24 News Update अजमेर। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आज से अजमेर में स्थित सेवन वंडर्स पार्क को तोड़ने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। यह पार्क स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत 11.64 करोड़ रुपए की लागत से बनाया गया था, जिसमें दुनिया के सात अजूबों की प्रतिकृतियां स्थापित की गई थीं। इनमें ताजमहल, एफिल टॉवर, मिस्र के पिरामिड, पीसा की झुकी मीनार, रोम का कोलोसियम, स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी और क्राइस्ट दी रिडीमर शामिल थे। इस कार्रवाई से खलबली मची हुई है और यह साफ हो गया है कि स्मार्ट सिटी के कामों में अफसरों ने जमकर मनमानियां की हैं। पर्यावरण के हितों का ध्यान नहीं रखा है।
कहीं उदयपुर की आयड़ में किए गए 75 करोड़ से अधिक के विकास के कामों का भी एक दिन ऐसा ही हश्र ना हो जाए। हाल ही में आई बाढ़ के बाद से यह मांग जोर पकड़ रही है कि भ्रष्टाचार की जांच करवाई जाए, दोषी अफसरों को चार्जशीट दी जाए। माल कमाने वाली मोटी मछलियों का पता लगाकर उनको सजा दी जाए क्योंकि नदी का मूल स्वरूप ही नहीं बचेगा तो एक दिन शहर भी नहीं बचेगा। नदी से होने वाले महाविनाश का शिकार आने वाले समय में उन लोगो ंको होना पड़ेगा जो इसक लिए कुसूरवार नहीं हैं। नदी पेटे में करोड़ों बहा देना उसमें अवरोध पैदा करना। मनमाने काम करवाना। भराव डलवा कर नदी प्रवाह को रोकना आदि काम एक न एक दिन आपराधिक ही ठहराए जाएंगे। ये सभी काम भी स्मार्ट सिटी के तहत ही हुए थे।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने पहले स्पष्ट आदेश दिए थे कि यह अवैध निर्माण अतिक्रमण की श्रेणी में आता है और इसे हटाना अनिवार्य है। इसके बावजूद प्रशासन द्वारा केवल एक प्रतिमा को हटाकर बाकी संरचनाएं बरकरार रखी गईं। अब जिला प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश कर बताया था कि यह संरचना 17 सितंबर तक पूरी तरह से हटाई जाएगी।
एडीए द्वारा टेंडर प्रक्रिया के तहत तोड़ने का प्रयास हुआ था, लेकिन पहले टेंडर में केवल एक ही कंपनी ने बोली लगाई थी, जिसके कारण उसे निरस्त करना पड़ा। नया टेंडर फिलहाल प्रक्रिया में है। प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था के तहत मीडिया को अंदर प्रवेश से रोका और भारी पुलिस बल तैनात किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान नगर प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने कहा थाः “आपकी कार्यप्रणाली से ऐसा नहीं लगता कि आप अजमेर को स्मार्ट बनाना चाहते हो। जल निकायों और आर्द्रभूमि की सुरक्षा के बिना शहर को स्मार्ट कैसे बनाया जा सकता है?“
सेवन वंडर्स का पूरा मामला विस्तार से
सेवन वंडर्स अजमेर में स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत विकसित किया गया एक सार्वजनिक पार्क था। इसमें दुनिया के सात अजूबों की प्रतिकृतियाँ थीं कृ ताजमहल (भारत), एफिल टॉवर (पेरिस, फ्रांस), मिस्र के पिरामिड, पीसा की झुकी मीनार, रोम का कोलोसियम, स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (न्यूयॉर्क, अमेरिका) और क्राइस्ट दी रिडीमर (रियो डी जेनेरियो, ब्राजील)। परियोजना का उद्देश्य शहर को पर्यटन और आधुनिकता के केंद्र के रूप में विकसित करना था। निर्माण पर कुल खर्च हुआ था लगभग ₹11.64 करोड़ रुपए।
पर्यावरण संरक्षण संगठनों और स्थानीय नागरिकों ने सेवन वंडर्स के निर्माण को जल निकाय और आर्द्रभूमि पर अवैध अतिक्रमण करार दिया। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मार्च 2023 में इसे अवैध मानते हुए हटाने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने पहले स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि इसे पूरी तरह से हटाया जाए।
