24 News Update उदयपुर। मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कला महाविद्यालय में प्लास्टर गिरने की घटनाएं पिछले तीन महीनों से लगातार हो रही हैं, लेकिन जिम्मेदार अफसर एक-दूसरे को पत्र भेजने की रस्म निभा रहे हैं। तत्काल खतरनाक स्थानों को सील करने के बजाय महीनों बाद आदेश जारी किए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय के भीतर यह सवाल गूंज रहा है कि क्या कार्रवाई तभी होगी जब प्लास्टर कुलपति या इंजीनियर के सिर पर गिरे?
तीन विभागों में गिर चुका है प्लास्टर
सबसे पहले बाथरूम ब्लॉक में करीब ढाई महीने पहले प्लास्टर गिरा। इसके बाद मनोविज्ञान विभाग में एक माह पहले और फिर हिंदी विभाग में वाटर हट के ऊपर से प्लास्टर गिरा। इन घटनाओं ने साफ कर दिया कि भवन की हालत जर्जर हो चुकी है, लेकिन जिम्मेदार विभाग समय पर मरम्मत कराने की बजाय “चिट्ठी-चिट्ठी” खेल में उलझे हैं।
अफसरों को डर, पर कार्रवाई नहीं
सूत्रों के मुताबिक, झालावाड़ हादसे के बाद अफसरों में डर है कि अगर समय रहते मरम्मत नहीं हुई और कोई घटना हो गई, तो जिम्मेदारी उनके सिर आ जाएगी। लेकिन यही डर भी उन्हें तत्काल कार्रवाई के लिए प्रेरित नहीं कर पा रहा है। नतीजा—मरम्मत का काम अब तक शुरू नहीं हुआ।
अधिशासी अभियंता का पत्र
अधिशासी अभियंता आर.के. मूंदड़ा ने अधिष्ठाता, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय को भेजे पत्र में लिखा है कि अधिष्ठाता कार्यालय के समीप शौचालय ब्लॉक, भूगोल विभाग के समीप शौचालय, भूगोल, मनोविज्ञान और हिंदी विभाग के कुछ कक्षों का प्लास्टर कमजोर और असुरक्षित है। इन स्थानों को अस्थायी रूप से असुरक्षित घोषित किया गया है और मरम्मत होने तक उपयोग में नहीं लेने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही तुरंत खाली कराने के निर्देश भी दिए गए हैं। पत्र में यह भी उल्लेख है कि अधिष्ठाता को चाहिए कि इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही अपने स्तर से कराएं, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
नूराकुश्ती में फंसा मामला
जानकारों का कहना है कि विभागों के बीच “अपनी खाल बचाने” की नूराकुश्ती चल रही है—डीन विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिख रहे हैं, प्रशासन अभियंता को और अभियंता फिर डीन को लिख रहा है। इस चक्रव्यूह में समय गुजर रहा है और खतरा जस का तस बना हुआ है।
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