- उदयपुर स्थापना दिवस – चार दिवसीय समारोह का समापन
24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। उदयपुर के 474 वे स्थापना दिवस जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय एवं लोकजन सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित चार दिवसीय समारोह का समापन शुक्रवार को हुआ। समारोह के अंतिम दिन विद्यापीठ के प्रतापनगर स्थित कुलपति सचिवालय में उदयपुर – कल, आज और कल विषय पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। प्रारंभ में संस्थान के अध्यक्ष प्रो. विमल शर्मा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए चार दिवसीय समारोह की जानकारी दी।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि मेवाड़ का प्राचीन वाटर हार्वेस्टिंग तंत्र विश्व में अद्वितिय है। हमारे पुर्वजों ने हजारों सालों की प्लानिंग कर इस शहर का विकास किया लेकिन वर्तमान समय में हम आगामी 50 वर्षो की सोच भी नहीं रखते है जिस पर मंथन करने की जरूरत है। शहर का विकास देश की प्राथमिकता के अनुसार होना चाहिए, जिसमें अर्थ व्यवस्था, सांस्कृतिक, जनसंख्यॉ बदलाव, नवीन टेक्नोलॉजी का समावेश आवश्यक है। प्रो. सारंगदेवोत ने वन डिस्ट्रीक – वन प्रोडेक्ट, वन डिस्ट्रीक – वन स्कील के माध्यम से मेवाड़ देश ही नहीं विश्व में अपनी उत्कृष्ट पहचान बना सकता है।
मुख्य अतिथि कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि देश के समग्र विकास के लिए त्याग की भावना को पुनर्जिवित करना नितांत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि हम इतिहास में गुम हुए महान योद्धा जैसे पन्नाधाय को शरण देने वाले देवपुरा आदि को यथा योग्य सम्मान। जल की महता बताते हुए कहा कि देवास के सम्पूर्ण पानी को शहर में उपयोग हेतु जाने की जरूरत है।
पूर्व कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि शहरों के डामरीकरण व सीसी रोड़ बनने से भू जल में निरंतर कमी आ रही है जिसे रोकने की जरूरत है। पर्यटन के विस्तार के साथ आने वाली चुनौतियों का समय रहते निस्तारण आवश्यक है।
निजी सचिव केके कुमावत ने बताया कि व्याख्यानमाला में कमाण्डर प्रहलाद सिंह झाला, ज्ञानमल सोनी, प्रो. जीवनसिंह खरकवाल, दिनेश कोठारी, अशोक कलार्थी, हरीश तलरेजा, शरद भारद्धाज, रमाकांत शर्मा, जयकिशन चौबे, प्रो. विमल शर्मा, प्रहलाद सिंह झाला ने सम्बोधित करते हुए कहा कि पुराने जलाशयों में कभी रिसाव नहीं हुआ क्योंकि उसमें जस्ता भरा जाता था, हमारे जलाशय उस समय बने जब सीमेंट का अविष्कार भी नहीं हुआ। मेवाड में मानव गतिविधियों के 7 हजार साल पुराने अवशेष गिर्वा में तीन स्थानों पर मिलते है वहीं आहड की संस्कृति पांच हजार वर्ष पुरानी है, आगुचा में 280 मीटर नीचे 300 वर्ष ईसा पुर्व लकड़ी के अवशेष पाया जाना यह बताता है कि हमारे यहा धातु प्रसंस्करण का कार्य पांच हजार वर्ष पुराना है इसी तरह जस्ता जावर में 12वीं शताब्दी में होता था हालांकि दुर्भाग्यवश 16वीं शताब्दी में विदेशियों ने इसका पेटेंट प्राप्त किया।
इस अवसर पर प्रो. लक्ष्मीलाल धाकड़ की पुस्तक उदयपुर का वैभव झीले एवं संस्कृति पर विस्तृत चर्चा प्रो. विमल शर्मा ने बताया कि यह वृहद ए 3 आकार की बहुरंगी 500 पृष्ठ की पुस्तक में 500 चित्र के साथ मेवाड के हर पहलु को छूआ गया है। अशोक कलार्थी ने अपनी 384 फोटो वाली पुस्तक मेवाड ए हेरिटेज लेंड ऑफ लेक एण्ड ट्युरिजम डेस्टीनेशन की विस्तृत जानकारी दी। संचालन डॉ. कुल शेखर व्यास ने किया जबकि आभार मनेहर मुंदड़ा ने जताया।
इस अवसर पर गणेश लाल नागदा, इन्द्र ंसिंह राणावत, बद्री उस्ताद, नरेन्द्र उपाध्याय, सुरेश तम्बोली, शोयब कुरेशी,, नारायण पालीवाल, तरूण पुरी, संगीता सेनी, पायल सेन, सुपर्णा, अर्पित सहित शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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