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सोता रहा सिस्टम, मरते रहे बच्चे : स्कूल बिल्डिंग ढही, 7 बच्चों की मौत, 28 गंभीर घायल, क्या नामी नेताओं के शोक से हो पाएगी भरपाई??

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24 न्यूज अपडेट, झालावाड़। राजस्थान के झालावाड़ जिले में शुक्रवार सुबह कोहराम मच गया, मनोहरथाना ब्लॉक के पीपलोदी गांव स्थित सरकारी स्कूल की एक कक्षा की छत बारिश के दौरान भरभरा कर गिर गई। हादसे में 7 मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि 28 से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए हैं। मृतकों में 7वीं कक्षा के छात्र शामिल हैं, जो हादसे के वक्त उसी कमरे में पढ़ाई कर रहे थे। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा दोपहर 1.30 बजे घटनास्थल पहुंचेंगे, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर गहरा शोक जताया और घायलों को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया है।
इस मामले में सवाल गंभीर हैं। क्या नेताओं के ट्विट या मौके पर पहुंचने से सिस्टम सुधर जाएगा? साल दर साल, सरकार दर सरकार ऐसे हादसे आखिर क्यों हो रहे हैं। हमारे नेताओं जिनके हाथों में हमारे टेक्स के पैसों वाले खजाने की चाबी है वे कब तक भ्रष्टाचार करते हुए यूं ही खून सने हाथों के बावजूद बचते और दूसरों को बचाते रहेंगे। जो सिस्टम अपने बच्चों को एक महफूज स्कूली छत नहीं मुहैया करवा सकता, उसका अस्तित्व ही आखिर क्यों होना चाहिए यह गंभीर सवाल उठ रहा है। इस मामले में परिजन बार बार कहते रहे, प्लास्तर गिरता रहा मगर किसी ने नहीं सुना। आखिरकार छत गिर गई और माता पिता के कलेजों के टुकड़ों, मासूमों ने चीख के साथ पलभर में प्राण त्याग दिए। ऐसी घटनाएं आगे नहीं होगी, इसमें पूरा संदेह है। सिस्टम तभी सुधरेगा जब आसपास के स्कूलों को हम देखेंगे। उस पर नजर रखेंगे जब भी स्कूल बनें निर्माण में भ्रष्टाचार का अंशमात्र भी नहीं हो। यदि जर्जर हैं तो सरकार के भरोसे पर नहीं रहकर खुद आगे आएं। क्योंकि जो नेता अपने देश के भविष्य को सुरक्षित स्कूल छत नहीं दे सकते, वे देश को आगे ले जाने की कुव्वत कतई नहीं रखते।
बहरहाल, हादसा सुबह करीब 8 बजे हुआ, जब 7वीं कक्षा के 35 बच्चे कक्षा में मौजूद थे। लगातार हो रही बारिश के कारण स्कूल की जर्जर बिल्डिंग का एक हिस्सा अचानक भरभराकर गिर गया। भारी आवाज सुनते ही पूरा गांव दहल उठा। स्थानीय ग्रामीण, परिजन और टीचर्स भागते हुए स्कूल पहुंचे और मलबे में दबे बच्चों को बचाने के लिए रेस्क्यू शुरू किया। भयावह मंजर में चीख-पुकार मच गई, बदहवास मां-बाप मलबे में अपने बच्चों को ढूंढते नजर आए।
स्थानीय चिकित्सालय मनोहरथाना में 35 घायल बच्चों को लाया गया, जहां डॉ. कौशल लोढ़ा ने बताया कि इनमें से 5 बच्चों की मौत मौके पर ही हो चुकी थी। हालत गंभीर होने पर 11 बच्चों को झालावाड़ जिला अस्पताल रेफर किया गया, जहां एक और बच्चे ने दम तोड़ दिया। अब तक पायल (14) पुत्री लक्ष्मण, प्रियंका (14) पुत्री मांगीलाल, कार्तिक (8) पुत्र हरकचंद, हरीश (8) पुत्र बाबूलाल, कान्हा पुत्र छोटूलाल, कुंदन (12) पुत्र वीरम और एक अन्य की मौत की पुष्टि हुई है।
