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आरटीआई की ‘सर्जरी’ करने वालों की हो गई ‘सर्जरी’, सूचनाओं पर कुंडली मार कर बैठे अफसरों को 7 दिन में सूचना देने के आदेश

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24 news update उदयपुर। शहर के निजी अस्पतालों की व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल उठाने वाली आरटीआई की अपील अब सरकार के उंचे वाले दरवाजे तक पहुंच चुकी है। नामी निजी अस्पतालों में आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं की स्थिति और रेफरल मामलों से जुड़ी जानकारी छिपाने पर अपीलीय अधिकारी एवं निदेशक (जन स्वास्थ्य) डॉ. रवि प्रकाश शर्मा ने सख्ती दिखाते हुए आदेश दिया है कि अपीलार्थी को मांगी गई जानकारी सात दिन के भीतर उपलब्ध कराई जाए। आदेश का पालन नहीं होने पर संबंधित जन सूचना अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
यह आदेश जयवंत भैरविया बनाम मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (अशोक आदित्य) उदयपुर के मामले में पारित किया गया। अपीलीय अधिकारी ने स्पष्ट किया कि सूचना देना अनिवार्य है और विलंब या इंकार की स्थिति में यह सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 की सीधी अवहेलना मानी जाएगी।

आरटीआई में उठाए गए सवाल
देश के जाने-माने एक्टिविस्ट और पत्रकार जयवंत भैरविया ने आरटीआई के जरिए 1 जनवरी 2025 से 1 जुलाई 2025 तक सड़क दुर्घटनाओं में घायल उन मरीजों की सूची मांगी थी जिन्हें इलाज से वंचित कर निजी अस्पतालों मसलन जेके पारस, गीतांजलि मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से राजकीय महाराणा भूपाल अस्पताल में रेफर कर दिया गया था। भैरविया ने साथ ही यह भी पूछा था कि क्या इन अस्पतालों में क्रिटिकल केयर सुविधाएं और प्रशिक्षित चिकित्सक मौजूद हैं? आगजनी या आपदा की स्थिति में मरीजों को सुरक्षित निकालने के लिए रैम्प जैसी अनिवार्य संरचनाएं हैं या नहीं? निजी अस्पतालों के बाहर बाउंसरों की तैनाती की अनुमति सीएमएचओ कार्यालय ने दी थी या नहीं? यदि दी थी तो किस नियमावली के तहत? गंभीर मरीजों को इलाज से वंचित करने पर ऐसे अस्पतालों पर किस प्रकार की वैधानिक कार्यवाही हो सकती है? राज्य सरकार द्वारा क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत तय मापदंडों का पालन इन अस्पतालों में किया जा रहा है या नहीं?

विभाग की चुप्पी और सवालिया निशान, मिलीभगत का अंदेशा
इन संवेदनशील सवालों पर सीएमएचओ कार्यालय, उदयपुर ने या तो जानकारी देने से साफ मना कर दिया या फिर आवेदन ही निरस्त कर दिया। यहां तक कि उपलब्ध कराई जाने वाली सूचना में अधिकारियों के नाम, पदनाम, मोहर, ईमेल और संपर्क नंबर तक शामिल नहीं किए गए, जबकि नियमों के अनुसार यह अनिवार्य है। यह रवैया न केवल आरटीआई अधिनियम की भावना के खिलाफ है बल्कि प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देशों की भी अनदेखी करता है। इससे न केवल सरकारी पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं, बल्कि यह भी संकेत मिलता है कि निजी अस्पतालों की कार्यप्रणाली और विभागीय निगरानी में गंभीर कमी है।

अब नहीं मार संकेगे सूचनाओं पर कुंंडली
अब अपीलीय अधिकारी के आदेश के बाद उम्मीद की जा रही है कि विभाग बाध्य होकर पूरी जानकारी उपलब्ध कराएगा। यह आदेश न सिर्फ निजी अस्पतालों की जवाबदेही तय करेगा बल्कि उदयपुर की आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था की असल तस्वीर भी सामने ला सकता है। कायदे से तो यह काम हमारे जन प्रतिनिधियों को करना चाहिए मगर उनकी दिलचस्पी और व्यस्तता जनता के स्वास्थ्य से इतर कई अन्य मुद्दों पर हैं।

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