रिपोर्ट – जयवंत भैरविया

24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। शहर के जल संसाधन विभाग के अफसर लगता है कि ताजा अरावली होटल के रसूख के आगे बिछ गए हैं। विभाग की जमीन पर होटल ने सड़क बनाकर गार्ड बिठा दिया है। गेट लगा दिया है। रास्ते पर कब्जा करके सीसीटीवी कैमरे लगा दिए हैं। पूरी जमीन पर कब्जे के बावजूद अफसर भ्रष्टाचार में इतने ज्यादा डूब गए हैं कि आरटीआई में जवाब मांगने पर कह रहे हैं कि जमीन विभाग के कब्जे में हैं। होटल से वापस ले ली गई है। जबकि सच्चाई आप खुद फोटो में ही देख लीजिए।
आपको बता दें कि देवास परियोजना में बनाई गई कोड़ियात टनल के पास अरमाजोक नदी के समीप स्थित किसान की जमीन (खसरा नं. 131 एवं 134, ग्राम बुझड़ा, तहसील गिर्वा) को सुरक्षा और रख-रखाव कार्यों के लिए किसान से आवप्त कर लिया गया था। मगर बाद में विभागीय अधिकारियों ने ही मिलीभगत करते हुए यह जमीन होटल ताज अरावली को सशुल्क पार्क बनाने के लिए कुछ शर्तों के अधीन पांच वर्षों के लिए अस्थायी रूप होटल को सौंप दी। पांच साल तक होटल ने शर्तों की कोई पालना नहीं की मगर अफसर सोते रहे। जल संसाधन विभाग के अधिशाषी अभियंता उदयपुर द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट किया गया था कि होटल को यह भूमि केवल सीएसआर गतिविधि के लिए दी जा रही है। इसमें यह शर्त भी रखी गई थी कि जमीन का स्वामित्व जल संसाधन विभाग का रहेगा, विकास कार्य विभाग के अनुमोदित प्लान के अनुसार किए जाएँ, और भविष्य में किसी भी समय विभाग को आवश्यकता पड़ने पर इसे वापस लेने का अधिकार रहेगा।
पांच वर्षों की अवधि मई 2025 में पूरी होने के बाद भी होटल ने पार्क का निर्माण नहीं किया। जब जल संसाधन ने जमीन वापस मांगी तो जमीन वापस नहीं दी। होटल के अधिकारियों और कुछ विभागीय कर्मचारियों की मिलीभगत से जमीन पर पक्की सड़क बना दी गई और इसे होटल के उपयोग में लिया जा रहा है। मौके पर गेट लगाकर सुरक्षा गार्ड तैनात किए गए हैं और सीसीटीवी कैमरे लगाकर निगरानी की जा रही है। याने जमीन किसान की। विभाग ने जनहित में लिया। उसके बाद पार्क के नाम पर होटल को ऐसे सौंप दिया जैसे यह कोई गिफ्ट हो। इसके बदले में अफसरों और चुप रहने वाले नेताओं ने कितना गिफ्ट लिया, यह गंभीर जांच का विषय है।
देश के जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकार जयवंत भैरविया ने इस मामले में ताजा स्थिति जानने के लिए आरटीआई आवेदन किया। इसके जवाब में विभाग के सहायक अभियंता ने केवल बोर्ड की फोटो भेजकर वास्तविक स्थिति से परदा डाल दिया और आवश्यक विवरण प्रदान नहीं किया। बताया कि हमने जमीन ले ली है। हमारे कब्जे में है। मगर खुली आंखों से यह सब झूठ मौके पर साफ दिख रहा है।
इस मामले में विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही और होटल द्वारा सरकारी जमीन का उपयोग करने के तरीके पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। विभागीय आदेशों की अवहेलना से यह मामला गंभीर रूप ले चुका है और अब यह सवाल उठता है कि जिम्मेदार अधिकारियों और होटल के खिलाफ कार्रवाई कब और कैसे होगी। एक किसान की जमीन को होटल के लिए इस तरह से दे देने का यह मामला पूरे राजस्थान में चर्चा का विषय बन चुका है। होटल वालों की एप्रोच और उनके राजनीतिक रसूखात के आगे अफसर मौन हैं व खुले आम भ्रष्टाचार को खुद होने दे रहे हैं। उदयपुर के जन प्रतिनधियों के संज्ञान में होने के बाद भी वे उपरी आदेश व दबाव के कारण चुप बैठे हैं।
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