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फसल विविधीकरण पर दो दिवसीय प्रशिक्षण का समापन: किसानों की आय बढ़ाने व सतत खेती को मिलेगा बढ़ावा

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24 News Update उदयपुर, 19 जुलाई। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय द्वारा झाड़ोल तहसील के तुरगढ़ गांव में आयोजित दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुक्रवार को सफल समापन हुआ। फसल विविधीकरण परियोजना के तहत आयोजित इस प्रशिक्षण में कुल 25 किसानों ने भाग लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों से रूबरू कराना, फसल विविधीकरण के लाभ समझाना, और उन्हें आत्मनिर्भर कृषि प्रणाली अपनाने हेतु प्रेरित करना रहा।
समापन सत्र में परियोजना प्रभारी डॉ. हरि सिंह ने कहा कि फसल विविधीकरण न केवल किसानों की आमदनी को बढ़ाता है, बल्कि यह मृदा स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ खेती के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने बताया कि एक ही खेत में विविध फसलें उगाने से पोषक तत्त्वों का संतुलन बना रहता है और कीट-रोग नियंत्रण में भी मदद मिलती है। मक्का, दालें और तिलहन की मिश्रित खेती को उन्होंने स्थानीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त बताते हुए कई व्यावहारिक उदाहरण दिए। इस दौरान डॉ. नरेन्द्र यादव ने तिलहन फसलों की महत्ता पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मूंगफली और सोयाबीन जैसी फसलें नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक होती हैं, जिससे मृदा की उर्वरता बनी रहती है। साथ ही इन फसलों की बढ़ती बाजार मांग किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है।
प्रशिक्षण के दौरान खरपतवार नियंत्रण को लेकर भी किसानों को आधुनिक यंत्रों व तकनीकों का लाइव डेमो दिखाया गया। शाकनाशी के सुरक्षित छिड़काव, उचित मात्रा और समय निर्धारण की जानकारी ने किसानों को विशेष रूप से प्रभावित किया।

कार्यक्रम के अंत में डॉ. हरि सिंह ने सभी किसानों, विशेषज्ञों एवं आयोजन टीम का आभार व्यक्त किया। उन्होंने भरोसा जताया कि इस प्रशिक्षण से किसानों में वैज्ञानिक सोच बढ़ेगी और वे अब अपनी कृषि पद्धतियों में नवाचारों को शामिल कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
समापन अवसर पर परियोजना से जुड़े तकनीकी सहयोगी मदनलाल मरमट और गोपाल नाई भी उपस्थित रहे, जिन्होंने किसानों को व्यावहारिक सहायता प्रदान की।

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