24 न्यूज अपडेट, उदयपुर। नगर निगम की ओर से शहर के बड़े होटलों, रेस्टोरेंट्स और मॉल्स को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के तहत कम्पोस्ट प्लांट लगाने को लेकर नोटिस जारी किए गए हैं। यह कदम स्वच्छता और पर्यावरण प्रबंधन को लेकर सराहनीय है, लेकिन इस सूची में गुजरातियों की पहली पसंद कही जाने वाली भाई साहब की प्रमुख होटल का नाम नहीं होने से सवाल भी उठने लगे हैं। नगर निगम ने जिन प्रतिष्ठानों को नोटिस दिए हैं, उनमें शहर की लगभग सभी प्रसिद्ध होटलें और रेस्टोरेंट्स शामिल हैं। सूची में रेडिसन ब्लू, आमेट हवेली, अमन्त्रा, पिज्जा ब्रस्ट, जगत निवास, बावर्ची, अमराई घाट जैसे नाम बकायदा प्रेसनोट जारी कर बताए गए हैं। नोटिस में कहा गया है कि यदि सात दिन के भीतर कम्पोस्ट प्लांट नहीं लगाए गए, तो ₹5,000 प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगाया जाएगा।
लेकिन इसी सूची से एक ऐसी होटल का नाम गायब है, जो न सिर्फ शहर की व्यस्ततम और लोकप्रिय होटलों में गिनी जाती है, बल्कि गुजरात से आने वाले पर्यटकों की ’खास पसंद’ भी मानी जाती है। जब इस बारे में नगर निगम से पूछा गया, तो जवाब मिला कि “उसका नाम अगली सूची में आएगा।” याने निगम में एक ही काम के लिए दो सूचियां बनती हैं। पहली नॉन पॉलिटिकल और दूसरी पॉलिटिकल सूची। पहली सूची के नाम पहले जारी किए जाते हैं ताकि दूसरी सूची वालों को जुगाड़ करके बिना सार्वजनिक रूप से नाम आए मामला सेटल करने का मौका मिल जाए। यह कैसे हो सकता है कि होटलों की सूची बनें व उसमें से किसी खास राजनीतिक रसूख रखने वालों की होटल या होटलों के नामों का ही विलोप कर दिया जाए। यह कैसी कारीगरी है जो आजकल निगम की टॉप ब्यूरोक्रेसी के आदेश पर हो रही है। याने जो अपने नाम का डंका बजाते हैं कि हमारा काम जबर्दस्त हैं, हम कम बोलते हैं, पब्लिक से इंटरेक्शन नहीं करते हैं या फिर बहुत ही सख्ती से पेश आकर अपनी छवि को बहुत ही साफ सुथरा रखते हैं, दरअसल वे भी अंदरखाने राजनीतिक रसूख के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो सबका नाम एक साथ लिया जाता। इस सूची को जब हमने देखा तो अचरज हुआ कि आखिर डबल इंजन से तल्लुक रखने वाले भाई साहब की होटल का नाम आखिर क्यों नहीं है।
क्या नोटिसों की सूची भी ’सावधानीपूर्वक संपादित’ होती है?
नगर निगम की यह सफाई सवालों के घेरे में है। क्या यह संभव है कि जांच टीम ने उस होटल को अनदेखा कर दिया हो? या फिर रसूख और राजनीतिक दबाव के चलते नाम फिलहाल टाल दिया गया है? या आंख मूंद ली हो कि अंदरखाने कौन देखने वाला है क्योंकि आजकल मीडिया का भी ऐसा बातों में इंटरेस्ट ही कहां रह गया है??? सूत्रों की मानें तो यह होटल भी प्रतिदिन 100 किलो से अधिक कचरा उत्पन्न करती है, जिससे वह ‘बल्क वेस्ट जनरेटर’ की श्रेणी में आती है। यदि ऐसा है, तो फिर नियम के अनुसार उस पर भी समान कार्रवाई होनी चाहिए थी। मगर कार्रवाई तो बल्क में हो रही है लेकिन अधिकारी को सिलेक्टेड होकर अपने राजनीतिक आभामंडल वालों को खुश करने के लिए कुछ नामों के आगे लकीर फेरनी है, उनकी तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखना है।
नगर निगम आयुक्त राम प्रकाश विज्ञप्ति में बताते हैं कि नियमों की अवहेलना किसी भी कीमत पर नहीं बर्दाश्त की जाएगी।” लेकिन जब एक खास होटल का नाम सूची से नदारद मिलता है, तो यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सख्ती सबके लिए है, या कुछ के लिए नियम लचीले हैं? या साफ कहें तो है ही नहीं। आपको बता दें कि स्वच्छता के मामले में उदयपुर कई बार राष्ट्रीय रैंकिंग में बेहतर प्रदर्शन कर चुका है। लेकिन यदि कार्रवाई के दौरान भेदभाव सामने आए, तो यह पूरे अभियान की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर सकता है। नियम लागू करने से ज्यादा जरूरी है व समान रूप से लागू होने ही चाहिए। यदि कोई प्रतिष्ठान नियमों से बचता है, चाहे वह कितना भी बड़ा या प्रसिद्ध क्यों न हो, तो यह व्यवस्था के लिए नजरी बन सकता है। अब आगामी सूची में वह होटल शामिल होती है या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि स्वच्छता सिर्फ कचरा उठाने से नहीं, व्यवस्था की पारदर्शिता से भी आती है।
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