24 न्यूज अपडेट उदयपुर। आम बोलचाल में शहर के कई लोग अपने पसंदीदा पुलिसकर्मियों को आजकल ‘‘सिंघम’’ कहने लगे है। वैसे तो यह तमिल शब्द है जिसका मतलब शेर है। पुलिस पर बनी कुछ फिल्मों में नायक दबंग पुलिसकर्मी का रोल अदा करता है। उन फिल्मों का टाइटल सिंघम रख दिए जाने के बाद से ये शब्द आमजन के लिए जाना-पहचाना हो गया है। वैसे तो ‘‘सिंघम’’ पुलिस विभाग की कोई उपाधि नहीं है और ना ही कोई आधिकारिक शब्द। फिर भी कभी कोई पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी करते समय कोई सफलता हासिल करता है या जनता को पसंद आने वाला पराक्रम दिखाता है तो नाम के साथ ‘‘सिंघम’’ शब्द चस्पा कर दिया जाता है। कई बार संबंधित पुलिसकर्मी या पुलिस अधिकारी को भी यह शब्द बहुत ज्यादा पसंद आने लगता है। और धीरे धीरे यह ट्रेंड बन जाता है। कई बार तो पुलिस को ग्लैमराइज करने वाले कुछ सोशल मीडिया हैंडल संबंधित पुलिसकर्मी की हर कार्रवाई पर उसका रूतबा बताने के लिए हवाबाजी करते हुए उसके नाम की जगह ‘‘सिंघम’’ शब्द का प्रयोग करते हुए महिमामंडन करने लग जाते हैं। उनके वीडियो में बेकग्राउंड म्यूजिक होता है और साथ ही यह अंदाज परोसा जाता है कि सिंघम है तो सब कुछ मुमकिन है। अपराधी उनके नाम से थर-थर कांपने लगते हैं। वे न होते तो ना जाने क्या हो जाता।
देश के जाने माने आरटीआई एक्टिवस्ट और पत्रकार जयवंत भैरविया ने बताया कि लगातार ‘‘सिंघम’’ नाम सुनने, देखने के बाद उनके मन में जिज्ञासा हुई कि आखिर पुलिस डिपार्टमेंट में ‘‘सिंघम’’ शब्द क्या वास्तव में अस्तित्व में भी है या नहीं या फिर केवल इसका ‘‘कॉस्मेटिक’’ यूज किया जा रहा है। जयवंत भैरविया ने इस मुद्दे पर जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आरटीआई लगाकर पूछा कि उदयपुर के उन अधिकारियों के नाम व पदनाम की सूचना प्रदान की जाए जिन्हें ‘‘सिंघम’’ की उपाधि दी गई है। साथ ही जिन्हें ‘‘सिंघम’’ कहा जाता है उनका नाम बताएं। ‘‘सिंघम’’ शब्द का अर्थ क्या है?? इस सवाल के जवाब में विभाग की ओर से ऐसी कोई सूचना संधारित नहीं होने से उपलब्ध करवाया जाना संभव नहीं है, यह जवाब मिला। इसके मायने यह हुए कि पुलिस विभाग में कोई भी ‘‘सिंघम’’ नहीं है। आम जनता को भी इस शब्द से इसलिए परहेज करना चाहिए ताकि वो सभी पुलिसकर्मियों को समान रूप से सम्मान दे सके। भैरविया ने कहा कि राजस्थान पुलिस पर उन्हें गर्व है व इसके अधिकतर कर्मचारी व अफसर अपना काम बखूबी करते हैं। लेकिन कुछ पुलिसकर्मी आमजन में डर और अपराधियों में दोस्ती करने में लगे हुए हैं। यह निंदनीय है। पुलिस विभाग को ऐसे कार्मिकों की पहचान करनी चाहिए। आपको बता दें कि जो भी पाठक इस खबर को पढ़ रहे हैं उनके आस-पास भी कुछ पुलिसकर्मियों को ‘‘सिंघम’’ की उपाधि मिली हुई है। यह उपाधि उन्हें जनता ने दी या फिर उन्होंने खुद अपने पक्ष में माहौल बना कर हासिल की, यह कहना बहुत मुश्किल है। समय-समय पर ‘‘सिंघम’’ वाली छवि का मुजाहिरा भी उनकी ओर से किया जाता है। जब ऐसा होता है तब पुलिस में ही अंदरखाने से कई बार फीडबेक आता है कि क्या ऐसा करना उचित है?? जो यह कर रहे हैं वे किस लाभ के लिए कर रहे हैं। जबकि पुलिस का काम ही जनता को हर हाल में कानूनी तरीकों से राहत दिलाना है। ‘‘सिंघम’’ की छवि सिनेमाई है और यह सिनेमा में ही अच्छी लगती है। किसी को लार्जर देन लाइफ छवि देना कहां तक ठीक है।
लेकिन दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि यदि कोई पुलिसकर्मी अपना केलिबर दिखाते हुए एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी प्रयास करता है व हर बार खुद को दूसरों से इक्कीस साबित करता है तब उसे सिंघम कहने में हर्ज ही क्या है। नौकरी तो हर कोई करता है लेकिन जिसके नाम से अपराधी थर-थर कांपे व चरणवंदन करें, जिसकी गोली से अपराधी पगबाधा हो जाए वो सिंघम नही तो और क्या है?? यदि किसी को सिंघम कहेंगे तो दूसरों में भी सिंघम जैसा बनने का मनोभाव जगेगा। और बेहतर पुलिसिंग देखने को मिलेगी। जनता में विश्वास का भाव जगेगा।
इन सबके बीच क्या यह भी सच है कि हर दौर में सत्ता प्रतिष्ठान की ओर से कुछ तात्कालिक ‘‘सिंघम’’ बनाए जाते हैं। उनके जरिये पुलिस की छवि पॉलिश की जाती है। ये ‘‘सिंघम’’ सर्व गुण संपन्न होते हैं व अधिकतर जटिल मामलों को हल करने वाले भी। लेकिन सत्ता बदलते ही ‘‘सिंघम’’ भी बदल जाते हैं। उनकी जगह नए ‘‘सिंघम’’ ले लेते हैं व यह सिलसिला अनवरत रहता है। बहरहाल, सच तो यह भी है कि जनता को हर दौर में अपने सिर माथे बिठाने के लिए किसी न किसी हीरो की तलाश तो जरूर होती है।
उदयपुर के पुलिस डिपार्टमेंट में नहीं है कोई ‘सिंघम’!!!

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