झालावाड़ अस्पताल में घायलों को लाने के बाद पूरे परिसर में अफरा-तफरी मच गई। कई बच्चे बेहोशी की हालत में थे और सिर पर गहरी चोटें आई थीं। मां-बाप रोते हुए अपने बच्चों को गोदी में लेकर इमरजेंसी वार्ड की ओर दौड़ पड़े। एक घायल बच्ची की मां ने बताया कि कई बार अधिकारियों को बताया गया था कि स्कूल बिल्डिंग की हालत खतरनाक है, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
घटना के बाद शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्वीकार किया कि राज्य में हजारों स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। उन्होंने कहा, “हमने इनकी मरम्मत के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रस्ताव बनाया है। फिलहाल प्राथमिकता घायल बच्चों का समुचित इलाज है।“ वहीं, मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने हादसे की जांच के आदेश दिए हैं और पीड़ितों को हरसंभव सहायता देने का भरोसा जताया है।
स्कूल में हादसे के वक्त केवल दो शिक्षक मौजूद थे, लेकिन वे दोनों बाहर थे। ग्रामीणों ने बताया कि बारिश के कारण दीवारें पहले से गीली थीं और पिछले कुछ दिनों से प्लास्टर गिरने की घटनाएं भी हुई थीं, लेकिन किसी अधिकारी ने संज्ञान नहीं लिया। हादसे के बाद मौके पर पहुंचे रेस्क्यू कर्मियों ने बताया कि कई बच्चे भारी पट्टियों के नीचे दबे हुए थे और कुछ का पता घंटों बाद चला।
स्कूल परिसर अब खंडहर में तब्दील हो चुका है, चारों तरफ बच्चों की किताबें, बैग, चप्पलें और टूटी हुई मेज-कुर्सियां बिखरी पड़ी हैं। ग्रामीणों में गहरा आक्रोश है। उनका कहना है कि यह महज एक हादसा नहीं बल्कि सरकारी लापरवाही की पराकाष्ठा है। मुख्यमंत्री के दौरे से पहले प्रशासन ने घटनास्थल पर साफ-सफाई और मलबा हटाने का काम तेज कर दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्षी दलों ने भी इस हादसे को लेकर सरकार की जवाबदेही तय करने की मांग की है। बच्चों की मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है, और यह घटना सरकारी स्कूलों की जर्जर दशा और शिक्षा व्यवस्था की असफलता की एक दर्दनाक तस्वीर पेश कर रही है।
यह हादसा सिर्फ पीपलोदी गांव का नहीं, बल्कि उन तमाम गांवों की चेतावनी है जहां बारिश के साथ-साथ दीवारें भी ढहने का डर बच्चों पर मंडराता रहता है। सवाल अब सिर्फ मुआवजे या बयानबाजी का नहीं, बल्कि उन नन्ही जानों की सुरक्षा का है, जिनकी उम्मीदें स्कूल की चारदीवारी के भीतर पलती हैं।

प्रशासन की बड़ी लापरवाही, अब शुरू हुआ ब्लैम गेम
कलेक्टर के मुताबिक स्कूल शिक्षा विभाग को पहले ही निर्देश दिए गए थे कि जो भी जर्जर भवन हो वहां स्कूलों की छुट्टी कर दी जाए, लेकिन खुद कलेक्टर कह रहे हैं कि ना तो यह स्कूल जर्जर भवन की सूची में था और ना ही यहां बच्चों की छुट्टी की गई। जबकि बच्चों ने कहा कि छत गिरने से पहले कंकड़ गिर रहे थे, बच्चों ने बाहर खड़े टीचर्स को इसकी जानकारी दी, लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया और थोड़ी देर बाद ही छत गिर गई।

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