आदिवासी जनाधिकार एका मंच व किसान सभा ने झाड़ोल उपखंड कार्यालय पर किया प्रदर्शन, प्रशासन को सौंपा ज्ञापन
उदयपुर, 9 अक्टूबर। अखिल भारतीय किसान सभा एवं आदिवासी जनाधिकार एका मंच के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को झाड़ोल उपखंड कार्यालय पर विभिन्न मांगों को लेकर एक विशाल आदिवासी आमसभा व प्रदर्शन आयोजित किया गया। सभा को संबोधित करते हुए आदिवासी जनाधिकार एका मंच के राज्य अध्यक्ष दुलीचंद ने कहा कि “आदिवासी इस देश के मूल निवासी हैं, हम इसके मालिक हैं, लेकिन सरकारों ने हमें गुलाम बनाकर रखा है — जो हमें मंजूर नहीं है।”
दुलीचंद ने कहा कि आदिवासियों को लूटा गया, शोषित किया गया और मुद्दों से भटकाने के लिए “आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी” का माहौल तैयार किया गया। उन्होंने कहा कि हमें मजदूर-किसानों का राज स्थापित करना है, क्योंकि खेती-किसानी की स्थिति बर्बादी की कगार पर है। झाड़ोल का लाल झंडा आंदोलन का गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसने वनभूमि पर कब्जे दिलाने और वेठ वेगार की लड़ाई लड़ी है।
उन्होंने कहा कि “आज वन अधिकार कानून के आवेदन दफ्तरों में धूल खा रहे हैं। सरकार विकास की बात करती है, जबकि आदिवासी भूख और कुपोषण से मर रहे हैं, महिलाएं रक्ताल्पता की शिकार हैं, शिक्षा-संस्थानों का अभाव है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि अगर गरीब और आदिवासी की भूख की आग दिमाग पर चढ़ गई, तो पूरा तंत्र हिल जाएगा।
सभा में मंच के राज्य सचिव विमल भगोरा ने कहा कि वर्ष 2004 में वामपंथियों ने कांग्रेस सरकार को जन मुद्दों के आधार पर समर्थन दिया था, जिसके परिणामस्वरूप वन अधिकार कानून, मनरेगा, और सूचना का अधिकार कानून अस्तित्व में आए। उन्होंने कहा कि आज जो भी अधिकार आदिवासियों को मिले हैं, वह कम्युनिस्टों के संघर्ष की देन हैं। भगोरा ने कहा कि विकास के नाम पर बांध और सेंचुरी तो बनाए जा रहे हैं, लेकिन विस्थापित आदिवासियों के पुनर्वास की कोई नीति नहीं है।
सभा को संबोधित करते हुए माकपा जिला सचिव राजेश सिंघवी ने कहा कि “देश में आज अमृतकाल नहीं, विषकाल चल रहा है। आदिवासी क्षेत्रों में जनता को लूटा जा रहा है और नेताओं द्वारा ‘आदिवासी हिंदू हैं’ का नारा देकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है।”

किसान नेता बाबूलाल वडेरा ने कहा कि आदिवासी वन भूमि पर अधिकार के पट्टों की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार उन्हें टाल रही है जबकि बड़े उद्योगपतियों को जंगल सौंपे जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम जान दे देंगे लेकिन जंगल नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि हम जंगल के राजा हैं, जंगल के मालिक हैं।”
एसएफआई के राज्य उपाध्यक्ष फाल्गुन बराड़ा ने कहा कि आज आदिवासी युवाओं का भविष्य अंधकार में है। शिक्षा के निजीकरण से उच्च शिक्षा आमजन की पहुंच से दूर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि “आदिवासी छात्र स्कूल भवन गिरने से मर रहे हैं और मुआवजे में पांच बकरियां दी जा रही हैं, तो अब चुनाव में हम भी नेताओं को उनकी कीमत बताएंगे।”
सभा में जिलाध्यक्ष हाकरचंद खराड़ी ने कहा कि आदिवासियों को राशन, पेंशन और मनरेगा में काम नहीं मिल रहा है, जबकि सरकार कहती है कि देश आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि “बाबूलाल खराड़ी आरएसएस की कठपुतली हैं, जो आदिवासियों को हिंदू बनाने की बात करते हैं। पहले अपने नेताओं से रोटी-बेटी के संबंध की बात करो, तभी पता चलेगा कि हिंदू कौन है।”
सभा की अध्यक्षता किसान नेता प्रेम पारगी ने करते हुए कहा कि यदि किसी भी आदिवासी को वन भूमि से बेदखल किया गया, तो जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को भी बेदखल किया जाएगा। उन्होंने झाड़ोल में फसल व अनाज की सरकारी खरीद केंद्र खोलने, राशन-पेंशन वितरण में सुधार, और सरकारी बस सेवा शुरू करने की मांग रखी।
सभा के अध्यक्ष कैलाशचंद्र बोदर सहित सीताराम, तेजाराम एवं बड़ी संख्या में आदिवासी समाजजन उपस्थित रहे।
सभा के बाद प्रेम पारगी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने उपखंड अधिकारी, झाड़ोल को ज्ञापन सौंपा, जिसमें मांग की गई कि—
- जंगलात भूमि पर जितना कब्जा है, उतने पट्टे जारी किए जाएँ,
- मनरेगा में साल में 200 दिन का कार्य और ₹600 प्रतिदिन मजदूरी दी जाए,
- शिक्षित बेरोजगारों को नियोजन व ₹10,000 मासिक भत्ता,
- आदिवासी जनसंख्या के अनुपात में विकास बजट,
- विद्यालयों व आश्रम छात्रावासों की सुव्यवस्था व नई इकाइयाँ,
- सरकारी कॉलेज व छात्रा कॉलेज की स्थापना,
- खाद्य सुरक्षा योजना में प्रति यूनिट 15 किलो गेहूं व 10 लीटर केरोसिन,
- प्रधानमंत्री आवास योजना में ₹5 लाख प्रति मकान,
- विधवा व विकलांगों को ₹5,000 मासिक पेंशन,
- संविदा कर्मियों का मानदेय बढ़ाने,
- सड़क, पेयजल व परिवहन व्यवस्था सुधारने,
- तथा पेसा अधिनियम और पांचवी अनुसूची के प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू करने की मांग की गई।
कार्यक्रम का संचालन प्रभुलाल भगोरा ने किया।
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