24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। आरएनटी कॉलेज प्रशासन की ढीठता, आपराधिक लापरवाही और मेडिकल से जुड़े प्रशासन की लगातार अनदेखी का नतीजा है कि आज एमबी हॉस्पिटल में रेजिडेंट हड़ताल 11वें दिन में प्रवेश कर गई। जयपुर में बैठे बड़े बड़े अफसर अपने राजनीतिक आकाओं के आदेश का इंतजार कर रहे हैं कि कब हरी झंडी मिले और समझौता वार्ता के उन बिंदुओं पर सहमति बने जिनसे शायद वे खुद इत्तेफाक रखते हैं। वे खुद साफ्ट कॉनर्र रखते हैं लेकिन नौकरी की निष्ठुरता और खास तरह के इको सिस्टम में बने रहने के लिए वे समझौतों पर समझौते किए जा रहे हैं। ढीठ और मर चुका पॉलिटिकल सिस्टम भी लगातार बेचैन हो रहा हैं उसको डर है कि हड़ताल लंबी खिंच गई तो मांगें माननी पड़ जाएंगी। उसकी नाक कट जाएगी। झूठी शान में खलल पड़ जाएगा। उन खास लोगों पर सख्त कार्रवाई करनी पड़ जाएंगी जो उनकी गुडबुक में तो हैं ही, बल्कि एक खास तरह के आर्थिक तंत्र का हिस्सा भी है जो सीधे-सीधे इलेक्शन के चंदे और पर्सनल केपिटल गेन जैसे मुद्दों से जुड़ता है। उनकी कोशिश है कि ये गठजोड़ किसी भी हाल में नहीं टूटे, क्यांकि टूटा तो कई सारी बातें सामने आ जाएंगी जिसमें सब एक दूसरे के राजदार-साझेदार हैं। इनका जीरो पनिशमेंट का फुल प्रूफ सिस्टम ही अधिकारियों को यह हौसला दे रहा है कि कितने भी दिन आंदोलन कर लो, हमें हमारे राजनीतिक आकाओं की इम्युनिटी है। बाल भी बांका नहीं होगा। जब प्लाटर गिरने पर कुछ नहीं हुअ, करंट पर कुछ नहीं हुआ तो फिर कोई क्या बिगाड़ लेगा। हड़ताल फैलेगी तो दूसरे जगह के इको सिस्टम वाले हमारे जैसे ही लोग उसको डील कर लेंगे।

ऐेसे दौर में रेजिडेंट आखिर करें तो क्या करें? अच्छा होता कि हड़ताल करने वाले सभी शार्प ब्रेन ने नारेबाजी और पॉलिटिक्स की पढ़ाई भी कर ली होती तो आज वो दोहरा मानसिक तनाव नहीं झलना पड़ता। जिन हाथों को देश के स्वास्थ्य की बागडोर की कलम चलानी थी, वो नारे लिखने, बार बार निवेदन पत्र लिखने और अपनी पीड़ा को सोशल मीडिया पर फॉरवर्ड कर मदद मांगने को मजबूर हो रहे है। प्रशासन शॉक पर शॉक देकर अग्नि परीक्षा लेने पर तुला है।
इधर, हॉस्टल में करंट के सुबूत देने पर धमकाना, प्लास्टर गिर जाने पर भी मोटी चमड़ी वालों का टस से मस नहीं होना, चेहरों पर शिकन तक नहीं आना, हड़ताल पर गए शॉर्प ब्रेन को डिस्टर्ब करने के लिए उनके घर चिट्ठियां लिखना, तुरत फुरत में एग्जाम रख लेना और बेकचैनल से जबर्दस्त दबाव बनाना साफ दिखा रहा है कि दाल में काला नहीं, पूरी दाल ही गहरी काली है। करंटोलॉजिस्ट का इको सिस्टमम ना खुद बदलने को तैयार है ना ही कोई नई पहल करने को।
ऐसे में आज मरीजों और तीमारदारों को जबर्दस्त परेशानी को देखते हुए रेजिडेंट्स ने प्रिसिंपल ऑफिस के बाहर ओपीडी लगाई। ओपीडी में दिखाने बड़ी संख्या में मरीज पहुंचे और उन्हें हाथोंहाथ राहत भी मिली। पीडियट्रिक, गायनोकॉलाजी, मेडिसन, सर्जरी, ऑर्थोपेडिक, ईएनटी सहित अन्य सभी स्ट्रीम की ओपीडी लगाई गई। इससे हपले ओपीडी एमबी हॉस्पिटल के आउटडोर के पेरेलल लगाई गई थी लेकिन बारिश हो गई और प्रिंसिपल ऑफिस के सामने शिफ्ट किया गया। रेजिडेंट यूनियन के सेक्रेटरी डॉ हितेष शर्मा ने कहा कि पैरेलल ओपीडी से मरीजो को राहत दी जा रही है। कॉलेज प्रशासन आंखे मूंदें बैठा है, कानों पर पर्दा लगा लिया है। लगातार करंट से हॉस्टल में भय का वातावरण है। कुछ रेजिडेंट दोस्तों और परिजनों के यहां रहने चले गए हैं। बाहर से कैम्पर मंगाकर पानी पीने पी रहे है क्योंकि वाटर कूलर में करंट आ रहा है। सेवारत चिकित्सक संघ का आज भी हड़ताल का ेसमर्थन है। इससे गांवों व कस्बों में मरीज परेशान हुए। इधर हड़ताल का विस्तार अजमेर, कोटा, जयपुर, जोधपुर, सहित पूरे राजस्थान में हो गया है। इससे पहले कल विरोध प्रदर्शन किया गया व कैंडल मार्च निकाला गया। संदेश साफ था-ना रूकेंगे, ना झुकेंगे। हमारी न्यायपूर्ण मांगों पर सहमति बनाइये, हमसे वार्ता कीजिए, पूरे मामले को समझिये। हम ना तो किसी के खिलाफ हैं ना पक्ष में। हमें सिर्फ न्याय चाहिए।
इस हड़ताल का एक बहुत बड़ा पक्ष मरीजों को हो रही परेशानी भी है। लगता है कि बडी बड़ी बातें करने वालों, धार्मिक मुद्दों पर सीना तान कर शहर बंद करवाने वाले, जब-तब रैलियों से शहर को जाम करने वाले नेताओं व जन प्रतिनिधियों को रत्तीभर भी मरीजों की परवाह नहीं है। उनको कोई मतलब नहीं है कि वे जिएं या मरें, बिना इलाज के तड़पते रहें। ऑपरेशन टल जाएं या फिर प्राइवेट अस्पतालों में जेबें खाली हो जाएं। वे तो बस हॉथ जोड़कर बॉस मैनेजमेंट में व्यस्त हैं। कई बार तो अचरज होता है कि यहां मरीज तड़प रहे हैं वहां वे सम्मान समारोह में, राजनीतिक कार्यक्रमों में व्यस्त हैं, हंसी ठहाके कर रहे हैं, जैसे कुछ हो ही नहीं रहा हो। पता नहीं कैसे गवाही देता होगा उनका अपना मन। विपक्ष की तो बात ही करना बेवकूफी है। वो तो कहीं है ही नहीं। मरीजों की परेशानी के मुद्दे पर साथ न दें तो कोई बात नहीं, राजनीति कही कर लें, इतना इकबाल ही नहीं रह गया है। बहरहाल मुद्दे की बात फिर यही है कि इस हड़ताल को समाप्त करने के पुरजोर प्रयास उन लोगों के स्तर पर होने चाहिए जिनके हाथों में निर्णायक कमान है।
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