24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। उदयपुर का पेसिफिक मेडिकल कॉलेज, भीलों का बेदला रैगिंग का अड्डा बन गया है। यहां पर एक छात्र से सीनियर्स ने रैगिंग की व उसे बुरी तरह से घायल कर दिया। इसके बाद भी पेसिफिक विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। जब मामला सांसद मन्नालाल रावत के पास गया तो रावत ने तुरंत मामले में संबंधित पक्षों से जवाब मांगा, एसपी को चिट्ठी लिख कर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। इस पर जिला प्रशासन सक्रिय हुआ व पांच छात्रों को डिटेन कर लिया गया। इस मामले से यह साफ हो गया है कि पेसिफिक मेडिकल कॉलेज जैसे निजी कॉलेजों में रैंगग के सरकारी मानदंडों की अनुपालना सही तरीके से नहीं की जा रही है। रैंगग एक अभिशाप है व इसके लिए सख्त गाइडलाइन बनी हुई है। अव्वल तो कॉलेज व विश्वविद्यालय स्तरपर ही कार्रवाई हो जानी चाहिए मगर इस मामले में खुद सांसद को दखल देना पड़ा यह चिंताजनक व गंभीर बात है। इस मामले में केवल छात्रों पर ही नहीं कॉलेज प्रशासन को भी जांच के दायरे में लाते हुए कार्रवाई की जानी चाहिए।
बताया गया कि एमबीबीएस के छात्र अतुल कुमार सिंह के साथ सीनियर छात्रों द्वारा की गई रैगिंग और गंभीर मारपीट के मामले में पुलिस ने पांच छात्रों को डिटेन कर लिया है। मामले के तूल पकड़ने व कॉलेज प्रशासन की ओर से तत्काल सख्त कार्रवाई नहीं होने के बाद उदयपुर के सांसद डॉ मन्नालाल रावत ने पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर दोषियों के खिलाफ कठोर और तत्काल कार्रवाई की मांग की है। पीड़ित छात्र ने अपनी शिकायत के साथ रैगिंग के दौरान की गई मारपीट के वीडियो और फोटो साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किए हैं, इस पर सांसद ने कहा कि स्पष्ट है कि उसे शारीरिक चोटें पहुंचाई गई हैं।
पुलिस द्वारा डिटेन किए गए छात्रों में समीर मंसुरी, पुरुषोत्तम सिंह राजपुरोहित, अभय सिंह भदौरिया, प्रखर सिंह परिहार और लोकेश कुमावत शामिल हैं। इन सभी पर रैगिंग के नाम पर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का आरोप है। यह मामला तब सामने आया जब पीड़ित ने संस्थान और पुलिस स्तर पर सुनवाई नहीं होने पर सांसद से संपर्क किया और पूरे घटनाक्रम की जानकारी साक्ष्यों सहित दी। इस मामले में पुलिस पर जो आरोप लगे हैं उनकी भी जांच की जानी चाहिए। आखिर कॉलेज प्रशासन व पुलिस ने कार्रवाई क्यों नहीं की। जबकि शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना के ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई की दरकार होती है। बताया जा रहा है कि पहले मामला आंतरिक रूप से ही ढंकने का प्रयास किया गया। उसके बाद जब पुलिस के संज्ञान में लाया गया तब भी हाई पावर पॉलिटिक्स हो गई। लेकिन जैसे ही सांसद रावत ने दखल दिया तो पूरा परिदृश्य ही बदल दिया। तत्काल कार्रवाई भी हो गई व पांच छात्र डिटेन भी हो गए।
सांसद रावत ने इसे उच्च शिक्षा संस्थानों की गरिमा और छात्रों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताते हुए इस पर तुरंत कठोर कानूनी कार्यवाही की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि देश के सभी शिक्षण संस्थानों में रैगिंग प्रतिबंधित है और इसके बावजूद मेडिकल कॉलेज जैसे अनुशासनात्मक संस्थान में ऐसी घटना बेहद चिंता का विषय है। उन्होंने पुलिस प्रशासन से यह भी कहा कि आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
रैगिंग विरोधी कानूनों के तहत किसी भी छात्र को उसकी जाति, भाषा, रंगरूप, पहनावे या पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर अपमानित करना अपराध की श्रेणी में आता है। यूजीसी ने ऐसे सभी कृत्यों को रैगिंग माना है और दोषियों के खिलाफ न केवल संस्थागत स्तर पर बल्कि आपराधिक कानूनों के तहत भी कार्रवाई के निर्देश दे रखे हैं। फिलहाल पांचों डिटेन छात्रों से पूछताछ जारी है और पुलिस मामले की जांच के बाद आगे की कार्रवाई में जुटी हुई है। कॉलेज प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर ऐसी गंभीर घटना की जानकारी होने के बावजूद अब तक उन्होंने क्या कदम उठाए। वहीं इस घटनाक्रम के बाद शहर में अभिभावकों और छात्रों में रोष व्याप्त है और सभी की नजरें अब पुलिस व प्रशासन की कार्रवाई पर टिकी हैं।

