24 न्यूज अपडेट, स्टेट डेस्क। राजस्थान की अधीनस्थ अदालतों में जारी न्यायिक कर्मचारियों की हड़ताल पर राजस्थान हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए इसे पूरी तरह अवैध करार दिया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सभी कर्मचारी शुक्रवार सुबह 10 बजे तक अपने कार्यस्थलों पर लौटें, अन्यथा नियमानुसार कठोर कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी परिस्थिति में न्यायिक व्यवस्था को बाधित करने वाली हड़ताल बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
जस्टिस अशोक कुमार जैन की एकल पीठ ने गुरुवार को सुनवाई करते हुए कहा कि जब अधिवक्ताओं को हड़ताल करने का अधिकार नहीं है, तो पेड न्यायिक कर्मचारी हड़ताल पर कैसे जा सकते हैं। कोर्ट ने इस संदर्भ में सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों को आदेश जारी कर दिए हैं कि कर्मचारी अगर निर्धारित समय तक काम पर नहीं लौटते हैं, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
वैकल्पिक व्यवस्था के निर्देश: होमगार्ड और नए वकीलों की मदद से अदालतें चलेंगी
हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि अदालतों में सामान्य कामकाज बाधित न हो, इसके लिए वैकल्पिक इंतजाम किए जाएं। जिला न्यायाधीशों और संबंधित जिला कलेक्टरों को निर्देशित किया गया है कि आवश्यकतानुसार होमगार्ड की सेवाएं ली जाएं और बार एसोसिएशनों के सहयोग से नवप्रवेशी वकीलों को कोर्ट की कार्यवाही में लगाया जाए।
28 जुलाई को अगली सुनवाई, RESMA लगाने की चेतावनी
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय की है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कर्मचारी तब तक भी कार्य पर नहीं लौटते हैं, तो राज्य में आवश्यक सेवा अनुरक्षण अधिनियम (RESMA) लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों की मांगों पर विचार हेतु हाईकोर्ट ने पहले ही सरकार को प्रस्ताव भेज दिया है और यह पॉलिसी मामला है जिसमें न्यायालय सीधा हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
7 दिन से ठप पड़ी है न्यायिक प्रक्रिया, कैडर पुनर्गठन को लेकर प्रदर्शन
गौरतलब है कि राज्य के न्यायिक कर्मचारी 18 जुलाई से सामूहिक अवकाश पर हैं। राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ के नेतृत्व में चल रही इस हड़ताल का प्रमुख मुद्दा न्यायिक सेवाओं में कैडर पुनर्गठन है। संघ के प्रदेशाध्यक्ष सुरेन्द्र नारायण जोशी के अनुसार यह प्रस्ताव मई 2023 में हाईकोर्ट की फुल बेंच से पारित होकर राज्य सरकार को भेजा गया था, लेकिन दो वर्ष बीत जाने के बावजूद इस पर अमल नहीं हुआ। कर्मचारियों का कहना है कि पुनर्गठन के अभाव में न सिर्फ उनके प्रमोशन की संभावनाएं कम हो गई हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी वे नुकसान में हैं। अन्य विभागों में इस तरह के पुनर्गठन शीघ्रता से लागू हो चुके हैं, लेकिन न्यायिक कर्मचारियों के साथ सरकार का रवैया भेदभावपूर्ण रहा है। उन्होंने यह भी दोहराया कि जब तक उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया जाता, तब तक वे काम पर नहीं लौटेंगे।
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