कृषि पर्यवेक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रशिक्षण का उद्देश्य कृषि अधिकारियों को दक्षिण राजस्थान की कृषि व्यवस्था को बदलने के लिए नवीन रणनीतियों से सशक्त बनाना है, ताकि फसल विविधीकरण की चुनौतियों और अवसरों पर गहन चर्चा की जा सके। यह पहल शुष्क दक्षिण राजस्थान में सतत कृषि और ग्रामीण रोजगार सृजन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
उद्घाटन सत्र में परियोजना प्रभारी डॉ. हरि सिंह ने कहा कि यह प्रशिक्षण पारंपरिक एकफसली खेती से विविधीकृत प्रणालियों की ओर बदलाव पर केंद्रित है। उन्होंने बताया कि ऐसी प्रणाली न केवल मिट्टी की सेहत में सुधार लाती है, बल्कि जलवायु परिवर्तनशीलता से जोखिम कम करने और किसानों की आय बढ़ाने में भी सहायक है। उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और बांसवाड़ा जैसे जिलों में जल की कमी और अनियमित मानसून जैसी परिस्थितियों को देखते हुए दालों, तिलहन और बागवानी फसलों को मक्का और गेहूं जैसी मुख्य फसलों के साथ शामिल करना उत्पादकता और रोजगार सृजन के लिए क्रांतिकारी बदलाव साबित हो सकता है।
अनुसंधान निदेशक डॉ. अरविंद वर्मा ने अपने संबोधन में विविधीकृत फसलों के लिए खरपतवार प्रबंधन में उन्नत अभ्यासों पर चर्चा की और बताया कि एकीकृत दृष्टिकोण से उपज हानि को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि फसल विविधीकरण, जिसमें चक्रण और अंतरफसल प्रणाली शामिल है, खरपतवार जीवन चक्र को बाधित करता है और रासायनिक खरपतवार नाशियों पर निर्भरता घटाकर सतत प्रबंधन की दिशा में सहायक सिद्ध होता है।
प्रोफेसर डॉ. पोखर रावल ने विविधीकृत फसल प्रणालियों के अंतर्गत उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नत कृषि अभ्यासों पर व्याख्यान दिया। उन्होंने फसलों में लगने वाले रोगों और उनके निदान पर विस्तृत जानकारी दी तथा फसलों की देखभाल और उत्पादन बढ़ाने की आधुनिक विधियों से प्रतिभागियों को अवगत कराया। इसी क्रम में डॉ. बैरवा ने बागवानी और कृषि फसलों की लागत और लाभ का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि सब्जियों, फलों और मसालों जैसी बागवानी फसलों में निवेश सामान्य फसलों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक होता है, लेकिन इनसे मिलने वाला लाभ भी कई गुना बढ़ जाता है।
कार्यक्रम में विशेषज्ञों का मत रहा कि फसल विविधीकरण किसानों के लिए न केवल लाभप्रद सिद्ध होगा बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी सृजित करेगा। इससे कृषि व्यवस्था दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ बनेगी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। यह जानकारी मीडिया प्रभारी डॉ. जीएल. मीना ने दी।
दक्षिण राजस्थान में फसल विविधीकरण पर दो दिवसीय अधिकारी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू

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