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हिमाचल राजभवन से हटाया गया पाकिस्तान का झंडा: शिमला समझौते की ऐतिहासिक विरासत पर नई दस्तक

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24 न्यूज अपडेट, शिमला।। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए ऐतिहासिक शिमला समझौते के साक्षी रहे हिमाचल प्रदेश राजभवन से शनिवार को पाकिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज हटा दिया गया। यह वही झंडा था जो 53 वर्ष पूर्व 2 जुलाई 1972 को हुए समझौते के समय बार्नेस कोर्ट भवन (वर्तमान राजभवन) में प्रदर्शित किया गया था। यह निर्णय ऐसे समय लिया गया है जब हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने भारत को खुलेआम धमकी दी कि यदि प्रतिक्रिया दी गई तो वह शिमला समझौते को रद्द कर देगा। इस बयान ने भारत में व्यापक आक्रोश उत्पन्न कर दिया और देशभर में जनभावनाओं का उबाल देखा गया। इसी पृष्ठभूमि में ऐतिहासिक प्रतीकों की पुनर्समीक्षा करते हुए हिमाचल राजभवन प्रशासन ने यह कदम उठाया।

राजभवन से झंडे को हटाते समय अधिकारियों ने इसे सम्मानपूर्वक संग्रहण के लिए सुरक्षित रखा, ताकि इस ऐतिहासिक दस्तावेज़ी धरोहर को भविष्य में शोध या प्रदर्शनी के लिए उपलब्ध रखा जा सके।


1972 का शिमला समझौता: इतिहास की वह निर्णायक घड़ी

भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध, जिसमें पाकिस्तान की करारी हार हुई और एक नया राष्ट्र — बांग्लादेश — अस्तित्व में आया, उसी का परिणाम था शिमला समझौता। युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच स्थायी शांति स्थापित करने और आपसी संबंधों को पुनः पटरी पर लाने हेतु यह ऐतिहासिक संधि हुई।

समझौते की मुख्य शर्तें:

यह समझौता भारत की नैतिक जीत के साथ-साथ पाकिस्तान को पुनर्वास का अवसर देने वाला एक दूरगामी कदम था। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने अपनी शक्ति का प्रयोग कर समझौते की शर्तों को अपने पक्ष में साधा था, फिर भी शांति स्थापना के वैश्विक आदर्शों को ध्यान में रखते हुए दयालुता दिखाई थी।

समझौते पर हस्ताक्षर के समय बार्नेस कोर्ट के भवन में दोनों देशों के झंडे रखे गए थे — यह उस क्षण का प्रतीक था जब दोनों राष्ट्रों ने युद्ध की राख से भविष्य की शांति का संकल्प लिया था।


वर्तमान परिप्रेक्ष्य में क्यों महत्वपूर्ण हो गया झंडा हटाना?

हाल की घटनाओं ने इस प्रतीकात्मकता को कटघरे में खड़ा कर दिया।
जब पाकिस्तान की ओर से शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी दी गई, तो भारत में यह बहस तेज हो गई कि जब एक पक्ष स्वयं शांति की बुनियाद को नकार रहा है, तब उन प्रतीकों को संरक्षित रखना कितना उचित है।

इस संदर्भ में हिमाचल राजभवन द्वारा पाकिस्तान के झंडे को हटाना केवल एक प्रतीकात्मक कार्रवाई नहीं, बल्कि एक मौन संदेश भी है — भारत अपनी ऐतिहासिक धरोहर का सम्मान करता है, परंतु राष्ट्रीय अस्मिता और वर्तमान वास्तविकताओं से समझौता नहीं करेगा।

एक वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. रमेश ठाकुर ने कहा,

“यह घटना हमें याद दिलाती है कि इतिहास स्थिर नहीं होता। वह समय-समय पर नए संदर्भों में पुनः परिभाषित होता है।”


समाप्ति नहीं, एक नई शुरुआत का संकेत

भले ही पाकिस्तान का झंडा उस ऐतिहासिक टेबल से हटा दिया गया हो, पर शिमला समझौते की आत्मा — शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, द्विपक्षीय वार्ता का आदर्श और युद्ध टालने की प्रतिबद्धता — आज भी भारत के सिद्धांतों में जीवित है।

यह कदम एक सशक्त संदेश है कि भारत इतिहास का सम्मान करते हुए, अपने वर्तमान और भविष्य की रक्षा के लिए किसी भी क्षण निर्णायक कार्यवाही करने में संकोच नहीं करेगा। हिमाचल की शांत वादियों में गूंजते इस छोटे-से कदम ने एक बार फिर इतिहास की गहरी घाटियों में नई गूंज पैदा कर दी है — एक ऐसा संदेश, जो आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रसम्मान और ऐतिहासिक विवेक के महत्व का बोध कराता रहेगा।

📍 3 दिसंबर 1971
भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में मानवाधिकार उल्लंघन के खिलाफ भारत ने हस्तक्षेप किया।

📍 16 दिसंबर 1971
पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण। 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक भारत की कैद में आए। बांग्लादेश स्वतंत्र राष्ट्र बना।

📍 28 जून – 2 जुलाई 1972
शिमला में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता आयोजित। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ।
➡️ द्विपक्षीय विवाद निपटाने की सहमति।
➡️ युद्धबंदी सैनिकों की रिहाई।
➡️ नियंत्रण रेखा (LoC) का निर्धारण।

📍 1972 से
हिमाचल प्रदेश के बार्नेस कोर्ट (वर्तमान राजभवन) में शिमला समझौते की ऐतिहासिक टेबल पर भारत और पाकिस्तान दोनों के झंडे प्रदर्शित।

📍 20 अप्रैल 2025
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला। पाकिस्तान की ओर से शिमला समझौता रद्द करने की धमकी। भारत में आक्रोश।

📍 25 अप्रैल 2025
हिमाचल राजभवन से पाकिस्तान का झंडा हटाया गया।
➡️ राष्ट्रीय अस्मिता के सम्मान में निर्णय।
➡️ शिमला समझौते के मूल आदर्शों का पुनर्पाठ।

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