24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। आजकल सम्मान समारोह का नया धंधा चल पड़ा है। यह प्रोफिटेबल भी है और सब कुछ फेक होते हुए भी नॉबल लगने वाला भी। पहले बरसों में सुनने को मिलता था कि फलां-फलां को बहुत बड़े काम के लिए सम्मानित किया गया। पूरा गांव, कस्बा, शहर गौरवान्वित महसूस करता था। बरसों तक उस सम्मान के चर्चे होते थे लेकिन आजकल तो हर दूसरे दिन कोई ना कोई किसी ना किसी रूप में सम्मानित हो रहा है। हर जगह, हर वक्त सम्मान समारोह के स्टार्ट अप जोशीले ऑफर से साथ बाजार को हरा-भरा कर रहे हैं। स्कूल, कॉलेज, गांव, शहर-कॉरपोरेट से लेकर सरकारी दफ्तर या फिर मीडिया संस्थान से लेकर एनजीओ तक। हर कोई इस वायरल बुखार में तप-तप कर मरा जा रहा है। सबसे मजेदार बात यह है कि सम्मानित होने वाले खुद अपनी ढपली बजा-बजा कर, राग अलापते हुए, सोशल मीडिया से लेकर असल ज़िंदगी तक इन सम्मानों के सहारे बधाइयां बंटोर रहे हैं। स्टेटस लगा कर बता रहे हैं कि हम सम्मानित हुए हैं, आप बधाइयों के पिटारे भेजिये। जिनको बधाइयां नहीं मिल रही है वे छोटा-मोटा चाय-पानी का खर्चा करके सोशल मीडिया पर बता रहे हैं कि उनका सम्मान सचमुच किसी बहुत बड़े परिश्रम का नतीजा है।
यह धंधा इतना फल-फूल रहा है कि अब तो पुलिस, डॉक्टर और सरकारी अफसरों तक को सम्मान दिया जाने लगा है वो भी बल्क में। जैसे कोई होलसेल की दुकान पर ऑफर वाला जलसा लगा हो। एक दुकान ने आज सम्मानित किया, दूसरी दुकान कल करने वाली है। तीसरी को पता चलते ही वह भी सम्मान के शामियाने तानने पर तुली है। यह मंजर ही गजब का है। सरकारी नौकरी करने वाले सम्मान नहीं लेंगे, यह आचार संहित का हिस्सा है मगर कौन बुद्धु है जो इसको मानने वाला है।
हमें तो हर हाल में सम्मानित होना है। और तो और सम्मानित होने वालों की सूची में नाम आने के लिए लोग जैक-जुगाड़ छोड़िए, टेबल के नीचे से कैश और विज्ञापन तक का जुगाड़ काम में ले रहे हैं।
सम्मान समारोह को “लेजिटिमेट” दिखाने के लिए तरह-तरह के जुमले और भाषण उछाले जा रहे हैं, और कई जगह तो राष्ट्रवाद की चाशनी में लपेटकर सम्मान परोसा जा रहा है। हमारे विधायक, सांसद, जन प्रतिनिधि, नेतागण, अफसर ऐसे सम्मान समारोह की ऐसी शोभा बढा रहे हैं मानों उनको जनता ने चुना ही इसी लिए है कि आप जाइये। सम्मान समारोह में जमकर टाइम खोटी कीजिए, हम तो बने ही झिड़कियां और धक्की खाकर अपने काम के लिए जूते घिसने के लिए हैं। और गलती से आपने कभी इन सम्मान धंधों के मंच पर भाषण सुन लिया हो तो आपको लगेगा कि ऐसा आदर्शवाद, ऐसी सादगी, ऐसा जोश तो पूरी दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिल रहा है। कुछ अतिथि तो इनते स्वनाम धन्य होते हैं कि पीछे की सीटों पर बैठे लोग खुसफुसा रहे होते हैं कि-देखो, खुद की संस्थान में तो जमकर घपले कर रहा है और यहां बोलवचल कर रहा है। या फिर ये अफसर तो इतना ज्यादा ईमानदार है कि बिना मुट्ठी गर्म किए फाइल को हाथ ही नहीं लगाता।
इस धंधे ने असली सम्मान की महत्ता को कम ही नहीं धूमिल करके रख दिया है। जो लोग वास्तव में मेहनत और टैलेंट की क्रद के हकदार हैं, उनकी कद्र अब घट गई है। असली हीरो, जो गुमनाम रहकर समाज या अपने क्षेत्र में योगदान देते हैं, उनके नाम अब अक्सर इन चमक-दमक वाले समारोहों की सूची में आता ही नहीं है।
सवाल यह है क्या यह सम्मान अब सिर्फ दिखावे और फोटोशूट तक ही सीमित रह गए है? या यह वास्तव में किसी की काबिलियत और सेवा का मूल्यांकन करने के लिए है? लगता है कि असली सम्मान अब कहीं खो गया है, और बचा सिर्फ धूम-धड़ाका और पोस्ट-लाइक का खेल। यह खेल तब तक चलेगा जब तक की नकली लोगों की सम्मान पाने और बांटने की भूख खत्म नहीं होगी। वैसे एक बात कहें तो यह सम्मान समारोह कई संस्थानों के लिए सालाना कमाई का भी सोर्स है। स्पांसर ढूंढकर कार्यक्रम करते हैं और इतनी मोटी कमाई कर लेते हैं कि हींग लगती है ना फिटकिरी, रंग चोखा आ जाता है। मोटा माल बन जाता है। तो, अगली बार जब आप भी किसी सम्मानित करने वाले धंधे के मॉडल से सम्मानित व्यक्ति को देखें तो उसे बधाई जरूर दें। सम्मान की नहीं, सम्मान के लिए जुगाड़ से चयनित हो जाने की।
ईजी मनी की लालसा रखे वालों को चाहिए कि वे तत्काल इस स्टार्टअप की तरफ ध्यान दें व इसमें नए इनोवेशन करते हुए इस विधा को और आगे ले जाएं।
आजकल खूब फल-फूल रहा है सम्मान समारोह का धंधा, इस हाथ ‘कुछ दे’ उस हाथ ‘‘सम्मान ले-ले’’ का नया दस्तूर

Advertisements