प्रशासन ने विलंब के चलते केवल एक प्रतिमा को हटाया, जबकि बाकी संरचनाएं बरकरार रखी गईं। अजमेर विकास प्राधिकरण (।क्।) ने तोड़ने के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की, लेकिन पहले टेंडर में केवल एक ही कंपनी ने बोली लगाई थी। इसके कारण उसे निरस्त करना पड़ा। नया टेंडर फिलहाल प्रक्रिया में था। प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा पेश किया कि पूरी संरचना 17 सितंबर तक हटाई जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा था कि जल निकायों और आर्द्रभूमि की सुरक्षा के बिना स्मार्ट सिटी का निर्माण संभव नहीं। सख्त निर्देश दिए गए कि अवैध निर्माण तुरंत हटाया जाए और साथ ही दो नई आर्द्रभूमियों का विकास किया जाए।
आज प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए सेवन वंडर्स को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सुरक्षा व्यवस्था के तहत मीडिया को अंदर जाने से रोका गया और भारी पुलिस बल तैनात किया गया। सभी प्रतिकृतियों को हटाने की योजना के तहत कार्रवाई जारी है।
परियोजना पर लगभग ₹11.64 करोड़ खर्च हो चुका था। पर्यावरण नियमों का उल्लंघन कर इसे बनवाने और फिर हटाने पर सार्वजनिक धन की बर्बादी की आलोचना हो रही है। साथ ही राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप भी उठे हैं।
सबके लिए चेतावनी, संभल जाओ
यह पूरा मामला एक गंभीर चेतावनी के रूप में सामने आया है। स्मार्ट सिटी परियोजनाएं केवल आधुनिक दिखावे तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि न्यायपालिका के आदेशों और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी होनी चाहिए। विकास तभी सार्थक और स्थायी होगा, जब नियोजन में पारदर्शिता हो, पर्यावरण नियमों का पालन हो और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा प्राथमिकता हो। प्रशासन की जवाबदेही और समय पर सही कार्रवाई का अभाव न केवल निवेश की बर्बादी बल्कि पर्यावरणीय नुकसान का भी कारण बनता है। यह घटना भविष्य के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स के लिए एक स्पष्ट सबक बन गई है। आने वाले समय में ऐसी गलतियों से बचने के लिए कड़े नियम और जवाबदेही सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
इन आईएएस के जिम्मे रहा स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट, सेवन वंडर्स के निर्माण व उसकी जिम्मेदारी तय नहीं
अजमेर में स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत विकसित सेवन वंडर्स का विवाद अब नए आयाम पर पहुँच गया है। करीब ₹11.64 करोड़ की लागत से बनाई गई यह परियोजना अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर तोड़ी जा रही है। लेकिन यह भी सामने आया है कि इस पूरे विवाद में किस आईएएस अधिकारी की क्या जिम्मेदारी थी, यह स्पष्ट नहीं हो सका है।
सेवन वंडर्स का निर्माण और निगरानी मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) व जिला कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में रही। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के संचालन की जिम्मेदारी कई आईएएस अधिकारियों के पास रही।
इनमें शामिल प्रमुख नाम हैं:
• गौरव गोयल
• आरती डोगरा
• विश्व मोहन शर्मा
• प्रकाश राजपुरोहित
• अंशदीप
• डॉ. भारती दीक्षित
• हिमांशु गुप्ता
• चिन्मयी गोपाल
• कुशाल यादव
• देवेन्द्र कुमार
• सुशील कुमार
• नमित मेहता
• निशांत जैन
• गौरव अग्रवाल
• रेणु जयपाल
• अक्षय गोदारा
• गिरधर
• ललित गोयल (कार्यवाहक)
• श्रीनिधि बीटी
इन अधिकारियों की जिम्मेदारी में स्मार्ट सिटी मिशन का सुचारू संचालन, टेंडर प्रक्रिया, निर्माण कार्य की निगरानी और पर्यावरणीय नियमों का पालन शामिल था।
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