
24 News Update उदयपुर। सावन की फुहारों के बीच शिल्पग्राम का दर्पण सभागार इस बार रागों और तालों की रसधारा से सराबोर होगा। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर द्वारा 26 और 27 जुलाई को आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम ‘मल्हार’ में देश के प्रतिष्ठित कलाकार अपनी शास्त्रीय प्रस्तुतियों से समां बांधेंगे। केंद्र के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि 26 जुलाई को शाम 7 बजे कार्यक्रम की शुरुआत मुजफ्फर रहमान की ‘ताल वाद्य कचहरी’ से होगी, जिसके माध्यम से दर्शकों को भारतीय ताल वादन की विविधता और गहराई का अनुभव होगा। इसके बाद प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना माया कुलश्रेष्ठ अपनी विशिष्ट प्रस्तुति ‘कृष्ण-द सैवियर’ के जरिए श्रीकृष्ण के विविध रूपों को मंच पर जीवंत करेंगी।
दूसरे दिन, 27 जुलाई को पंडित सुभाष घोष ‘स्वर रागिनी’ नामक वाद्य यंत्र की प्रस्तुति देंगे। यह अनूठा वाद्य यंत्र स्वयं घोष द्वारा विकसित किया गया है, जिसमें वीणा, सरोद और गिटार की स्वरलहरियां समाहित हैं। कार्यक्रम का समापन वाणी माधव और उनके दल द्वारा प्रस्तुत ओडिसी नृत्य से होगा, जिसमें ओडिसा की समृद्ध नृत्य परंपरा की झलक मिलेगी। दर्पण सभागार में आयोजित यह दोनों सांस्कृतिक संध्याएं शाम 7 बजे शुरू होंगी और इनका प्रवेश निशुल्क रहेगा।
ताल वाद्य कचहरी: लय और परंपरा की संगति
‘ताल वाद्य कचहरी’ की प्रस्तुति में अवनाद वाद्य यंत्रों—जैसे तबला, पखावज, ढोलक और नगाड़ा—का प्रयोग होता है। यह प्रस्तुति भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपराओं पर आधारित होती है, जिसमें एक विशेष ताल में पेशकार, कायदे, रेले और गतें बजाई जाती हैं। इसके अंत में कुछ विशिष्ट धुनों पर प्राचीन लग्गियां और लड़ियां सुनने वालों को थिरकने पर विवश कर देती हैं। मुजफ्फर रहमान के निर्देशन में तैयार यह कचहरी देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर प्रस्तुत की जा चुकी है और इसकी व्यापक सराहना हुई है।
कृष्ण-द सैवियर: कथक की भक्ति और भावना
माया कुलश्रेष्ठ की प्रस्तुति ‘कृष्ण-द सैवियर’ कथक की भव्यता को आध्यात्मिक भावों से जोड़ती है। यह प्रस्तुति केवल नृत्य न होकर एक भावनात्मक यात्रा है, जिसमें प्रेम, समर्पण, शक्ति और भक्ति का समन्वय है।
‘कृष्ण-द सैवियर’ नृत्य-नाट्य राधा, रुक्मिणी, द्रौपदी और मीरा के श्रीकृष्ण के साथ आध्यात्मिक संबंधों को मंच पर जीवंत करता है। इसमें दर्शाया गया है कि किस प्रकार इन स्त्रियों की आत्मा श्रीकृष्ण के प्रकाश में अपनी पूर्णता प्राप्त करती है। कथक की लय, भाव और अभिव्यक्ति के माध्यम से यह प्रस्तुति दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ती है।
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