
24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। उदयपुर के जिला प्रशासन की सबसे बड़ी खासियत ही यही है कि वह तब तक नींद से नहीं जागता जब तक कोई हादसा नहीं हो जाता। यहां के नेताओं की भी यही खासियत है कि वे अपने मतलब के लिए तो तुरंत सिस्टम को झकझोर देते हैं लेकिन पब्लिक इंटरेस्ट की बातें आते ही पल्ला झाड़ देते हैं।
जयपुर के एसएमएस अस्पताल में भीषण आग हादसे के बाद पूरे राजस्थान में खलबली मची हुई है। सबको डर सता रहा है कि कहीं उनके यहां यह हादसा हुआ तो क्या जवाब देंगे?? किरकिरी से बचने के लिए आज उदयपुर जिला प्रशासन अचानक सक्रिय हुआ है। जबकि 24 न्यूज अपडेट अपनी खबरों के माध्यम से कई कई बार जिला प्रशासन को इस बारे में चेतावनी दे चुका है कि शहर के कई अस्पतालों के पास भीषण आग से लड़ने की कोई क्षमता, दक्षता और तैयारियां नहीं हैं। इसके लिए प्रशासन की ओर से भी कोई निर्देश नहीं है। यहां तक कि सीएमएचओ को कई बार आरटीआई के माध्यम से इस संबंध में सवाल पूछे गए लेकिन बहानेबाजी करते हुए सही जवाब ही नहीं दिए गए या पल्ला झाड़ दिया।
आपको बता दें कि आज जिला कलेक्टर नमित मेहता ने सभी चिकित्सा संस्थानों की सुरक्षा और आपातकालीन तैयारियों की गहन समीक्षा के लिए आपात बैठक बुलाई। बैठक में एडीएम सिटी जितेंद्र ओझा, एसडीएम गिर्वा अवुला साइकृष्ण, आरएनटी प्राचार्य डॉ विपिन माथुर, एमबी अस्पताल अधीक्षक डॉ आर एल सुमन, एडिशनल सीएमएचओ डॉ रागिनी अग्रवाल, मुख्य अग्निशमन अधिकारी बाबूलाल समेत कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे।
कलेक्टर ने अस्पताल भवनों की फायर एनओसी, चौड़े गलियारे, सीढ़ियाँ, रैम्प, अग्निशमन लिफ्ट और प्रशिक्षित स्टाफ सहित आपातकालीन निकासी व्यवस्थाओं की तत्काल जांच और मॉक ड्रिल कराने के निर्देश दिए
लेकिन सच इससे बहुत परे है। जमीनी स्तर पर कोई तैयारी नहीं है। केवल एक दूसरे को काम ओढ़ाने और काम ढोलने व टालने की प्रवृत्ति चल रही है। सवाल उठता है कि उदयपुर में यह सक्रियता अब हादसा हो जाने पर ही क्यों? आरटीआई में बार-बार पूछे जाने के बावजूद प्रशासन ने अब तक जानकारी नहीं दी कि कितने अस्पतालों में रैम्प हैं और आग या अन्य आपात स्थितियों में मरीजों को सुरक्षित बाहर निकालने की तैयारी कितनी है।
कई अस्पताल मानक पर खरे नहीं
पत्रकार जयवंत भैरविया की इन्वेस्टिगेशन में यह सामने आया है कि उदयपुर के कई बहुमंजिला अस्पताल राष्ट्रीय भवन संहिता-2016 (भाग 4ः अग्नि एवं जीवन सुरक्षा) के मानकों पर खरे नहीं उतरते। इसमें चौड़े गलियारे, रैम्प, फायर स्टेयर्स, स्ट्रेचर और निकासी कुर्सियों जैसे उपकरण अनिवार्य हैं। बातचीत में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि रैम्प और वैकल्पिक उपकरणों की कमी आईसीयू, ऑपरेशन थियेटर और गंभीर रोगियों के जीवन के लिए गंभीर खतरा है। नगर निगम, उदयपुर विकास प्राधिकरण और अग्निशमन विभाग द्वारा अनुपालन की जांच पर भी सवाल उठ रहे हैं। स्वास्थ्य और सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि उदयपुर में पहले जागरूकता और नियमित निरीक्षण की कमी प्रशासन की गंभीर लापरवाही को उजागर करती है। अब सवाल यह है कि क्या यह पहल सिर्फ जयपुर हादसे के बाद सतही रूप से उठी है, या शहर के मरीज और वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थायी और कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
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