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उदयपुर में श्रम कोड के विरोध में प्रदर्शन, संगठनों ने राष्ट्रपति के नाम जिला कलेक्टर को सौंपा 12 सूत्रीय ज्ञापन

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24 News Update उदयपुर. देशभर में केंद्र सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों और चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड) के विरोध में चल रहे राष्ट्रव्यापी आंदोलन के तहत आज उदयपुर में विभिन्न श्रमिक संगठनों ने संयुक्त रूप से प्रदर्शन करते हुए ज़िला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में श्रमिकों की समस्याओं को तत्काल सुलझाने और श्रम कानूनों को पुराने स्वरूप में लागू रखने की मांग की गई है।

प्रमुख संगठनों में शामिल रहे –
इंटक, एटक, सीटू, राजस्थान सीटू, एक्टू, एचएमएस समेत कई श्रमिक संगठनों के पदाधिकारी और सदस्य बड़ी संख्या में प्रदर्शन में शामिल हुए। इंटक के प्रदेशाध्यक्ष जगदीश राज श्रीमाली, सीटू से हीरालाल सालवी, एक्टू से शंकरलाल चौधरी, एटक से सुभाष श्रीमाली, बैंक कर्मचारी यूनियन से विनोद कपूर, बीमा कर्मचारी यूनियन से मोहन सिंयाल, किसान यूनियन से विष्णु पटेल, आदिवासी सभा से घनश्याम तावड और महिला कामगार यूनियन की प्रतिनिधि सहित कई संगठनों ने संयुक्त रूप से ज्ञापन सौंपा।

प्रदर्शन के मुख्य बिंदु और मांगें –
ज्ञापन में श्रमिक संगठनों ने स्पष्ट किया कि सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों ने देश के कामगार वर्ग को असुरक्षित और हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है। सरकार की ओर से पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट घरानों को बढ़ावा दिया जा रहा है जबकि ट्रेड यूनियन अधिकारों को सीमित किया जा रहा है। श्रमिक संगठनों ने निम्नलिखित 12 प्रमुख मांगें रखीं:
न्यूनतम वेतन ₹26,000 प्रतिमाह तय किया जाए।
मूल्य सूचकांक वृद्धि के अनुसार हर पांच वर्ष में वेतन संशोधन अनिवार्य किया जाए।
आठवां वेतन आयोग शीघ्र गठित किया जाए।
औद्योगिक श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा और पेंशन लाभ मिले।
रद्द किए गए तीन कृषि कानूनों को दोबारा लागू करने की कोशिशों पर रोक लगे।
C2+50 के आधार पर वैधानिक MSP और फसलों की सरकारी खरीद सुनिश्चित हो।
रेलवे, बैंक, बीमा, पोर्ट आदि का निजीकरण रोका जाए।
स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली जैसी सेवाएं सरकारी क्षेत्र में ही रहें।
ठेका प्रथा समाप्त की जाए और 8 घंटे से अधिक ड्यूटी नहीं ली जाए।
न्यूनतम पेंशन ₹10,000 प्रति माह निर्धारित की जाए।
आंगनवाड़ी, आशा, मिड डे मील, आशा किरण वर्कर्स को श्रमिक का दर्जा दिया जाए।
मनरेगा में 600 रुपये प्रतिदिन और 200 दिन रोजगार की गारंटी दी जाए।

सरकार पर लगाया शोषण का आरोप
ज्ञापन में कहा गया कि सरकार ने श्रमिक हितों को दरकिनार कर कॉर्पोरेट लाभ के लिए श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं। 300 से कम कामगार वाले कारखानों को बिना कारण बंद करने के प्रावधान जैसे कानून मजदूरों को असुरक्षित बना रहे हैं। संगठनों ने चेताया कि यदि मांगों पर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई तो देशभर के श्रमिक उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होंगे और इसकी सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी। प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा और अंत में प्रतिनिधिमंडल ने ज़िला कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। श्रमिक संगठनों ने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार श्रमिकों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए आवश्यक निर्णय लेगी।

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